यह समस्त संसार दुष्ट एवं सज्जन व्यक्तियों से ही भरा हुआ है. ऐसे में जिस मनुष्य को इनकी पहचान हो जाए, उसके लिए जीवन सरल, सहज हो जाता है और अगर हम इनको पहचान न सकें तो फिर इधर-उधर भटकते रहते हैं. हमारे आपके जीवन में ऐसा कितनी बार होता है कि हम अनजाने में दुष्ट व्यक्तियों पर भरोसा कर बैठते (Good people, Bad People, Shri Ramcharit Manas, Hindi Article, Trust, Belief) हैं और हमें इसका स्वाभाविक बुरा परिणाम भोगना पड़ता है. इन पीड़ाओं के फलस्वरूप हमारा विश्वास अच्छे व्यक्तियों पर से भी उठ जाता है और सज्जनों की संगति से हम फिर वंचित रह जाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण की शुरुआत में ही इसका ज़िक्र विस्तार से किया है. पृष्ठ 24 पर वर्णित एक चौपाई देखिये-
मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा, तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा ॥
बायस पलिअहिं अति अनुरागा, होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा ॥
(मैंने अपनी ओर से विनती की है, परन्तु वे अपनी ओर से कभी नहीं चूकेंगे। कौओं को बड़े प्रेम से पालिए, परन्तु वे क्या कभी मांस के त्यागी हो सकते हैं?)
इससे पिछले अध्याय यहाँ पढ़ें: श्रीरामचरित मानस: हर युग, हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक...
संयोगवश, यह पंक्तियाँ जब लिख रहा हूँ, तब भारत का 70वां स्वतंत्रता दिवस पास ही है और इसी समय पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत का मस्तक कश्मीर घायल है. ऐसे में पाकिस्तान और चरमपंथियों पर तुलसीदास (Good people, Bad People, Shri Ramcharit Manas, Hindi Article, Pakistan and Terrorism) की उपरोक्त चौपाई बिल्कुल सटीक बैठती है कि पाकिस्तान रुपी कौवे से कितनी भी विनती करें, किन्तु वह आतंकवाद रुपी मांस खाने की आदत भला कैसे छोड़ सकता है?
तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस में 'संत और असंत' की बेहद बारीक व्याख्या करते हुए आगे कहते हैं कि-
उपजहिं एक संग जग माहीं, जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥
सुधा सुरा सम साधु असाधू, जनक एक जग जलधि अगाधू॥
(दोनों (संत और असंत) जगत में एक साथ पैदा होते हैं, पर (एक साथ पैदा होने वाले) कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं। (कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है।) साधु अमृत के समान (मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला) और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत रूपी अगाध समुद्र एक ही है। (शास्त्रों में समुद्रमन्थन से ही अमृत और मदिरा दोनों की उत्पत्ति बताई गई है।)
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इस सन्दर्भ में पिछले दिनों का एक रिफरेंस याद आता है, जब भाजपा नेता नितिन गडकरी ने कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहिम और स्वामी विवेकानंद की दिमागी क्षमता की तुलना कर डाली थी. तब उनकी काफी आलोचना भी हुई थी, किन्तु उनके कहने का अभिप्राय कुछ-कुछ यही था कि दुष्ट और सज्जन तो बंद घड़े के समान ऊपर से एक ही दिखते हैं, किन्तु सज्जन रुपी घड़े के अंदर जहाँ अमृत होता है, वहीं दुष्ट व्यक्ति का व्यक्तित्व विषैला (Good people, Bad People, Shri Ramcharit Manas, Hindi Article, Nitin Gadkari statement on Swami Vivekanand and Terrorist Osama Bin Laden) ही होता है. और इसी क्रम में भले-बुरे लोग अपने-अपने कर्मों के हिसाब से फल भी पाते हैं. ओसामा बिन लादेन जैसा आतंकवादी एक बिल्डिंग में घेरकर कुत्ते की मौत मार डाला जाता है, किन्तु स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों को उनके जाने के बाद भी लाखों-करोड़ों लोग प्रत्येक दिन याद करते हैं, उनके कहे प्रवचनों से प्रेरणा लेते हैं और माँ-बाप अपने बच्चों को विवेकानंद जैसा संस्कार देने की कोशिश करते हैं. साधु- असाधु के गुण-दोषों की यह कथा अनंत है और इसकी पहचान भी बेहद आवश्यक है, जिसे गोस्वामी जी कुछ यूं वर्णित करते हैं-
खल अघ अगुन साधु गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥
(दुष्टों के पापों और अवगुणों की और साधुओं के गुणों की कथाएँ- दोनों ही अपार और अथाह समुद्र हैं। इसी से कुछ गुण और दोषों का वर्णन किया गया है, क्योंकि बिना पहचाने उनका ग्रहण या त्याग नहीं हो सकता॥)
श्रीरामचरितमानस रुपी महाग्रंथ के रचयिता इस क्रम में आगे कहते हैं कि गुण-दोषों की पहचान के लिए विधाता के द्वारा दिया गया 'हंस सा विवेक' इस्तेमाल करना चाहिए. गोस्वामीजी आगे सावधान भी करते हैं कि-
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥
(जो (वेषधारी) ठग हैं, उन्हें भी अच्छा (साधु का सा) वेष बनाए देखकर वेष के प्रताप से जगत पूजता है, परन्तु एक न एक दिन वे चौड़े आ ही जाते हैं, अंत तक उनका कपट नहीं निभता, जैसे कालनेमि, रावण और राहु का हाल हुआ॥)
आज के समय में कई जेलों में बंद इस तरह के छद्म साधुओं का वर्णन तुलसीदास ने बहुत पहले ही कर दिया है तो धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने वालों की बात उपरोक्त पंक्ति में कितनी सरलता से समझी जा सकती है. गुण-दोष, सज्जन-दुष्ट व्यक्ति का वर्णन जितने विस्तार और सहजता से श्रीरामचरितमानस में हुआ है, अगर उसे कोई आत्मसात करना चाहे, तो कोई कारण नहीं कि उसका 'नीर-क्षीर' विवेक (Good people, Bad People, Shri Ramcharit Manas, Hindi Article, White collar criminals, Religion and Terrorism) उसके चरित्र को हर तरह से निर्मल न बना दे! श्रीरामचरितमानस के इन पंक्तियों को पढ़ते समय ऐसा महसूस ही नहीं होता है कि हम सैकड़ों साल पहले लिखा ग्रन्थ पढ़ रहे हैं, बल्कि उन सभी पंक्तियों के उदाहरण आपको प्रत्यक्ष मिल जाते हैं. नाना प्रकार के जीव जंतुओं में परमात्मा विराजमान है, और उसी परमात्मा को प्रणाम करते हुए तुलसीदास की यह चौपाई हृदयस्पर्शी है-
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥
(सभी चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सब से भरे हुए इस सारे संसार को श्री सियाराम के समान जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।)
श्रीराम नाम की महिमा निश्चित रूप से हमें सज्जन-असज्जन व्यक्तियों के बीच भेद करने में सक्षम बनाती है और इसके लिए श्रीरामचरितमानस को यदि निमित्त कहा जाए तो कतई गलत न होगा.
॥ बोलो श्रीरामचरितमानस जी की जय ॥
श्रीरामचरितमानस पठन-पाठन का क्रम अभी जारी है ...
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- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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