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राजनीतिक 'असहिष्णुता' की पराकाष्ठा - New hindi article on political intolerance, mayawati, smriti irani

बात तो यह सभी जानते हैं कि राजनीति से बढ़कर कुछ और असहिष्णु नहीं, किन्तु उसके ऐसे-ऐसे उदाहरण भी मिलेंगे, यह किसी ने शायद ही सोचा होगा! पिछले कई महीनों से 'सहिष्णुता-असहिष्णुता' को लेकर गंभीर चिंता, बवाल और सवाल हो रहे थे तो लोग इस बात को लेकर बड़ी कन्फ्यूजन में थे कि आखिर इसकी सटीक परिभाषा है क्या? तमाम विभूतियों ने इसकी कई-कई व्याख्या की, लेकिन किसी एक परिभाषा पर एक राय नहीं बन सकी. अब संसद के बजट-सत्र में बहनजी के नाम से जानी जाने वालीं बसपा सुप्रीमो ने 'असहिष्णुता' की ऐसी परिभाषा देने की कोशिश की है, जिस पर तमाम भाषाविदों और साहित्यकारों में एकमत हो सकता है! हुआ कुछ यूं कि संसद में चर्चा के दौरान जब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की बात नहीं सुनी जा रही थी तब मंत्री महोदय ने अति आत्मविश्वास या फिर अति उत्साह में सुश्री मायावती को सम्बोधित करते हुए कह डाला कि 'मेरी बात आप सुन लीजिये और अगर आप संतुष्ट नहीं हुईं तो अपना सिर काटकर आपके चरणों में रख दूँगी!' उस समय तो मायावती ने कुछ नहीं बोला, लेकिन बाद में उन्होंने प्रेस के सामने बयान दे दिया कि वह स्मृति ईरानी के बयान से संतुष्ट नहीं हैं और अब मानव संशाधन मंत्री को अपना सिर उनके चरणों में पेश करना चाहिए! बिचारी स्मृति ईरानी तो बुरी फंस गयी, उन्होंने ऐसी 'असहिष्णुता' की उम्मीद कतई नहीं की होगी. हालाँकि, मायावती जी के इस 'असहिष्णु' राजनीति पर जमकर चटकारे लिए जा रहे हैं और 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' की तुलसी को राजनेताओं द्वारा मिली 'सीख' के बारे में भी जमकर लिखा जा रहा है. आखिर, राजनेता कितने असहिष्णु होते हैं, यह बात एक बार फिर साबित हो गयी. अगर आपने कोई ऐसा मुहावरा जैसे 'आपके लिए तो मैं जान भी दे दूंगा' गलती से बोल दिया तो राजनीति की असहिष्णुता आपकी जान भी ले सकती है! रोहित वेमुला मामले में स्मृति ईरानी के 'सिर अर्पण' की मांग रखने वाली बीएसपी प्रमुख ने सदन के बाहर भी केंद्रीय मंत्री को जमकर कोसा. 

अपनी छवि के अनुरूप आक्रामक रवैया अख्तियार करते हुए मायावती ने कहा कि संसद की लॉबी में आकर स्मृति ने उनसे माफी मांगी थी, जिस पर उन्होंने माफ भी कर दिया था. लेकिन दुर्गा और महिषासुर के नाम पर केंद्र सरकार अब देश के दलितों और आदिवासियों को बदनाम कर रही है. वाह री राजनीति! देखिये तो असहिष्णुता की पराकाष्ठा, इसमें लोग किसी का सिर मांग रहे हैं तो देवी दुर्गा और महिषासुर को भी घसीट लिया जा रहा है. महिषासुर भी कहीं ऊपर से देख रहा होगा तो अपने ऊपर शर्म कर रहा होगा और सोच रहा होगा कि अच्छा हुआ कि मेरा वध, देवी दुर्गा ने कर दिया, वरना आज की राजनीतिक देवियाँ तो उसका न जाने क्या, क्या कर डालतीं! गौरतलब है कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला पर केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के जवाबों पर होहल्ला मचा हुआ है. यूपी में मुख्य रूप से दलित वोट बैंक पर राजनीतिक बिसात बिछाने वाली बीएसपी प्रमुख ने कहा, 'दुर्गा मां और महिषासुर के नाम पर देश के दलितों और आदिवासियों को बदनाम किया गया है. सीता की रक्षा करने वाले दलित और आदिवासी के लोग थे. महिसाषुर मामला इसलिए उठाया गया, क्योंकि सरकार रोहित वेमुला का मामला दबाना चाहती है.' भई, इस पूरे मामले में और कुछ साबित हुआ अथवा नहीं हुआ, लेकिन यह जरूर साबित हो गया कि 'असहिष्णुता' के मामले में 'राजनीति' और राजनेताओं / राजनेत्रियों का कोई सानी नहीं है. काश! यह देश की जनता भी समझ जाती और राजनीति के दांव-पेंच में उलझकर लड़ने की बजाय एक-दुसरे के प्रति 'सहिष्णुता' से पेश आती. हालाँकि, यह मामला केवल मायावती तक ही सीमित हो ऐसा भी नहीं है, बल्कि दूसरी कई विभूतियाँ इस तरह का असहिष्णु उदाहरण पेश करने में कोताही नहीं कर रही हैं और इनमें कांग्रेसी दिग्गी राजा भी एक बार फिर सामने आ गए हैं. उन्हें आज़ाद भारत और गुलाम भारत का फर्क भी भूल गया लगता है. अपने एक बयान में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने देशद्रोह के इल्जाम में गिरफ्तार किया था. आगे उन्होंने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल कई लोगों के खिलाफ देशद्रोह निरोधक कानून का इस्तेमाल किया गया था. अब उन्हें कौन समझाए कि ब्रिटिश भारत और आज़ाद भारत में फर्क लाखों भारतीयों के खून का है! मगर बेहद मुश्किल है ऐसे लोगों को समझाना, जो राजनीति को कभी हास्य का विषय तो कभी असहिष्णुता की पराकाष्ठा तक पहुंचा देते हैं. 

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