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सऊदी सरकार और हाजियों की मौतें

जबसे होश संभाला है, तबसे याद नहीं आता है कि कभी सुना हो कि हज यात्रा में भारी संख्या में मौतें न हुई हों. अगर यह कहा जाय कि हर बार हज-यात्रा में दुर्घटना होनी ही होनी है तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. कभी भगदड़, कभी आग लगने से तो कभी विमान दुर्घटना से हज-यात्रा 'दुर्घटनाओं की यात्रा' में तब्दील हो गयी लगती है. इस बार भी हज यात्रियों की नियति ने उन्हें धोखा ही दिया है. मुसलमानों के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का मदीना में एक बार फिर प्रशासनिक असावधानी के कारण सैकड़ों लोग काल के गाल में चले गए. गौरतलब है कि इस साल 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालु हज का हिस्सा बने है. गुरुवार के दिन एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु मीना में ईद मना रहे थे, लेकिन ये दिन कई हज यात्रियों के लिए आखिरी दिन साबित हुआ. सवाल यही है कि सऊदी अरब जैसे विकसित राष्ट्र में ऐसी स्थितियों पर नियंत्रण करने की कोशिशें पहले क्यों नहीं होती हैं, जबकि उनको पता होता है कि एक साथ लाखों की तादाद में लोगों की भीड़ होने ही वाली है और इतनी भीड़ में भगदड़ होना भी सामान्य बात ही है. हालाँकि, सउदी अरब के नागरिक सुरक्षा प्रशासन ने बताया कि मीना में भगदड़ मचने के बाद बचाव अभियान जारी है, लेकिन सवाल यही है कि क्या इतना भर कह देना काफी है और क्या इतने भर से जो मर गए हैं, उसकी भरपाई संभव है? गौरतलब है कि यह हादसा उस जगह हुआ जहां श्रद्धालु तीन खंभों पर प्रतीकात्मक रूप से शैतान को कंकड़ मारने की रस्म में हिस्सा ले रहे थे. प्रशासन ने बताया है कि 220 लोग मारे गए हैं और 450 अन्य घायल हुए हैं, लेकिन अनाधिकृत जानकारी के अनुसार मरने वालों की संख्या हज़ारों में हो सकती है. Hindi article on haj yatra death incidents, year wise record analysis dead people
मुस्लिमों के सबसे पवित्र स्थल पर हादसा होना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन नयी बात यह जरूर है कि आज 21वीं सदी में भी ऐसे हादसों से बचने के निश्चित उपाय करने में विफलता ही नजर आ रही है. अगर, सऊदी अरब इस यात्रा के सुरक्षित इंतजामात करने में विफल है तो उसे संयुक्त राष्ट्र संघ से मदद मांगने में संकोच क्यों होना चाहिए? और ऐसी मौतों पर संयुक्त राष्ट्र संघ को खुद ही संज्ञान क्यों नहीं लेना चाहिए? आखिर, हाजियों का मानवाधिकार होता है कि नहीं? इस्लाम के पांच महत्वपूर्ण पिलर्स में से एक इस स्थान की यात्रा प्रत्येक मुसलमान के लिए स्वप्न सरीखी होती है और अगर वह ऐसा करने में समर्थ है तो वह निश्चित रूप से इस यात्रा को संपन्न करता है! विश्व के दुसरे सबसे बड़े धर्म इस्लाम को मानने वाले इस स्थान पर पहुँचने को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं और वहां से अगर सकुशल अपने देश में लौट आये तो उनकी इज्जत आस-पड़ोस में बढ़ जाती है. हाजी नाम से मशहूर होकर वह दुसरे लोगों को उपदेश देने का काम करते हैं तो अन्य लोग भी उनकी बातों को गंभीरता से लेते हैं. विश्व भर के तमाम देशों से मुसलमान बेहद श्रद्धा से इस यात्रा को संपन्न करते हैं, लेकिन उनका क्या दोष होता है जो वहां एक बार जाने के बाद वापस नहीं लौटते हैं. इस क्रम में, अगर कुछ बड़ी दुर्घटनाओं की बात की जाय तो 1990 में 1426 श्रद्धालु, 1994 में 270, 1998 में 118, 2001 में 35, 2003 में 15, 2004 में 250, 2006 में 350 और अब 2015 में 350 से ज्यादा. गौर करने वाली बात यह है कि यह आंकड़े आधिकारिक हैं और असल आंकड़ें इनसे काफी ज्यादा हो सकते हैं. मृतकों के अतिरिक्त, घायलों की संख्या का अनुमान न ही लगाया जाय तो बेहतर होगा. Hindi article on haj yatra death incidents, year wise record analysis dead people
इन मौतों के अतिरिक्त, 1975 में आग लगने से 200 यात्री, 1997 में 350 लोग मारे गए हैं तो विमान दुर्घटनाओं की भी एक लम्बी सीरीज है इस सन्दर्भ में. 1973 में जॉर्डन के बोइंग 707 के दुर्घटनाग्रस्त होने से 176 हाजियों की मौत हुई तो, 1974 में एक अन्य दुर्घटना में 191 लोग मारे गए. 1978 और 1979 में भी बड़ी विमान दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 170 और 156 लोग मारे गए. 1991 में नाइजीरिया एयरवेज के विमान की दुर्घटना में तकरीबन 247 हाजी बेमौत मारे गए.  गौर करने वाली बात यह भी है कि 24 सितम्बर 2015 की भगदड़ से पहले गत 13 सितम्बर को क्रेन गिरने से करीब 107 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 सौ लोग जख्मी हो गए थे और उसके मात्र 11 दिनों बाद इतना बड़ा हादसा सऊदी प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. भारत के लिए राहत की बात इतनी ही कही जा सकती है कि इस गंभीर हादसे में किसी भारतीय नागरिक के हताहत होने की खबरें नहीं आयी हैं, अलबत्ता विदेश मंत्रालय ने अपना बयान जारी कर उम्मीद जताई है कि हादसे में दो भारतीय घायल हो गए हैं. लेकिन, प्रश्न यहाँ सिर्फ भारतीय लोगों का ही नहीं है, बल्कि एक-एक वैश्विक नागरिक का जीवन अनमोल है और प्रशासन को हर हाल में इन दुर्घटनाओं पर रोक लगाने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि अगर इन पर रोक नहीं लगी तो हज-यात्रा के नाम से श्रद्धालुओं में खौफ का संचार हो जायेगा और साथ में बड़ा सवालिया निशान लगेगा सऊदी प्रशासन पर, जो कि निश्चित रूप से ऐसा नहीं चाहेगा. संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं को भी इन मौतों पर सक्रियता बरतनी चाहिए, तभी इन श्रद्धालुओं का जीवन सुरक्षा के दायरे में होगा और प्रत्येक वर्ष होने वाली हज-यात्रा, कुछ हद तक ही सही, सुरक्षा की दिशा में कदम दर कदम आगे बढ़ती हुई नजर आएगी.
 
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