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प्रदूषण के अहसास के लिए धन्यवाद! Mithilesh new article on odd even formulae of delhi government, pollution is big issue

किसी विचारक ने कहा है कि अधिकाँश समय हम समस्याओं को समझते ही नहीं हैं, इसलिए उनका हल निकालने की बात बेमानी हो जाती है. वह भी जब 'प्रदूषण' जैसा आम प्रचलित शब्द हो तो आम-ओ-खास एक कान से सुनने और दुसरे से निकाल देने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति, इस जहरीली समस्या का 'अहसास' भी दिला दे, तो उसका धन्यवाद पर तो हक़ बनता ही है. 'धन्यवाद' और 'साधुवाद' के अधिकारी वह लोग भी हैं, जिनको इस बीमारी-जनित प्रदूषण का ज़रा भी अहसास हो जाए, और वह अपने तरीके से इसको कम करने की कोशिश में सक्रीय योगदान दे सकें. नए साल का आगमन और देश की राजधानी नई दिल्ली में ऑड-इवन फॉर्मूले का अनूठा प्रयोग. वाकई 2016 का आगाज़ इस बार कुछ दिलचस्प अंदाज में होने जा रहा है. हालाँकि, अरविन्द केजरीवाल से कई लोग डरे-सहमे रहते हैं कि पता नहीं बंदा क्या करने वाला है! इस आशंका में अगर कई बार अच्छी पहल दब जाती हैं तो उसके लिए दोषी दिल्ली के मुख्यमंत्री की राजनीतिक शैली भी है. आखिर, कार फ्री डे का प्रोग्राम सराहनीय ही तो था, उसके बाद ऑड-इवन फॉर्मूले को लागू करने के भी दूरगामी परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक ही आने वाले हैं. आलोचक इसके लिए केजरीवाल को निशाने पर लेते हुए कह रहे हैं कि यह व्यवहारिक नहीं है, इससे पल्यूशन कम नहीं होगा, इससे जनता को परेशानी होगी... बला, बला! 
उनकी आलोचना कुछ हद तक सही भी है, किन्तु इस बात से भला कैसे इंकार किया जा सकता है कि बढ़ते प्रदूषण के चिंताजनक स्तर ने लोगों को कैंसर-जनित तमाम बीमारियों की चपेट में लेना शुरू कर दिया है. पिछली साल जनवरी में जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आये थे, तब विभिन्न जगहों से खबर आयी थी कि 'दिल्ली में प्रदूषण की वजह से ओबामा महोदय' की उम्र कुछ घंटे कम हो गयी है! तब इन खबरों को झूठ समझकर अमेरिकी अधिकारियों को जी भर-भर कोसा गया था, किन्तु आज जब सुप्रीम कोर्ट समेत तमाम संस्थाओं ने हालातों पर एक्शन लेते हुए निर्देश और आदेश देने शुरू किये, तब कहीं जाकर आम और ख़ास जनों को स्थिति की गंभीरता का बखूबी अहसास हुआ. दिल्ली सरकार के पंद्रह दिवसीय ऑड-इवन से कुछ हो न हो, किन्तु जनता में इसकी चर्चा जरूर होगी और लोग कुछ कठिनाई सहकर ही सही, प्रदूषण के बारे में सक्रीय रूप से जागरूक भी होंगे. हमारे देश की मानसिकता ही कुछ ऐसी है कि अगर कानूनी रूप से किसी प्रस्ताव को शुरुआत में नहीं लागू किया जाय तो एकाध फीसदी लोगों को छोड़कर अधिकांश लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. नए वर्ष में अगर इस तरीके से ही सही, जागरूकता कुछेक फीसदी अधिक हो जाए तो इसे समझदारी भरा फैसला ही कहा जाएगा. वैसे भी, दिल्ली सरकार ने इस पूरे मामले से निपटने के लिए कई स्तरों पर बेहतरीन कार्य किया है. मैट्रो के फेरे बढ़ा दिए गए हैं तो राजधानी में चल रही 6,000 बसों के अलावा 3,000 अतिरिक्त बसें भी चलाये जाने की योजना है. 
इसके अलावा ऑटो की निगरानी के लिए व्यवस्था की जाने की बात भी सामने आयी है. मतलब कि वैकल्पिक व्यवस्था पर भी सरकार सजग होकर कार्य कर रही है. कोऑर्डिनेशन में ट्रैफ़िक पुलिस, परिवहन विभाग और सभी एसडीएम एक तारीख को सड़क पर उतरेंगे और नियमों का उल्लंघन करने वालों का 2,000 रुपए का चालान काटेंगे. इसके अतिरिक्त, दिल्ली सरकार ने 10 हजार वालंटियर्स को जागरूकता फैलाने के कार्य में लगाया है, जिससे 15 दिनों में यह सन्देश अपने प्रभावी रूप में नागरिकों तक पहुँच सके. इस पूरे परिदृश्य में दिल्ली सरकार इस बात के लिए बधाई की पात्र है कि न केवल दिल्ली में, बल्कि पूरे देश में 'प्रदूषण' को लेकर जागरूकता की एक लहर आयी है, क्षणिक ही सही, किन्तु दिल्ली में डीजल इंजिन की बड़ी डीजल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर बैन से वाहन-निर्माता कंपनियां भी सजग हो चुकी होंगी. ऐसे में प्रतीकात्मक रूप से ही सही, दिल्ली और देश के लिए केजरीवाल सरकार की ओर से नए साल की शुरुआत में यह एक बड़ा तोहफा होगा, जिसका धन्यवाद आने वाली पीढ़ियां भी करेंगी. और अगर दिल्ली सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल में प्रतीकात्मक शुरुआत से ऊपर उठकर सच में प्रदूषण पर नियंत्रण पा लिया तो वह सच में एक 'क्रांतिकारी' राजनेता साबित हो सकते हैं, जिन्हें इतिहास भी निश्चित रूप से सराहेगा. इस पूरे प्रयास की सराहना कई जिम्मेदार लोग भी कर रहे हैं, जिनमें देश के मुख्य न्यायाधीश भी हैं. सरकार ने उन्हें इस नियम से छूट दी लेकिन उन्होंने स्वेच्छा से कार पूल करने की बात कही. 
इसी तरह, एम्स निदेशक ने भी कहा है कि वह अपने उपनिदेशक के साथ कार पूल करेंगे. इस मामले में सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की भी तारीफ़ करनी चाहिए कि उन्होंने 'वीआईपी' लीग को छूट देने पर ऐतराज जाहिर करते हुए कहा था कि 'नियम सबके लिए एक ही होने चाहिए. जाहिर है, यह मुद्दा कारों का नहीं है, बल्कि यह आपके बच्चों और आने वाली पीढ़ी की ज़िंदगी का है. हालाँकि, असली जद्दोजहद 15 दिन के बाद शुरू होगी, क्योंकि परिवर्तन की लड़ाई लम्बी होती है. सार्वजनिक वाहनों का लगातार इस्तेमाल, साइकिल के प्रयोग को प्रोत्साहन, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कई चरणों में सख्ती और प्रतिबन्ध, कार-पूल के लिए प्रोत्साहन और निजी कंपनियों ओला कैब इत्यादि की तरह ऐसे एप्स विकसित करना, जो  कार-पूल का विश्वसनीय मॉडल विकसित कर सकें. इन उपायों के साथ-साथ, आईटी, फाइनेंस और ई-कॉमर्स जगत में इस बात पर भी बहस तेज़ हो रही है कि कुछ कर्मचारियों को वर्क फ़्रॉम होम का विकल्प दिया जाए. जिन्हें पब्लिक डीलिंग का काम रोज़ नहीं करना पड़ता, वे बारी-बारी से घरों से इंटरनेट के माध्यम से काम कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त ऑफिस और स्कूलों के समय में बदलाव सहित, सड़कों की निरंतर वैक्यूम-क्लीनिंग और कूड़े जलाने की समस्या पर काबू पाना एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है. खैर, आने वाले समय का बैठकर इन्तेजार करने से बेहतर है कि जागरूकता फैलाने के इस प्रयास में हम भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लें और न केवल दिल्ली को बल्कि देश के प्रत्येक प्रदूषित शहरों को मुक्त करने का संकल्प व्यक्त करें. आखिर, नए साल पर इससे बेहतर रिजोल्यूशन क्या हो सकती है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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