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बात खुल गयी है अब

भाजपा नेता और कार्यकर्त्ता बड़े ज़ोर शोर से अपनी सरकार के एक साल पूरा होने का जश्न मना रहे हैं. जश्न आखिर मनाएं भी क्यों नहीं, एक तो उनकी पार्टी के लम्बे संघर्ष के बाद केंद्र में कोई पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है, और न सिर्फ सरकार बनी है, बल्कि नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व भी मिला है, जिसने अपना अश्वमेघ का घोड़ा ही दौड़ा दिया है पूरे विश्व में. ज़मीनी स्तर पर सरकार के कार्यों का लेखा जोखा में करने में कोई आलोचक किन्तु परन्तु बेशक करे, किन्तु सरकार के इकबाल में कोई कमी नहीं दिखती है. कई समाचार-पत्र समूहों ने भी सरकार को अच्छे नंबर दिए हैं, तो जनता में भी उसकी लोकप्रियता लगभग यथावत बनी हुई है. किन्तु, इन सभी बातों पर नरेंद्र मोदी के चेले पानी फेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. पुराने बयानों को छोड़ भी दिया जाय तो, कुछ दिन पहले तेज-तर्रार रक्षा मंत्री का बयान बड़ा हैरत में डालने वाला था, जिसमें उन्होंने आतंकियों के खिलाफ आतंकियों के इस्तेमाल की पैरवी की थी. हम आप कह सकते हैं कि इसमें उन्होंने कुछ गलत या सही कहा, किन्तु एक रक्षा मंत्री का बयान देश की छवि और नीतियों के ऊपर लम्बे समय तक प्रभाव छोड़ता है. इसका तात्कालिक प्रभाव भी तुरंत ही पड़ा और पाकिस्तान जैसे कुख्यात और खतरनाक राष्ट्र ने भारत के ऊपर कूटनीतिक हमला कर दिया और कई मनगढंत आरोप जड़ दिए. आईआईटी से पढ़े मनोहर पर्रिकर भावना में बह गए या किसी नीति के तहत उन्होंने यह बयान दिया, यह तो वही जानें, लेकिन भारतीय सन्दर्भ में यह एक नयी बात थी, जो खुलेआम कही जा रही थी. ऐसा भी नहीं है कि किसी देश की सरकार किसी अन्य देश में छुपकर कोई कार्य नहीं कराती है, लेकिन इस तरह की खुली स्वीकारोक्ति या आतंक के लिए समर्थन देश की कूटनीति के लिए घातक साबित हो सकता है. खैर, इनके बयानों पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जैसे तैसे लीपापोती की. इसके बाद नरेंद्र मोदी के सेनापति अमित शाह की बारी थी. दिल्ली चुनाव के पहले उन्होंने काले धन वाली बात को 'जूमला' कह कर जो लानत-मलानतें झेली थीं, वैसा ही कुछ बयान सरकार के एक साल पूरा होने के समय उन्होंने दिया है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 'राम मंदिर' जैसे बीजेपी के कोर मुद्दों पर सरकार इसलिए काम नहीं कर पा रही, क्योंकि इसके लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है.' अमित शाह ने आगे कहा, 'सरकार को अब भी इतना बहुमत नहीं मिला है, जितना कोर मुद्दे पर कार्य करने के लिए होना चाहिए. यही नहीं, प्रश्न पूछने वाले को संविधान पढ़ने की सीख देते हुए शाह ने कहा कि आपको पता होना चाहिए कि सरकार को इसके लिए लोकसभा में 370 सीटें चाहिए, संविधान पढ़ लीजिए'. अब भला अमित शाह जी को कौन समझाए कि जनता अब इतनी भी अनपढ़ नहीं है. वह संविधान भी पढ़ना जानती है और आपके राजनीतिक एजेंडे को भी बखूबी समझती है. सच बात तो यह है कि अब कोई बात दबी छुपी नहीं रह गयी है, जिसे अमित शाह या राजनाथ सिंह दोबारा समझाएं. राम मंदिर के मुद्दे पर ही बयानबाजी से तंग होकर संतों के एक प्रमुख समूह ने भाजपा नेतृत्व से प्रार्थना की थी कि वह राम मंदिर की फिक्र छोड़ दें और देश की अर्थ व्यवस्था सहित किसानों की दुर्दशा इत्यादि को पटरी पर लाने की सोचें, राम मंदिर, कोर्ट के फैसले के बाद संत समुदाय खुद ही बना लेगा. देश की जनता भी यही चाहती है अमित शाह जी कि अब आप लोग चुनावों में वोट मंदिर या धारा ३७० के नाम पर न मांगें. अब बात खुल चुकी है और आप अपनी राजनीति रोजी, रोजगार और अर्थ व्यवस्था पर ही केंद्रित रखिये, अन्यथा नरेंद्र मोदी अपने कामों से जितना डिस्टिंक्शन हासिल करेंगे, आप लोग गुड-गोबर करते जायेंगे. एक साल पूरा होने के समय जनता ने यही भावना व्यक्त की है, सुन सकते हैं तो सुन लीजिये. अन्यथा बिहार चुनाव के समय जनता अपना फैसला सुनाने को उत्सुक है ही.

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