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महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल - Women safety analytic, hindi article by mithilesh, snapdeal dipti sarna kidnapping

निर्भया का बहुचर्चित मामला जब घटित हुआ और उसे लेकर जो देश भर में गुबार उठा, उससे एकबारगी लगा कि स्थिति में कुछ विशेष बदलाव तो जरूर ही आएंगे, मगर यह स्थिति कब दिवास्वप्न में बदल गयी, इसका आभाष ही किसी को न हुआ! आज के आधुनिक युग में भी लडकियां किस हद तक असुरक्षित हैं, इस बात की बानगी आपको लगभग रोज के ही अख़बारों में देखने को मिल जाएगी. जो ताजा मामला अभी सामने आया है, उसने बड़े स्तर पर चर्चा बटोरी है तो इस बात की भूमिका भी तैयार की है कि हम इस तरफ ध्यान दें कि लड़कियों की सुरक्षा करने में प्रशासन कितना सजग है तो समाज में किस स्तर का बदलाव है. हालाँकि, नामी गिरामी शॉपिंग वेबसाइट स्नैपडील में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर कार्यरत दीप्ति सरना अपने गाजियाबाद स्थित घर पहुंच गई है. सॉफ्टवेयर इंजीनियर दीप्ति ने पुलिस को पूछताछ में बताया है कि उसका चार बदमाशों ने अपहरण किया था. उसे कार में बिठाकर नरेला लेकर गए और वहां पर छोड़ दिया. जो और ब्यौरा सामने आया है, उसके अनुसार अपहरण के दौरान उसकी आंखों में पट्टी बाँधी गयी थी तो बदमाश आपस में बात भी कम कर रहे थे. यह पहली नज़र में ख़ुशी की बात हो सकती है कि इस लड़की को किसी प्रकार का नुक्सान नहीं पहुंचा है, जिसकी पुष्टि उसके परिजनों ने भी की है. परिजनों ने यह भी बताया है कि दीप्ति ने किसी राहगीर के फोन से घर पर अपने सुरक्षित होने की जानकारी दी थी. गौरतलब है कि दीप्ति के अपहरण से पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया था. ऑटो में सवार हुई इंजीनियर दीप्ति का अपहरण दिल्ली से सटे वैशाली मेट्रो स्टेशन से बताया गया है. इंजीनियर दीप्ति के अपहरण ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक की नींद उड़ा दी थी. उन्होंने ट्वीट कर बताया कि राज्य की पुलिस इस मामले को प्राथमिकता से ले रही है. निश्चित रूप से मुख्यमंत्री की तत्परता और सजगता की तारीफ़ होनी चाहिए तो स्नैपडील के अभियान को भी सराहा जाना चाहिए, जिससे शायद बदमाशों पर दबाव पड़ा और उन्होंने लड़की को वगैर कुछ किये रिहा कर देना ही उचित समझा! 

स्नैपडील ने #HelpFindDipti के नाम से सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू की थी और लोगों से अपील की थी कि दीप्ति से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी मिलने पर ट्विटर पर डाइरेक्ट मैसेज के जरिये शेयर करें. दीप्ति के अपहरण के बाद उसके ऑफिस के सहकर्मियो ने स्नैपडील की साइट पर उसे तलाशने के लिए अपील डाली थी. इस अपील में उसकी फोटो के साथ पूरी डिटेल लिखी गई थी. इस बारे में स्नैपडील के सह संस्थापक कुनाल बहल भी एक्टिव रूप में सामने आये, जिसे एक अच्छी पहल कहा जाना चाहिए. इस मामले में सीधा-सीधा शक ऑटो ड्राइवर पर ही जा रहा है, क्योंकि ऑटो में बैठने के बाद दीप्ति ने अपने घर पर फोन किया और बताया कि वह रास्ते मे हैं. इसके बाद उसने बैंगलुरु में अपने दोस्त को फोन किया, जिसने पुलिस को कथित तौर पर बताया कि ऑटो ड्राइवर दीप्ति को जबरन किसी दूसरी जगह ले जा रहा था और दीप्ति उसे ऐसा करने पर डांट रही थी. इसके बाद से दीप्ति का फोन बंद है. ऐसे में गाजियाबाद में सक्रिय ऑटो गैंग पर भी शक जताया जा रहा है, जिस बारे में पुलिस को आगे के लिए भी सचेत रहने की आवश्यकता जान पड़ेगी. आखिर, मेट्रो शहरों में लडकियां घर से बाहर निकलती ही हैं, देर शाम तक कार्य भी करती हैं, ऐसे में अगर ऑटो और कैब ड्राइवर्स उनका शोषण करने लगें वह भी गैंग के रूप में, तब यह पूरे शहर और हमारे कल्चर के लिए ही चिंता का विषय बन जाता है. हालाँकि, इस मामले में कुछ संदिग्ध बातें भी सामने आयी हैं, जिस पर पुलिस को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. मसलन, पुलिस ने उसे मेडिकल के लिए हॉस्पिटल भेजा, जहां मेडिकल कराने से इनकार करते हुए लड़की फैमिली के साथ लौट गई. हालाँकि, यह उसका व्यक्तिगत फैसला हो सकता है, किन्तु ऐसा भी हो सकता है कि लड़की को डराने-धमकाने की कोशिश की गयी हो! अगर ऐसा है तो पुलिस को निश्चित रूप से आगे की छानबीन में इस एंगल को रखना पड़ेगा, क्योंकि अपराधी निश्चित रूप से लड़की के संपर्क में भविष्य में भी आने की कोशिश करेगा! इस पूरे मामले में जो सकारात्मक बात निकल कर सामने आयी है, वह निश्चित रूप से पुलिस की सक्रियता है. यूपी के 220 पुलिसवाले दीप्ति की तलाश कर रहे थे, जिनमें कई आईपीएस भी थे.

 दीप्ति की खोज के लिए ड्रोन कैमरों की मदद भी ली गई थी तो आईबी टीम भी मामले पर नजर रख रही थी. साफ़ है कि अगर आम लड़कियों के मामले में भी पुलिस इतनी सक्रियता से कार्य करे तो असामाजिक तत्वों में एक खौफ का माहौल जरूर पैदा होगा! चूँकि, अभी जांच प्राथमिक स्तर पर ही है, इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन पुलिस-प्रशासन को दीप्ती की वापसी से ही राहत की सांस नहीं लेनी चाहिए, बल्कि इसमें शामिल लोगों का पर्दाफाश बेहद आवश्यक है, क्योंकि हर मामला इतनी तेजी से हाई-प्रोफाइल नहीं बन सकता, जिससे बदमाश दबाव में आ जाएँ. खुदा न खास्ता, अगर किसी और लड़की पर यह लोग हाथ डालें .... ... उससे पहले ही कानून की पहुँच उन तक सुनिश्चित की जानी चाहिए! ऐसा भी नहीं है कि महिला सुरक्षा का विषय सिर्फ मेट्रो शहरों और तथाकथित 'ऑटो-गैंग' तक ही सीमित हो! पिछले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं, पुरुषों से किसी लिहाज से पीछे नहीं हैं. देश में करीब 2.70 करोड़ महिलाएं कमाती हैं और अपने दम पर परिवार चलाती हैं. जहां तक देश में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल है, कानून तो हैं, लेकिन उन्हें दरकिनार कर अपराध होते रहे हैं. 2009 में सीबीआई के अनुमान के मुताबिक 30 लाख लड़कियों की तस्करी की गई, जिनमें से 90 फीसदी देह-व्यापार में धकेल दी गईं. नेशनल क्राइम ब्यूरो का कहना है कि 1971 से 2012 के बीच दुष्कर्म के मामलों में 880 फीसदी बढ़ोतरी हुई है तो  गत तीन वर्षों में कन्या भ्रूण हत्या के 1.2 करोड़ मामले दर्ज हुए हैं, यहां तक कि ग्रामीण इलाकों की 56 फीसदी महिलाएं सुरक्षा कारणों से स्कूल-कॉलेज नहीं जातीं. हर साल 9 हजार महिलाएं दहेज की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाती हैं. इन आंकड़ों को थोड़ा और व्यापक करें तो एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर 15 सेकंड में एक महिला मारपीट या किसी प्रकार के अत्याचार का शिकार होती है. हर साल करीब 7 लाख महिलाएं दुष्कर्म की पीड़ा झेलती है. रिपोर्ट का दुखद पहलू यह है कि 40 फीसदी भारतीय महिलाएं पति की प्रताड़ना की शिकार बनती हैं. यह आंकड़ा तो तब है जब घरेलू हिंसा यौन शोषण के 50 प्रकरणों में से एक ही पुलिस तक पहुंचता है. जाहिर है कि मामला सिर्फ बाहर तक ही हो ऐसा कतई नहीं है और हर स्तर पर कार्य किये जाने की आवश्यकता है. कभी निर्भया तो कभी दीप्ती का मामला हाई-प्रोफाइल बन जाता है तो हम इस बाबत थोड़ी-बहुत चर्चा कर लेते हैं, किन्तु उसके बाद मामला फिर क्यों शांत हो जाता है, इस बात की भनक किसी को लगती ही नहीं! जरूरत है, ऐसे अवसरों का समग्र उपयोग करने का और महिला सुरक्षा पर ठोस नीतियों के साथ कार्यान्वयन का भी, क्योंकि अगर हम इतना भी नहीं कर पाये तो फिर हमें सभ्य कहलाने का नैतिक अधिकार नहीं!

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