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स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन हो स्मार्ट

नयी केंद्रीय सरकार की दूरदर्शी योजनाओं में एक और मील का पत्थर शामिल हो गया है. प्रधानमंत्री के अति महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के रूप में दर्ज 'स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट' को निश्चित रूप से एक दूरदर्शी प्रोजेक्ट के रूप में देखा जा सकता है. गाँवों से पलायन करते लोगों की संख्या जिस प्रकार बड़े शहरों में बढ़ती जा रही है, उसने मेट्रो शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर को तहस-नहस करने की सीमा तक पहुंचा दिया है, ऐसे में इस योजना की आवश्यकता पर प्रश्न चिन्ह नहीं उठाया जा सकता. इसके विपरीत यह कहा जा सकता है कि काश इस योजना का जन्म 20 साल पहले हुआ होता, तो भारत का बुनियादी विकास अब तक बेहद मजबूत स्थिति में खड़ा होता. जिस तेजी से मात्र एक साल पूरा होने तक, प्रधानमंत्री ने 100 स्मार्ट सिटी, 500 अमृत शहर और 2022 तक 2 करोड़ घरों को बनाने का खाका तैयार कर लिया है, उसके लिए प्रधानमंत्री के साथ शहरी विकास मंत्रालय और उसके मंत्री भी बधाई के पात्र हैं. इस प्रोजेक्ट से अनेक क्षेत्रों को बृहद स्तर पर फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि बैंकों ने अपने फंसे कर्ज (एनपीए) को कम करने के लिये बड़ी संख्या में अटकी पड़ी परियोजनाओं का रास्ता साफ करने के लिये कमर कस ली है, इससे सड़क एवं परिवहन क्षेत्र को विशेष लाभ होने की उम्मीद है. गौरतलब है कि कोष तथा इक्विटी की कमी के कारण पिछले वित्त वर्ष में 3,500 किलोमीटर सड़क निर्माण के लक्ष्य से संबद्ध 33 सड़क परियोजनाएं आगे नहीं बढ़ सकी थीं. सड़कों से आगे बढ़ते हैं तो 500 शहरों में शहरी सुधार और पुनरुद्धार के लिए अटल मिशन शुरू करने की घोषणा प्रधानमंत्री ने की है, जिसमें तक़रीबन पांच साल में 50,000 करोड़ रु.खर्च होंगे. कमजोर बुनियादी ढांचों के शिकार शहरों के लिए अमृत योजना, वास्तव में अमृत साबित हो सकती है, अगर इसमें राज्य सरकारों का मजबूत सहयोग मिला तो. आम जनमानस कि दृष्टि से देखें तो, वर्ष 2022 तक देश में सबको आवास उपलब्ध कराना सर्वाधिक महत्वपूर्ण चुनौती है. इस योजना पर सात साल में 3 लाख करोड़ रु. खर्च होने की बात कही गयी है, जिस पर बिचैलियों की भी निगाह जमी होगी. आवास योजना के तहत शहरों में झुग्गियों में रहने वालों एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 2 करोड़ अफॉर्डेबल हाउस बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जो एक बड़ा लक्ष्य कहा जा सकता है. योजना की घोषणा के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद साफ़ दृष्टिकोण से अपनी बात रखी, जिससे योजना के प्रति उनकी गंभीरता का बोध होता है. इस पूरी योजना में, उनके भाषण का जो हिस्सा सबसे ज्यादा असरदार लगा, वह निश्चित रूप से भू-माफियाओं और बिल्डरों की छवि पर बात करना था. प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि गरीबों के पूरे जीवन भर की कमाई से कई प्रॉपर्टी डीलर खिलवाड़ कर जाते हैं, जबकि बड़े बिल्डर, तमाम प्रोजेक्ट की घोषणा तो कर देते हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाएं डेवेलप करने की जरा भी ज़हमत नहीं उठाते. प्रधानमंत्री का यह कहना भी सही है कि शहर की प्लानिंग यही बिल्डर्स तय कर देते हैं, जबकि इसकी प्लानिंग लोकल अथॉरिटीज की जिम्मेवारी होती है. तमाम सकारात्मक, नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देने के बाद प्रधानमंत्री की यह योजना मध्यवर्गीय शहरियों के जीवन स्तर में जबरदस्त उछाल ला सकती है, किन्तु मुख्य समस्या इसके कार्यान्वयन की है. हालाँकि, इसके कार्यान्वयन की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं की गयी है, पर यह तय है कि बिना पारदर्शी एक्जीक्यूशन के अधिकांश पैसा दलालों और बिचौलियों की जेब में चला जायेगा, और आम जनता को स्मार्ट सिटी के बजाय 'जर्जर सिटी' से ही संतोष करना पड़ेगा. समस्या इसी भ्रष्टाचारी लॉबिंग से निबटने की है, साथ ही साथ उन राज्य सरकारों से तालमेल इन प्रोजेक्ट्स की सफलता में अहम रोल निभाएगा, जिनमें भाजपा के अतिरिक्त दुसरे दलों की सरकारें हैं. शहरों के सौंदर्यीकरण के प्रयास पहले भी हुए हैं, किन्तु जिस प्रकार थोड़ी-बहुत अवैध कब्जे पर सीलिंग और तोड़फोड़ से ही राजनैतिक तूफ़ान खड़ा हो जाया करता है, उस हालत में इस प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक इम्प्लीमेंटेशन पर सवाल उठना लाजमी हो जाता है. देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होने ही हैं, ऐसे में मोदी सरकार के साथ सम्बंधित प्रदेश सरकार, वगैर वोट बैंक की परवाह किये, इन योजनाओं को और इन क्षेत्रों के साथ 'स्मार्ट- विलेज' की परिकल्पना की जाती तो देश की चालीस प्रतिशत ही नहीं, वरन 100 फीसदी आबादी को खुशहाल देखने का सपना साकार हो सकता था. अब तक अनदेखा रहे कृषि-क्षेत्र और कुटीर उद्योग क्षेत्र के स्मार्ट बने बिना आखिर, सम्पूर्ण भारत 'स्मार्ट' कैसे हो सकता है. लेकिन, इसके लिए यह तर्क भी दिया जा सकता है कि कार्य और योजनाएं एक-एक करके ही आगे बढ़ सकती हैं, जो कि उचित भी है. इसी में योजनाओं की सकारात्मकता भी होती है और वगैर किन्तु-परन्तु के पूरा होने की उम्मीद भी, क्योंकि एक-एक करके ही योजनाओं का स्मार्ट-क्रियान्वयन किया जा सकता है और स्मार्ट सिटी योजना के रूप में एक बड़ी योजना को कसौटी पर कसने का समय शुरू हो चूका है.

सख्ती से किस प्रकार लागू करती है, यह बात सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. हालाँकि, इस दूरदर्शी योजना को लागू करने की इच्छाशक्ति रखने वाले प्रधानमंत्री की फाइल में निश्चित तौर पर इन समस्याओं का उल्लेख होगा और हल निकलने की जद्दोजहद भी चल ही रही होगी. प्रत्येक शहरी और शहर में आने वाले लोग इन योजनाओं को लेकर बेहद आशान्वित हैं और उम्मीद यही की जानी चाहिए कि पहले के तमाम कार्यक्रमों की तरह यह योजना फुस्स नहीं होगी, बल्कि अपना लक्ष्य अवश्य ही प्राप्त करेगी. इसके अतिरिक्त इस योजना में यदि इस बात का भी प्रावधान होता कि शहरों की ओर पलायन करने वाले लोगों की संख्या में कमी आये, तो सोने पर सुहागा वाली बात होती. मतलब, यदि कृषि-क्षेत्र और कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन की रणनीति तय की जाती


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