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राम मंदिर पर चुनावी राजनीति ठीक नहीं! Ram Mandir, Political Articles, Hindi, New, UP Election 2017



भारतीय जनता पार्टी अब न केवल देश की सबसे बड़ी पार्टी है, बल्कि केंद्र सहित देश के आधे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में काबिज़ भी है, तो निश्चित रूप से उसकी जिम्मेदारियां भी पहले से अलग होनी ही चाहिए. इस सन्दर्भ में अगर किसी एक पार्टी पर आप जाति या धर्म के नाम पर राजनीति करने का इल्ज़ाम लगाएं तो यह गलत और अन्यायपूर्ण होगा, क्योंकि हमाम में सभी नंगे रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी पर तो राम मंदिर को लेकर राजनीति करने के आरोप दशकों से लगते रहे हैं, पर सवाल 21वीं सदी की राजनीतिक नियमावली को लेकर है. अभी गोवा में ब्रिक्स देशों की बैठक हुई, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भाग लिया और इस बैठक में पीएम मोदी ने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद फैलाये जाने को लेकर कड़ी निंदा की, पूरी दुनिया को पाकिस्तान द्वारा इस्लामिक आतंकवाद फैलाये जाने के बारे में जागरूक किया. आतंकवाद के खिलाफ इस बैठक में चीन को छोड़कर बाकी देशों का समर्थन खुलकर मिला, तो इस बैठक से इतर दूसरे सम्मेलनों जैसे सार्क इत्यादि में भी पाकिस्तान द्वारा फैलाये जा रहे इस्लामिक आतंकवाद पर भारत और भारत के प्रधानमंत्री को खूब समर्थन मिला. आप कहेंगे कि इन सभी बातों का राम मंदिर से क्या सम्बन्ध है? तो साहब, सम्बन्ध यह है कि एक तरफ तो आप वैश्विक स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद, अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर पूरे विश्व को जागरूक कर रहे हैं, किन्तु दूसरी ओर भारत की सबसे बड़ी पार्टी के नेता राम मंदिर मुद्दे पर बयानबाजी करने से नहीं चूकते हैं. लगभग तीन दशक से यह मुद्दा चल रहा है और अब अदालत में विचाराधीन है तो फिर किसी खास चुनाव के समय इसके नाम पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश से हमारे देश की राजनीति एक कदम आगे बढ़ने की बजाय दो कदम पीछे जाती नज़र आती है. इस बात में शायद ही दो राय हो कि जाति-धर्म-सम्प्रदाय की राजनीति ने इस देश को बहुत नुक्सान पहुंचाया है. यहाँ तक कि आज़ादी के बाद देश का बंटवारा भी धर्म के ही आधार पर हो गया और लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ा. तो क्या 21वीं सदी में भी हम चुनावी राजनीति में इन्हीं धार्मिक मुद्दों के सहारे राजनीति करेंगे? पहले किसने क्या कहा, क्या किया इसको छोड़िये पर अब नयी पीढ़ी की खातिर राम मंदिर जैसे मुद्दों को राजनीति से दूर रखिये. Ram Mandir, Political Articles, Hindi, New, UP Election 2017

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हाँ, अगर अदालत से इतर आपको यह मुद्दा इतना ही जरूरी लगता है तो उसके लिए संसद में प्रयास कीजिये, जैसा कि शिवसेना ने अपने एक बयान में कहा है. विपक्षियों की छोड़िये, किन्तु अगर भाजपा की ही सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना कहती है कि राममंदिर मुद्दे पर भाजपा राजनीति कर रही है तो ऐसे में मामला थोड़ा चिंतनीय हो जाता है. पिछले दिनों लखनऊ में दशहरा समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भागीदारी अखिलेश यादव ने चुटकी ली और कहा कि अगर बिहार में चुनाव होते तो प्रधानमंत्री वहां रावण-दहन पर जाते. खैर, अखिलेश के कथन को भाजपा विपक्ष का कथन कह कर खारिज कर सकती है, किन्तु  इसी सन्दर्भ में शिवसेना ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा राममंदिर के नाम पर मत सुदृढ़ करने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही, शिवसेना ने यह भी जानना चाहा कि कौन सी चीज भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत का उपयोग अयोध्या में मंदिर के निर्माण करने से रोक रही है और राममंदिर के मुद्दे पर सिर्फ नारेबाजी तक सीमित कर रही है. इतना खुलेआम कथन बदलती परिस्थितियों में राजनीतिक धांधली पर सवाल तो खड़ा करता ही है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कहा कि ‘‘लखनऊ में दशहरा मनाना और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के पीछे का पूरा विचार राममंदिर बनाने के नाम पर आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में वोट हासिल करना है.’’ थोड़ी और कड़ाई से शिवसेना के मुखपत्र के संपादकीय में यह भी कहा गया कि भाजपा को अब घोषणा कर देनी चाहिए कि वह राम मंदिर के मुद्दे पर और कितना राजनीति करना चाहती है? इस सन्दर्भ में, केन्द्र और महाराष्ट्र में भाजपा नीत गठबंधन सरकार में शामिल शिवसेना ने सवाल किया कि ‘‘लोकसभा में आपके पास (भाजपा के पास) 280 सीटें हैं और शिवसेना जैसी अन्य पार्टियों के साथ आपके पास 300 से ज्यादा सीटें हैं. अगर, अब राम मंदिर का निर्माण नहीं हो सका तो कब होगा?’’ शिवसेना को हम पसंद या नापसंद कर सकते हैं किन्तु इस मामले में वह ठीक ही तो कह रही है कि अगर आपको मंदिर बनवाने की इतनी ही फ़िक्र है तो आप कानून लाइए लोकसभा में, अन्यथा इस पर राजनीति करना बंद कीजिये. इस मुद्दे को दूसरे कई भाजपा नेता भी हवा देने में जुट गए हैं, मसलन भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो खुलकर कहा है कि अगर उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा जीत हासिल करना चाहती है तो उसे राम मंदिर का मुद्दा उठाना ही पड़ेगा. Ram Mandir, Political Articles, Hindi, New, UP Election 2017




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एक अन्य भाजपा सांसद साक्षी महाराज का भी हाल ही में कुछ ऐसा ही बयान था तो केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने अयोध्या जाकर राम का म्यूजियम बनवाने का राग छेड़ दिया है. इन बातों से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, किन्तु सिर्फ चुनाव की दृष्टि से यह कार्य हों तो निश्चित रूप से खटकता है. सवाल उठता ही है कि अयोध्या में प्रस्तावित भगवान राम का म्यूजियम चुनाव बाद भी मेंटेन रहेगा, उस पर उतना ही ध्यान दिया जाएगा अथवा बाद में सब टांय टांय फिस्स !! राम मंदिर को लेकर हाल-फिलहाल इससे जुड़े कई नेता सुप्रीम कोर्ट तक में जल्दी सुनवाई के लिए याचिका डालने की बात ऑफिशियली / अनॉफ़िशियली व्यक्त कर चुके हैं. खुद सुब्रमण्यम स्वामी ने इलाहाबाद के एक कार्यक्रम में अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी दाखिल किये जाने का एलान किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि अपनी इस अर्जी के ज़रिये वह अदालत से राम मंदिर विवाद का निपटारा दो महीने में किए जाने की अपील करेंगे. सवाल वही है कि राजनीतिक पार्टियां राजनीति नहीं करेंगी तो क्या करेंगी, पर इसके साथ जुड़ा सवाल वही है कि जनता को ठगने वाली राजनीति हमारा देश कब तक करता रहेगा? भाजपा जब विपक्ष में थी, छोटी पार्टी थी तब उसका असर कुछ कम था, पर अब तो जैसा वह करेगी, उसी को दूसरे भी फॉलो करेंगे! तो क्या 21वीं सदी में भी हम वही करने वाले हैं जिनके कारण हमारा देश उस तरह से डेवलप नहीं हो पाया, जैसा कि जापान हुआ, साउथ कोरिया हुआ या फिर दूसरे विकसित देश! क्या वाकई इस तरह के मुद्दे उठाने से गरीबी रेखा से नीचे की हमारी 22% जनसँख्या (2012 में सरकार द्वारा घोषित) रोटी और रोजी की समस्या से उबर जाएगी? अगर सवाल किसी क्षेत्रीय दल या छोटी पार्टी का होता तो शायद इतना ध्यान नहीं दिया जाता, किन्तु बात जब भारत के सबसे बड़े दल की हो तो उसकी राजनीति सीधे-सीधे देशहित से जुड़ी होनी चाहिए, न कि ध्रुवीकरण की राजनीति का बारम्बार दुहराव करते रहना चाहिए. भाजपा जैसी पार्टी से उम्मीद की जा सकती है कि वह इन मुद्दों को समझे ताकि देश में एक नयी तरह की राजनीति का जन्म हो, जो धर्म और जाति के बंधन से दूरी बनाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के ऊपर केंद्रित हो. जाहिर है, तभी हमारा देश सार्क, ब्रिक्स या फिर यूएन जैसे वैश्विक संस्थानों में अपनी धाक जमा पायेगा और तभी डबल डिजिट ग्रोथ के आंकड़े को भी छू सकेगा. इसके लिए निश्चित रूप से धर्म और जाति की संकीर्ण राजनीति को सभी को छोड़ना होगा, खासकर भाजपा को तो निश्चित रूप से! Ram Mandir, Political Articles, Hindi, New, UP Election 2017

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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