केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अगर बहुमत की इस सरकार को सर्वाधिक बैकफुट पर आना पड़ा है तो वह मुद्दा निश्चित रूप से पाकिस्तान से संबंधों को लेकर ही है. विरोधी तो विरोधी, खुद दक्षिणपंथी विचारक भारत की पाकिस्तान सम्बन्धी ऊहापोह की स्थिति से हतप्रभ हैं. अपने शपथ-ग्रहण समारोह में जिस प्रकार से नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था मोदी ने, उसे राजनयिक हलकों में नवनियुक्त
प्रधानमंत्री का मास्टरस्ट्रोक कहा गया, लेकिन उसके बाद कश्मीरी अलगाववादियों के एक छोटे मुद्दे को लेकर बातचीत रद्द करना भारत के गले की फांस बन गया. इसके बाद पाकिस्तान भारत पर दबाव बनाने में काफी हद तक सफल रहा और फिर दोनों देश रूस के ऊफ़ा में मिले. वहां पर थोड़ी उम्मीद बढ़ी, लेकिन हवाई जहाज से उतरने से पहले ही 'शरीफ' पलट गए! इस भूमिका के बाद ताजा खबर यह आयी कि भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता बहाल होने की घोषणा हो गयी है. भारत के पंजाब और कश्मीर में सुरक्षा बलों पर पाकिस्तानी आतंकियों के हमलों के बावजूद दोनों देशों द्वारा वार्ता बहाली तय करना हिम्मत का ही काम दिखता है. इससे भी बड़ी बात यह है कि इसकी घोषणा पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने अपने देश में की. अजीज ने कहा कि वह 23 अगस्त को भारत आएंगे और अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल के साथ वार्ता करेंगे. खैर, यहाँ तक तो सब कुछ ठीक ठाक ही रहता है, किन्तु विश्लेषक यह अनुमान लगा रहे हैं कि इस वार्ता से आखिर निकलेगा क्या? कई विश्लेषक तो यह आंकलन करने से नहीं चूक रहे हैं कि इस बार भी वही होगा, जो हर बार होता है मतलब परिणाम के रूप में, 'ढाक के तीन पात'!
हालाँकि कुछ आशावादी विश्लेषक ऐसा नहीं सोचते हैं और कहते हैं कि भविष्य में अगर भारत पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार आना शुरू हुआ तो वह निश्चित रूप से बातचीत के रास्ते ही शुरू होगा, इसलिए तमाम झंझावातों के बावजूद दोनों देशों को वार्ता का पथ मजबूत बनाने का प्रयत्न जारी रखना चाहिए. इस बात को उमर अब्दुल्लाह का भी समर्थन मिला है, हालाँकि उनकी बात थोड़ी घुमा फिराकर जरूर हैं, लेकिन सामयिक है. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य में लगातार जारी हिंसा की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखने के भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत किया और कहा कि इस एक यू-टर्न को देख कर उन्हें ‘बहुत खुशी’ हो रही है. इस एक बात से उन्होंने भाजपा को अपने पुराने स्टैंड की याद भी दिलाई जब वह कहती थी कि हिंसा और बातचीत एक साथ नहीं चल सकती है. खैर, पक्ष और विपक्ष के रोल में भेद होता है और इस बात को भाजपा के कर्णधार भी ठीक तरह से समझ चुके हैं, शायद इसीलिए अब सीमा पर हमलों के बारे में इसके कार्यकर्त्ता और इसके आनुषंगिक संगठन आवाज उठाने से परहेज कर रहे हैं. हालाँकि देखा जाय तो बातचीत की शुरुआत की जिम्मेवारी जिन दो व्यक्तियों पर डाली गयी है, उनसे बेहतर की तलाश की जानी चाहिए थी. ऐसा नहीं है कि सरताज अजीज और अजीत डोभाल की योग्यता संदिग्ध है, मगर दोनों की वर्तमान जिम्मेवारियां और पृष्ठभूमि, भारत और पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों के बीच तालमेल बिठाने से बेहद छोटी है, खासकर शुरूआती स्तर पर तो यह फैसला सिरे से गलत लगता है. ऐसी सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है कि भारत और पाकिस्तान इस बातचीत के लिए अनिच्छुक थे, मगर वैश्विक दबाव में औपचारिकता के लिए इसे शुरू करने की ज़हमत उठायी गयी. इस बात के पीछे ठोस तर्क नजर आते हैं. भारत का राजनीतिक नेतृत्व इस बात का दबाव जरूर महसूस कर रहा होगा कि गुरदासपुर और उधमपुर हमलों में पाकिस्तानी आतंकियों के सीधे शामिल होने के सबूतों के साथ भारत-पाक सीमा पर जुलाई में ही 19 बार संघर्षविराम का उल्लंघन हुआ है, जिसमें तीन भारतीय सैनिकों समेत चार लोग मारे गए. पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने अगस्त में भी कई मौकों पर नियंत्रण रेखा से सटी अग्रिम भारतीय चौकियों को निशाना बनाया है.
भारत की इस चिंता का अहसास पाकिस्तान को भी है. एक पाक विदेश अधिकारी का इस सन्दर्भ में कहना है कि उन्हें भारत के आतंकवाद के अजेंडे के बारे में पता है और इसके लिए तैयारी की जा रही है. वैसे तो पाकिस्तानी रवैये के बारे में सबको पता है कि वह लाख सबूतों को अनदेखा ही करेगा और अगर थोड़ा बहुत समझौता दिल्ली में हो भी गया तो इस्लामाबाद पहुँचने से पहले ही सरताज अजीज उसका खंडन करने को मजबूर हो जायेंगे. अजीत डोभाल के बारे में भी पाकिस्तानी मानसिकता स्वस्थ नहीं कही जा सकती, जिसका सबूत हाल ही मिला जब एक वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार ने उनके बारे में टिप्पणी करते हुए कहा था कि डोभाल से बेहतर तो पाकिस्तानी चपरासी होते हैं. डोभाल के पूर्ववर्ती जीवन और जासूसी कारनामे पाकिस्तानी गलियारों में डर के साथ ज़िक्र में आते हैं. इन तमाम स्थितियों के देखकर तो यही लगता है कि पाकिस्तान को एक और मौका देने का भारतीय, बल्कि मोदी प्रयास कहा जाय, अर्थहीन ही साबित होगा. बहरहाल, इस सम्भावना को आजमाना समय की मांग है, जिसे अंजाम दिया जा रहा है. वैसे बेहतर रहता अगर भारत और पाकिस्तान किसी भी वार्ता से पहले चीन और भारत या भारत और अमेरिका के नजदीक आने के समीकरणों पर अध्ययन कर लेते. सिर्फ एक नतीज निकलेगा इस अध्ययन से और वह है 'व्यापार'! जी हाँ! व्यापार में ही वह ताकत है, जो दुश्मनों को करीब ला सकता है और दो दोस्तों में दरार डाल सकता है. आखिर, भारत और रूस की ऐतिहासिक दोस्ती में दरार और पाकिस्तान को हथियार बेचने के पीछे व्यापार ही तो है और भारत और चीन के बीच गहरी दुश्मनी के बावजूद गलबहियां करने के पीछे भी व्यापार ही महत्वपूर्ण कारक है. इस बात का इशारा पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री खुले रूप में कर चुके हैं. इस बार तो रक्षा विशेषज्ञ मिल रहे हैं, लेकिन अगली बार भारत और पाकिस्तान को व्यापारिक एंगल से जरूर सोचना चाहिए! यकीन मानिये, ज़ख्म भर जायेंगे, 1947 से, या उससे पहले से .... !!
व्यापार के अतिरिक्त क्रिकेट, बॉलीवुड और पर्यटन को राजनीति से मुक्त रखना हमारे संबंधों को नयी दिशा देने में कुछ हद तक ही सही, सकारात्मक रोल प्ले कर सकता है. पाकिस्तान के हुक्मरान और शुभचिंतक यह बात ठीक तरीके से समझ रहे हैं कि आतंक, कट्टरता के बाद चीन का पाकिस्तान में निवेश उसे चीन का एक उपनिवेश ही बनाएगा, ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका शीत युद्ध के दौर से उसे इस्तेमाल करता रहा है. नवाज शरीफ की भारत के साथ व्यापारिक इच्छा कई बार सामने आयी है, जिसकी सार्वजनिक आलोचना उन्हें झेलनी पड़ी है, मगर उन्हें प्रयास जारी रखने होंगे और लोकतंत्र को मजबूत करने के साथ साथ व्यापार मार्ग पर चलने की दृढ इच्छाशक्ति दिखानी होगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि उपमहाद्वीप के दो महत्वपूर्ण देश अपने देश की जनता के साथ इन्साफ करेंगे, जिसका रास्ता व्यापार मार्ग से होकर ही जाता है!
India Pakistan relation should be based on business, hindi article
Sartaj ajeej, dobhal, national security adviser, business route, indo china relation, foreign policy, india russia relation, Hindi lekhak, hindi kavi, kahanikar, rachnakar, writer, author, political writer, journalist, patrakar, Indian writer, current writing, samsamyiki, लेखक, कवि, कहानीकार, रचनाकार
0 टिप्पणियाँ