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सलमान खान सहित समाज भी है 'बदजुबानी' की गिरफ्त में! Salman khan rape statement, social issue article, Mithilesh

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हालाँकि, इस लेख का शीर्षक अपेक्षाकृत नरम है अन्यथा सलमान खान का 'महिलाओं के रेप' की तुलना अक्षम्य है. पर इस सिलसिले में हम देखते हैं तो पाते हैं कि 'बदजुबानी' आम बोलचाल में हर जगह ही बढ़ रही है. अगर एक दोस्त उदास है तो उसका दूसरा दोस्त मजाक में उससे पूछ बैठता है कि 'तेरा रेप तो नहीं हुआ है'? और फिर सब मिलकर ठहाके लगाते हैं. फिल्मों में सेंसरशिप को लेकर काफी कुछ बातें कही गयीं और 'उड़ता पंजाब' में कट्स लगाने के लिए पहलाज निहलानी को सेंसर बोर्ड के चेयरमैनशिप से हटाने की बातें होने लगीं, पर इस पूरी फिल्म में 'गाली' और बदजुबानी के अतिरिक्त है ही क्या? आप मानें या न मानें, किन्तु आज सभी के जीवन में अनर्गल शब्द, बदजुबानी घुल चुकी है और चूंकि आप वैसे ही शब्द अक्सर इस्तेमाल करते हैं तो कई बार सार्वजनिक भी वह आपके मुंह से निकल ही जाता है. यह कोई माफ़ी मांगने या देने का विषय नहीं है, बल्कि सोचने और विचरने का विषय है कि हम आज व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में किस तरह की शब्दावलियों का इस्तेमाल करने लगे हैं, वह भी धड़ल्ले से! निश्चित रूप से सलमान (Salman khan rape statement) इसी का शिकार हुए हैं और बेशक वह अपनी गलती मानें, उनके पिता सलीम खान माफ़ी मांगे, किन्तु यह प्रश्न तो सामने आ ही जाता है कि हमारा समाज आखिर किस दिशा में आगे बढ़ रहा है? 

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कभी 'दबंग' तो कभी 'वांटेड' तो कभी 'बॉडीगार्ड' के नाम से मशहूर बॉलीवुड के बैडबॉय सलमान खान फिर से लोगों के बीच चर्चा के विषय बने हुए हैं. हालाँकि, इस बार उन्होंने ना ही किसी हिरन को मारा है और ना ही लोगों के ऊपर अपनी गाड़ी चढ़ाई है, बल्कि बोलते-बोलते इनकी जुबान फिसली है. जी हाँ, अपनी आने वाली फिल्म सुल्तान को लेकर हो रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार को जवाब देते सलमान ने अपना दर्द बयां किया कि 'शूटिंग के बाद वो इतना थक जाते थे कि वो चल नहीं पाते थे, उनका पैर लड़खड़ाने लगता था और ऐसी में वो रेप पीड़ित महिला (Salman khan rape statement) की तरह महसूस करते थे. जाहिर है, बोलते-बोलते एक बेहद घटिया और स्तरहीन तुलना का शब्द सलमान ने बेहद आसानी से निकाल दिया था और फिर हंगामा तो होना ही था. सब और सलमान की आलोचना शुरू हो गयी, कुछ उनके खिलाफ बोल रहे हैं तो कुछ उनके पक्ष में भी बोलने वाले हैं. खैर इस हंगामे से सलमान को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा होगा, क्योंकि उन जैसों के लिए तो ये आम बात है. बल्कि, इस बात के लिए बुद्धिजीवी वर्ग और समाजशास्त्रियों को उनका "शुक्रिया अदा" करना चाहिए कि सलमान ने हमारे सामने एक ऐसा मुद्दा छोड़ा है जिस पर गहराई से सोचने की जरुरत आ पड़ी है. यह बेहद अजीब बात है कि इस गम्भीर 'बदजुबानी मुद्दे' की तरफ लोगों का ध्यान न जाकर, सारा फोकस इस बात पर है कि सलमान ने इतनी असंवेदनशील बात कैसे बोल दी. 

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हालाँकि, महिला आयोग का कारण बताओ नोटिस भेजना बिलकुल जायज़ है, किन्तु लोगबाग यह जरूर सोचें कि आखिर हमारा समाज बदजुबानी का बिंदासपन से प्रयोग क्यों करने लगा है? 'बलात्कार' जैसे शब्द की तुलना करने वाले एक व्यक्ति को अगर इतना भी पता नहीं है कि जब एक औरत की आबरू उतरती है, तो तकलीफ शरीर में ही नहीं दिमाग और आत्मा तक में होती है. उसकी अंतरात्मा के चीथड़े उड़ जाते हैं, और उसका स्वाभिमान पैरों तले रौंदा जाता है. ठीक से चल न पाना तो बस ऊपरी दर्द है. लेकिन फिर भी इस वाकया के लिए जो आलोचना हो रही है वो गलत नहीं है, बल्कि गलत ये है कि हम इस 'बदजुबानी' की तह तक जाने कि चेष्टा नहीं ही रही है. सलमान ने यह जो बात बोली है, ऐसा नहीं है कि यह 'अजूबा' बोल है. बल्कि ऐसी भाषा तो हमारी आम बोल चाल में गहराई से शामिल हो चुकी है. युवा तो युवा वरिष्ठ लोग भी जब आज कल एक दूसरे से मिलते हैं, बैठक-बाजी चलती है तो अश्लील शब्दों (Salman khan rape statement) का प्रयोग धड़ल्ले से किया जाता है. मेट्रो, बस, ट्रैन जैसी सार्वजनिक जगहों पर भी लोग एक दूसरे से अश्लीलता भरे शब्दों में बातें करते हैं वहां तो उन्हें कोई नहीं टोकता भाई क्या बोल रहे हो. तेरी माँ, उसकी बहन की जैसे शब्द तो भजन की तरह प्रयोग किये जा रहे हैं. क्या ये 'रेप विक्टिम' जैसे बयान से कम है? लेकिन लोग ऐसे शब्द रोज बोलते हैं बिना इसके अर्थ पर गहराई से सोचे. यह एक तथ्य है कि हम आदी हो गए हैं इन शब्दों के और समाज भी इसका विरोध नहीं करता है. 

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आखिर, एआईबी (AIB) जैसे गाली-गलौंज वाले शो की आलोचना करने वाले से ज्यादा उसके पक्ष लेने वाले हैं. क्या ए-ग्रेड, क्या बी और सी ग्रेड अभिनेता हों, आज सार्वजनिक मंचों पर धड़ल्ले से गालियां बकते हैं, महिलाओं का अपमान करते हैं, लेकिन ऐसे बक*** को समाज छूट क्यों देता है, यह बात समझ से बाहर है. डेल्ही-बेली, उड़ता पंजाब जैसी फिल्मों में गलियां सुनके हमें बुरा नहीं लगता क्योंकि ये तो स्क्रिप्ट की मांग होती है, फिर वैसी ही फिल्मों में कम करने वाला, वैसी ही दुनिया में रहने वाला एक अभिनेता जब मुंह से गलियां निकलता है तो फिर हम दिखावे के लिए खूब चिल-पों मचाते हैं, मानो हम कितने ईमानदार हैं? अरे भाई, अगर तुम्हें सलमान के शब्द बुरे लगे हों तो उसे खूब कोसो, उसके खिलाफ मुकदद्मे करो, लेकिन समाज में भी तो बदजुबानी का विरोध करो! और सबसे बड़ी बात खुद भी 'अश्लील, अपमानजनक' शब्दों का इस्तेमाल बंद करो, ऐसी फिल्मों का विरोध करो. अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर थोड़े होहल्ले के बाद मुद्दा ख़त्म हो जायेगा और फिर गाड़ी वहीं की वहीं ठहरी रहेगी! 

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सलमान को तो उसकी गलती (Salman khan rape statement) की सजा मिल गयी, क्योंकि जिसका 75 साल पिता सबके सामने अपने बेटे की गलती के लिए माफ़ी मांगे तो ये किसी सजा से कम नहीं है. और जहाँ तक सलमान के माफ़ी मांगने की बात है तो वो भी आज नहीं तो कल माफ़ी मांग ही लेंगे, लेकिन इससे क्या बदलाव आएगा हमारे समाज में! वैसे भी जो बाद में खबर आयी, उसमें यह स्पष्ट हुआ है कि उस 'प्रेस-कांफ्रेंस' में गलत शब्द निकालते ही सलमान को अहसास हो गया था, लेकिन एक समाचार-पत्र ने इसे अपनी हेडलाइन बनाकर भरपूर बेचा! ऐसे में क्या इस तरह की मीडियाई मानसिकता दोषी नहीं है, जो बदजुबानी में अपनी टीआरपी देखती है. बेहद आवश्यक है कि इस बीमारी की जड़ में हम जाएँ और इसका सही इलाज करने को उत्सुक हों. यही एकमात्र रास्ता है अपनी पीढ़ियों को इस बदजुबानी की लत से बचाने के लिए, अन्यथा सब एक-दुसरे की कमियों पर हाथ सेकेंगे और समस्या जस की तस बनी रहेगी!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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