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रेलवे सुधार पर जगती उम्मीदें - mithilesh article on Indian railway, new way of working, public and rail minister, twitter activeness

विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क, 16 लाख से भी अधिक कर्मचारी रखने वाला संगठन और माल वाहन के साथ सवारी वाहन का सबसे महत्वपूर्ण साधन होने के बावजूद भारतीय रेलवे को वह सम्मान और विश्वास हासिल नहीं हो सका है, जो कि होना चाहिए था. बावजूद इसके इस बात से किसी प्रकार का इंकार नहीं होना चाहिए कि यह हमारे देश की जीवन-रेखा कल भी थी और आज भी है. इसलिए, इसके सुधार की स्थाई रूपरेखा तय करने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि भविष्य की दूरगामी योजनाओं पर स्पष्टता के साथ कार्य किया जाय. 2014 के आम चुनावों में भारी सफलता के बाद, जब शिवसेना के सुरेश प्रभु को अपने साथ जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टीलाइन से आगे जाकर उनको गले लगाया था, लगभग तब से ही रेलमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे सुरेश प्रभु पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं. इन तमाम अपेक्षाओं के बोझ तले दबकर इस काबिल मंत्री ने लोकलुभावन फैसले लेने की बजाय, दूरगामी योजनाओं पर कार्य करना शुरू किया, जिसके परिणाम धीरे-धीरे दिखने शुरू हो गए हैं. हालाँकि, भारत का विशाल रेलवे नेटवर्क, इतनी आसानी से सुधर जाए तो फिर यह चमत्कार ही होगा, मगर इसके सापेक्ष यह बात भी उतनी ही सही है कि रेलवे को अब तक प्रोफेशनल ढंग से चलाने की बजाय, इसके साथ ज्यादेतर मजाक ही किया गया है! यहाँ तक कि पिछले दिनों तक यह चुनावी लोकप्रियता हासिल करने का एक जरिया तक बन गयी थी. विभिन्न क्षेत्रों के नेता रेलवे मंत्रालय इसलिए चाहते थे कि वह अपने क्षेत्र में ट्रेनों की धड़ाधड़ सुविधाएं बढाकर अपनी और अपने समर्थकों की चुनावी जीत को आसान कर सकें. हालाँकि, इस बीच वगैर योजना के नयी रेल चलाने, फेरे बढ़ाने से समस्याएं बढ़ती ही थीं. लेकिन, सुरेश प्रभु के रेलमंत्री बनने के बाद यह प्रतीत होने लगा था कि सुधार के रेलवे ट्रैक पर पहियों की गति में न केवल तेजी आएगी, बल्कि उसकी सुरक्षा और आने वाले भविष्य में बदलने वाली तस्वीर पर भी काफी कुछ फोकस किया जायेगा. 

इसकी शुरुआत तब हुई, जब सन् 2015-16 के लिए 1,00,011 करोड़ रुपए का रेल बजट प्रस्तुत किया, जिसमें गत वर्ष की अपेक्षा आकार में 52 प्रतिशत की भारी वृद्धि की गई, लेकिन उसका भार आम जनता पर नहीं डाला गया. इसमें प्रभु ने लोगों को लुभाने की अपेक्षा उन्हें रेल की वास्तविक स्थिति से अवगत कराने का सफल प्रयास तो किया ही, साथ ही साथ यात्री किराए में वृद्धि करने की अपेक्षा माल भाड़े की दरों में 16 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करके जनता की नाराजगी से बचने और आर्थिक संतुलन साधने की सफल कवायद भी की गयी. इसी बजट में, रेल लाइनों में 24 हजार किलोमीटर की बढ़ोतरी, यात्रियों की बढ़ती संख्या का आंकलन प्रतिदिन 3 करोड़ तक करके सुविधाओं पर कार्य, आदर्श स्टेशन योजना का खाका, जिसके तहत 200 नए रेलवे स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने का प्रयास, रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास और लॉजिस्टिक पार्क के लिए एक लाख करोड़ रुपए का प्रावधान, रेलवे द्वारा अपनी भूमि, स्टेशनों और भवनों की छतों पर सौर ऊर्जा संयत्र लगाने की योजना, पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए गाडि़यों को चलाने में डीजल के साथ साथ सीएनजी के प्रयोग की योजना,  9 रेलवे कॉरिडोर्स पर ट्रेनों की गतिसीमा को भी वर्तमान 110-130 किमी प्रति घंटा से बढ़ाकर 160-200 किमी प्रति घंटा करने की योजना प्रमुख रूप से बताई गयी. सबसे बड़ी बात इस बजट में आंकड़ों की बाजीगरी से हटकर भविष्य की जरूरतों पर ध्यान दिया गया था तो वर्तमान में सुरेश प्रभु ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म का प्रयोग जनता से जुड़ने और आपात सहायता मुहैया कराने का बेहतर उदाहरण बखूबी प्रस्तुत कर रहे हैं. हाल ही में, कोहरे के कारण विलंब से चल रही ट्रेन में एक बच्चे के भूखे होने की ट्विटर पर सूचना मिलने के बाद रेल मंत्री ने पहले तो फतेहपुर जिले में उसके लिए दूध का इंतजाम करवाया और फिर ट्रेन के कानपुर पहुंचने पर रेलवे के अधिकारियों ने पांच साल के इस बच्चे को दूध के साथ बिस्किट और पानी भी दिया. ऐसी ही एक दूसरी घटना में, महाराष्ट्र में एक ट्रेन में अकेले यात्रा कर रही एक महिला यात्री को उस समय अधिकारियों की तत्काल सहायता मिली जब उसने रेल मंत्री सुरेश प्रभु के ट्विटर हैंडल पर एक ट्वीट कर मदद की मांग की. एक अन्य घटना में, एक गंभीर रूप से बीमार बुजुर्ग के लिए जब उसके बेटे ने रेलमंत्री को ट्वीट किया तो उसके लिए ट्रेन को न केवल 10 मिनट तक रोका गया, बल्कि गंतव्य स्टेशन पर तमाम रेलवे अधिकारी उसके प्रति संवेदनशीलता बरतते नज़र आये. इसी क्रम में, जन सुविधाओं के प्रति संवेदनशीलता बरतते हुए कोहरे के कारण विलंब ट्रेनों को कुछ बड़े रेलवे स्टेशनों पर 10 मिनट का अतिरिक्त ठहराव देने की व्यवस्था भी की गयी है, जिनमें पैंट्री कार नहीं है. इस अतिरिक्त ठहराव से यात्री रेलवे स्टेशन पर उतर कर खाने पीने का सामान खरीद सकेंगे. ऐसे दृश्य हमारी सरकारी व्यवस्था के लिए एक तरह से अजूबे ही हैं!  



जाहिर है, ऐसे चंद प्रयासों से व्यवस्था में नागरिक भागीदारी सुनिश्चित होती है, अन्यथा अब तक रेलवे सहित तमाम सरकारी दफ्तरों का रवैया यही रहा है कि रेलवे उनको यहाँ से वहां पहुंचाकर उन पर अहसान ही कर रहा है. ऐसे में सुरेश प्रभु के ट्विटर-प्रयास को सराहना मिलनी ही चाहिए. स्पष्ट है कि जब तक दूरगामी योजनाओं के साथ-साथ, जनता से जुड़ने और उसकी व्यवस्था में सहभागिता को सरकार और उनके मंत्री परवान चढ़ाना नहीं चाहेंगे, तब तक अच्छे प्रयास भी अपेक्षाकृत परिणाम देने में सफल नहीं हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त, रेल मंत्री ने एक कार्यक्रम में रेलवे से जुडी तमाम योजनाओं की जानकारी देते हुए बताया है कि रेलवे के लिए पीपीपी मॉडल पर काम चल रहा है और यह निजीकरण जैसा नहीं, क्योंकि 'निजीकरण रेल की सारी समस्या का हल नहीं है. जाहिर है, निवेश के साथ-साथ रेलमंत्री रेलवे को प्राइवेट जागीर बनाने के पक्ष में कतई नहीं है, बल्कि वह निगरानी तंत्र को मजबूत करने में ज्यादे यकीन रखते हैं. इसके अतिरिक्त, भारतीय रेलवे में बुलेट-ट्रेन के रूप में नए प्रयोग की ज़ोरदार तैयारियां हो ही रही हैं तो सुविधाओं की दूसरी कड़ी की ओर ध्यान दिलाते हुए रेलमंत्री ने कहा कि रेलवे मोबाइल पर टिकट बुक करने की व्‍यवस्‍था शुरू करने पर काम कर है तो, रेलवे में खाने के लिए मैकेनाइज्‍़ड किचन बनाने, रेलवे ठेकों को ऑनलाइन करने पर विचार हो रहा है और इसी के साथ बेस्‍ट लीनन की लॉन्‍ड्री सुविधाएं प्रदान करने की भी कवायद ज़ोरों पर है. रेलमंत्री की ओर से सबसे साफगोई वाली बात यह कही गयी है कि वह रेल के हालात पर श्‍वेत पत्र निकालने जा रहे हैं. इससे रेल की चुनौतियां लोगों के सामने आएंगी, तो लोगों को भी पता चलेगा कि असलियत क्‍या है. ठीक ही तो है, अगर समस्या गंभीर है तो उसकी जानकारी के माध्यम से पब्लिक को विश्वास में लेने के बाद ठोस निर्णय लेते समय जन-दबाव से काफी हद तक बचा जा सकेगा तो चरणबद्ध तरीके से कार्य करने से एक-एक करके समस्याओं से मुक्ति भी मिलेगी और तभी जागती उम्मीदों को एक राह मिल सकेगी. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि रेलमंत्री ने टूटे-फूटे और अव्यवस्थित तंत्र को एकजुट किया है और भविष्य के लिए जनता के साथ विश्वास का रिश्ता कायम करने की राह पर भी तेजी से बढ़ रहे हैं. उम्मीद करना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आने वाले समय में पीपीपी मॉडल समेत तमाम उपाय, अंततः भारत की जीवन-रेखा को सिसकने से हंसने की ओर मजबूती और सुरक्षा से अग्रसर करेंगे.

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