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दाऊद, पाक अधिकृत कश्मीर और भारत

पिछले दिनों भारत के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने ख़ुफ़िया अभियानों को लेकर बयान क्या दिया था कि उनकी लानत मलानत शुरू हो गयी और किसी ने भी इसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया. इससे पर्रिकर साहब इतने ज्यादा फ़्रस्टेड हुए कि उन्होंने कई महीनों तक मीडिया से बात नहीं करने की कसम खा ली. समझना दिलचस्प होगा कि रक्षामंत्री के बयान के कुछ ही महीनों बाद जब केंद्रीय राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने ठीक ऐसा ही बयान दिया तो माहौल बदल सा गया है. देश के लोगों में भी इस बाबत गंभीरता से चर्चा हो रही है तो पाकिस्तान से भी भय-मिश्रित तल्ख़ टिप्पणी आयी है. पाकिस्तानी सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने कहा है कि 'अगर भारत ने दाऊद इब्राहिम या हाफिज सईद को पकड़ने के लिए किसी तरह का गुप्त ऑपरेशन शुरू किया या हमला किया तो अंजाम बुरा होगा. यह सारा परिदृश्य प्रधानमंत्री की यूएई यात्रा के बाद आया है. खबर तो यह भी आ रही है कि भारत के वांछित अपराधी दाऊद इब्राहिम की संपत्तियां जब्त होनी शुरू हो गयी हैं तो भारत और अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी प्रेसिडेंशियल डायरेक्टिव (एसएसपीडी-6) के मुताबिक दाऊद और उसके विदेशों में फैले कारोबार पर खुफिया जानकारी शेयर करने पर भी सहमति बन चुकी है. खुफिया दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिका पहले ही 30 देशों के साथ आतंकियो बारे में उनसे जुड़ी जानकारी साझा करने का एग्रीमेंट फाइनल कर चुका है. ऐसे में पाकिस्तान का भयाक्रांत होना स्वाभाविक ही है. इसके अतिरिक्त, भारत पाकिस्तान के बीच अगर किसी दूसरे मुद्दे को लेकर चर्चा बटोरी जाती है तो वह कश्मीर ही है. इस मामले में समस्या की जड़ समझने की जरूरत है और जरूरत है इसमें फ्रंट फुट पर खेलने के. 
हालिया दिनों में भारत पाकिस्तान विवाद पर जमकर बयानबाजी हो रही है. चाहे पाकिस्तान के राजनेता हों, सेनाधिकारी हों या फिर इससे सम्बंधित अन्य लोग, भारत को धमकाने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसके साथ साथ पाकिस्तान का कश्मीर मुद्दा उठाया जाना भी कोई नई बात नहीं है. संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर तमाम अन्य देशों के साथ वह अपना बेसुरा राग अलापता रहता है. समस्या यह है कि इन परिस्थितियों में भारत की केंद्र सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए, जिससे न केवल यह समस्या सुलझे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के गले से यह काँटा निकले. इस सन्दर्भ में पाकिस्तान समेत सभी लोगों के लिए यह संदेश देना जरूरी हो गया है कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय अंतिम है. ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह साफ़ है कि तत्कालीन कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने स्वेच्छा से अपना विलय भारत के साथ कर दिया था. यह बात आम, ख़ास सबको ही पता है. हमारे भारतीय रणनीतिकारों को इसके बीच से अपनी बात ढूंढने की आवश्यकता है कि अगर भारत के साथ जम्मू कश्मीर का पूर्ण और अंतिम विलय हो चुका है तो पाकिस्तान के पास जम्मू कश्मीर का हिस्सा कैसे है? साफ है कि पाकिस्तान ने भारत की भूमि कब्ज़ा रखी है और इस पर हमारी चुप्पी उसका हौंसला बढ़ाने का कार्य कर रही है. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ द्वारा कश्मीर को अधूरा एजेंडा बताए जाने के जवाब में भारत से प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह के बयान की तारीफ़ की जानी चाहिए, जिसमें उन्होंने दो-टूक शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. यदि इससे जुड़ा कोई मुद्दा है, तो वह यह कि गुलाम कश्मीर को किस तरह फिर से भारत में शामिल किया जाए. उन्होंने पड़ोसी देश को यह भी याद दिलाया कि पिछले 67 सालों से उसने इस पर अवैध कब्जा कर रखा है. इस मुद्दे पर  समूचा देश एक सूर में खड़ा होगा अगर भारतीय प्रधानमंत्री अपने राज्यमंत्री के दिए गए बयान के अजेंडे को आगे लेकर बढ़ते हैं. 
इस बात को जोर देता है हाल ही में हुआ एक सर्वे, जिसमें दावा किया गया है कि पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए कश्मीर की जनता भारत में शामिल होना चाहती है, क्योंकि वहां के नागरिकों का जीवन-स्तर बद से बदतर होता जा रहा है. वहां के नागरिकों के बच्चे न तो पढ़ पाते हैं और न ही वहां के युवकों को रोजगार हासिल है. हाँ! इस भाग के युवकों का पाकिस्तान आतंकी बनाकर अवश्य ही प्रयोग करता है. इस सर्वे से साफ़ हो गया है कि पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किये गए कश्मीर के लोग इस आतंकी राष्ट्र की हकीकत समझ चुके हैं और अब भारत में शामिल होना चाहते हैं. सरकार को इन कश्मीरियों को भारत में मिलाने के लिए प्रयास करना चाहिए. यदि इस काम में पाकिस्तानी फ़ौज टांग अड़ाती है तो फिर उससे भारत को बेहिचक निपटना चाहिए, क्योंकि काल करे सो आज कर! आखिर, पाकिस्तान युद्ध की ही भाषा समझता है तो इससे हम बचने की कोशिश कब तक करेंगे? भारत के सेना प्रमुख दलबीर सुहाग का बयान ठीक ही है कि भारत को हर वक्त चौकस और सजग रहना चाहिए, क्योंकि आने वाले समय में छोटे और संक्षिप्त युद्धों की सम्भावना बन रही है. इसके साथ ही साथ भारतीय प्रशासन को वैश्विक स्तर पर भी पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किये गए कश्मीर की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहिए.  हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक का बयान गौर करने लायक है कि कश्मीर पर पाकिस्तान वैश्विक समुदाय में अपना आधार खो चूका है. इन बातों को हमें सही मंच पर ले जाने से ही सकारात्मक हल की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है. भारत अगर इन दो मुद्दों को सफलतापूर्वक प्रतिपादित कर लेता है तो यह उसकी विदेश नीति में मील का पत्थर साबित होगा. वैसे भी, आक्रामक होने के अलावा इस वक्त दूसरा रास्ता भी क्या है, ऐसे में दाऊद और पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत सरकार को हर तरफ से सख्त रूख अपनाना चाहिए. दिलचस्प होगा, जब कश्मीर पर बात करने की ज़िद्द करता पाकिस्तान इससे भागता फिरेगा.
 
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