पूरे विश्व में फेसबुक, गूगल प्लस, लिंकेडीन और दुसरे प्लेटफॉर्म्स का उभार बेहद तेजी से हुआ है, जिसका प्रयोग लाखों करोड़ों यूजर्स करते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ट्विटर, सोशल मीडिया के अन्य सभी प्लेटफॉर्म्स से ज्यादा चर्चा में रहता है. बात चाहे पॉलिटिक्स की हो, सिनेमा की हो या कोई सोशल मुद्दा हो, यदि सबसे अलग, जल्दी और स्पष्ट प्रतिक्रियाएं देखनी हों तो यह प्लेटफॉर्म सबसे अलग खड़ा दिखता है. इस पर सक्रीय लोग, अपेक्षाकृत शिक्षित, बुद्धिजीवी और अपने क्षेत्रों में विशिष्टता ग्रहण किये होते हैं तो उस पर प्रतिक्रियाएं देने वाले पाठक भी उनसे कई कदम आगे बढ़कर #टैग के माध्यम से तूफ़ान उठाने को हर समय तैयार रहते हैं. पिछले कुछ समय से यह प्लेटफॉर्म विवादित ट्वीट्स के कारण कुछ ज्यादे ही चर्चा में रहने लगा है. कई बार अनेक सेलिब्रिटी विवाद फैलाने के लिए जानबूझकर इस प्लेटफॉर्म का दुरूपयोग करते हैं तो कई बार इसके ऑडियंस जबरदस्त असहिष्णुता का परिचय देते नजर आते हैं. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन मीडिया पर अतिवादी रूख रखने वालों को सलाह भी दी थी कि यदि वह ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स की खूबसूरती बनाये रखना चाहते हैं तो सहिष्णु बनने की कोशिश करें. पुराने मामलों को छोड़ भी दें तो पिछले हफ्ते में तीन चार बड़ी घटनाएं हुईं हैं, जिनका इस्तेमाल करते हुए ट्विटर को विवादों का प्लेटफॉर्म्स बनाने की पुरजोर कोशिश की गई. आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी मिलने के बाद कई लोगों ने ट्विटर पर भारतीय न्यायतंत्र और सरकार पर गैर कानूनी हमला करने के लिए इस प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल किया, जिनमें विवादित अभिनेता और कई अपराधों में आरोपी रहे सलमान खान के वह १४ ट्वीट्स सबसे ऊपर हैं, जिनमें उन्होंने अकेले ही सब जांच कर ली और फैसला सुना डाला कि याकूब मेमन निर्दोष है, उसे फांसी देना इंसानियत का क़त्ल है! इसी मामले में ट्वीटर के साथ साथ शशि थरूर की भी बड़ी बदनामी हुई, जब उन्होंने याकूब को फांसी मिलने के बाद ट्वीट किया कि याकूब की हत्या की गयी है, जिसके लिए सरकार और न्यायपालिका दोषी हैं. इसी मामले में विवादित ट्वीट करने वाले गायक अभिजीत भट्टाचार्य ने कहा कि 'प्रशांत भूषण को सस्ते और फटे जूते से मारूंगा, कैमरे के सामने!' बताना आवश्यक है कि प्रशांत भूषण याकूब मेमन के बचाव में अदालत और राष्ट्रपति से गुहार लगाने वालों में शामिल थे. अभिजीत पहले भी गरीबों को 'मरने लायक कुत्ते' कहकर सम्बोधित कर चूके हैं. सेलिब्रिटी और ट्विटर की बात आगे किया जाय तो फिल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम का नाम एक नहीं तीन तीन बार गलत ट्वीट किया. सवाल यह है कि मात्र एक सौ चालीस शब्द को पोस्ट करते समय क्या बार-बार पढ़ा नहीं जाना चाहिए, वह भी तब जब आपको हज़ारों- लाखों लोग फॉलो करते हों! इस तरह के अनेक सेलिब्रिटी रहे हैं, जिनकी सूची यहाँ देना संभव नहीं है, जिन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट को विवाद फैलाने का जरिया बना रखा है. इन सेलिब्रिटी से अलग, दुसरे आम यूजर्स का व्यवहार तो इस प्लेटफॉर्म पर और चिंतनीय दीखता है. डॉ. कलाम के दिवंगत होने के बाद ट्विटर पर श्रद्धांजलि देने की बाढ़ सी आ गयी, जो एक नेशनल हीरो के प्रति उसके समर्थकों का प्यार दिखाता है तो उनको श्रद्धांजलि देने में जरा सी गलती के लिए फिल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा को जबरदस्त लानतें-मलानतें दी गयीं. यह वही अनुष्का शर्मा हैं, जिनको इसी ट्विटर के यूजर्स वर्ल्ड कप हारने के लिए कई दिनों तक अभद्रता का शिकार बनाते रहे. ट्विटर के ऐसे ही अतिवादी यूजर्स, याकूब मेनन को फांसी मिलने के बाद, उसके वकील तक को निशाने पर लेने से नहीं चूके. हालाँकि, याक़ूब मेमन के वकील आनंद ग्रोवर को ट्विटर के अलावा में स्ट्रीम के पत्रकारों ने भी निशाने पर लिया, जिसमें उन्हें कहना पड़ा कि “मुझ पर रहम कीजिए, मेरा क्लाइंट थोड़ी देर में मरने वाला है.” यह तो कुछ उदाहरण भर हैं, ट्विटर की चिड़िया को बदनाम करने वाले ऐसे अनेक किस्से हैं, जो इस प्लेटफॉर्म के चहचहाने को कांव-कांव में बदल देता है. वैसे इस महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म पर कई ऐसे भी ग्रुप और लोग सक्रीय हैं, जिनको स्पोंसर कर के किसी ख़ास मुद्दे पर विवाद पैदा करने की कोशिश की जाती है. इन बातों की जांच की जानी चाहिए और यदि वास्तव में इस तरह का कार्य पकड़ में आता है तो इस पर आईटी कानूनों के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि इस प्लेटफॉर्म के विवादित होने से आम ख़ास सभी चिंतित दिखते हैं. मशहूर एंकर और पत्रकार रविश कुमार ट्विटर पर यूजर्स की इस असहिष्णुता को 'ऑनलाइन गुंडागर्दी' का नाम देते हैं. वह अपने एक लेख में लिखते हैं 'आज सुबह व्हॉट्सऐप, मैसेंजर और ट्विटर पर कुछ लोगों ने एक प्लेट भेजा, जिस पर मेरा भी नाम लिखा है. मेरे अलावा कई और लोगों के नाम लिखे हैं. इस संदर्भ में लिखा गया है कि हम लोग उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने याकूब मेमन की फांसी की माफी के लिए राष्ट्रपति को लिखा है. अव्वल तो मैंने ऐसी कोई चिट्ठी नहीं लिखी है और लिखी भी होती तो मैं नहीं मानता, यह कोई देशद्रोह है. मगर वे लोग कौन हैं, जो किसी के बारे में देशद्रोही होने की अफवाह फैला देते हैं. ऐसा करते हुए वे कौन सी अदालत, कानून और देश का सम्मान कर रहे होते हैं? क्या अफवाह फैलाना भी देशभक्ति है?' सिर्फ रविश कुमार ही क्यों, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक स्वीकारोक्ति में कहा है कि यदि सोशल मीडिया पर उनके ऊपर हुए हमलों का प्रिंटआउट निकाला जाय तो पूरा ताजमहल ढक जायेगा! प्रश्न यही है और बड़ा जायज़ प्रश्न है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी का चरित्र-हनन करना कतई जायज नहीं है, साथ ही साथ ट्विटर जैसे खूबसूरत प्लेटफॉर्म को तमाम सेलिब्रिटीज द्वारा विवाद फैलाने का स्थान बनाना भी उतना ही गलत है. ट्विटर पर 140 शब्द सोच समझकर, सामाजिक जिम्मेवारी और कानून का पालन करते हुए लिखा जाना चाहिए तो उस पर प्रतिक्रिया देते समय व्यक्तिगत आक्षेपों से बचने में ही इस प्लेटफॉर्म की सार्थकता बनी रह सकती है. सावधानी के तौर पर न केवल सरकार बल्कि लोगों को भी जागरूक रखना होगा और अपने आसपास के ऐसे मित्रों या अनुचरों पर निगाह रखना उचित होगा, जो ऑनलाइन गुंडागर्दी करने में यकीन करता है. जो लोग सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार को तोड़ रहे हैं, उनको अनदेखा करने से निश्चित रूप से ठीक मेसेज नहीं जायेगा और उनका दुस्साहस भी बढ़ता ही जायेगा और ट्विटर, चिड़ियों के चहचहाने की बजाय कान-कांव करने लगेगा, तब निश्चित रूप से आपकी आँख और कान दोनों पीड़ित ही होंगे, साथ में पीड़ित होंगे सबके हृदय भी!
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