अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और दक्षता के बावजूद यदि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देश आतंकियों के निशाने पर आ जाएँ तो विश्व के दुसरे विकासशील देशों में भय का माहौल उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है. आतंक के शिकार अब तक तीसरी दुनिया के देश ही हुआ करते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस ट्रेंड ने विकसित और अपेक्षाकृत सुरक्षित देशों की ओर खतरनाक तरीके से अपने रूख में बदलाव किया है. मुसलमानों का पवित्र महीना रमजान चल रहा है, लेकिन इस्लाम और अल्लाह के नाम पर लड़ने वालों को भला इससे क्या फर्क पड़ने वाला है, क्योंकि यदि उन्हें फर्क पड़ता तो वह मस्जिद में नमाज पढ़ रहे सैकड़ों मुसलमानों का क़त्ल क्यों करते भला? हाल ही में समुद्र तट पर आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट द्वारा किए गए जनसंहार के बाद ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति बेजी कैद एस्सेबसी को देश में आपातकाल घोषित करना पड़ा. आईएस द्वारा किए गए इस जनसंहार में 38 विदेशी पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया गया था. अब ज़रा सोचिये, इस बर्बरता से कि इन आतंकियों का दुस्साहस किस हद तक बढ़ चुका है. अब उनका प्रभाव सीरिया या इराक के कुछ हिस्सों में ही नहीं है, बल्कि वह सभी देश जहाँ मुस्लिम रहते हैं, उनके टारगेट पर हैं. इन हमलों से वह अपनी ताकत बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. देखा जाय तो, इस्लामी आतंकियों का अंतर्राष्ट्रीय ठिकाना बन चुका है आईएस. आतंकियों का अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व करने वाला अल-कायदा जबसे कमजोर हुआ है, विशेषकर ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद, तब से इस्लामिक स्टेट की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है और साथ में बढ़ रहा है उसके धन का भंडार. इससे भी खतरनाक बात यह है कि कट्टर इस्लामिक सोच से प्रेरित अनेक देशों के मुस्लिम युवा, जिनमें भारत भी शामिल है, इस खतरनाक संगठन की ओर झुकाव रखने के दोषी पाये गए हैं. यह बात अनेक ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स में भी सामने आ चुकी है. विकसित देशों में कई बार हमला होने के बावजूद, न जाने क्यों इस्लामिक स्टेट जैसे बड़े आतंकवादी संगठन से निपटने की इच्छा शक्ति नहीं दिखाई जा रही है. अमेरिका सहित, दुसरे देश ढुलमुल नीतियों के तहत इस्लामिक स्टेट पर बयानबाजी भर करते हैं, जबकि यह संगठन एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देता जा रहा है. इसके बढ़ते प्रभाव से भारतीय प्रशासन भी चौकन्ना हो गया है, जबकि इस खतरनाक संगठन के नेताओं ने भारत को लेकर कई बार बयानबाजी भी की है. इसी कड़ी में नाइजीरिया के जोस शहर स्थित एक मस्जिद और रेस्टोरेंट में हुए दो बम धमाकों में दर्जनों लोगों के मारे जाने को इस संगठन द्वारा अपना खौफ बढ़ाये जाने के रूप में देखा जा रहा है. पुलिस के मुताबिक मस्जिद में हुए एक बम धमाके में मुस्लिम धर्मगुरु सानी याहया के साथ 44 लोगों की मौत हो गई. धमाका तब हुआ, जब धर्मगुरु नाइजीरिया में अलग-अलग धर्मों की मौजूदगी पर प्रवचन दे रहे थे. अब इस प्रकार की क्रूरता को क्या नाम दिया जाय. यह संगठन मुस्लिम आतंकी संगठनों में शीर्ष पर वर्चस्व बनाये रखने के लिए आतंक की तमाम हदें पार कर रहा है और अपना प्रभाव क्षेत्र खतरनाक स्तर तक बढ़ाता जा रहा है. इसके द्वारा जारी वीडियो में अनेक व्यक्तियों के सर-कलम करना तो आम बात हो गयी है. यहाँ तक कि बोको हरम जैसे मजबूत आतंकी संगठनों ने भी इस्लामिक स्टेट के अधीन काम करना स्वीकार कर लिया है. बहुत संभव है कि पाकिस्तानी और अफगानी तालिबानों के साथ दुसरे आतंकी गुट भी इस क्रूर संगठन के संपर्क में हों. यदि ऐसा होता है तो यह भारत की सुरक्षा के लिहाज से बेहद चिंतनीय बात हो सकती है. हालाँकि अलग-अलग वैश्विक हलकों में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है, लेकिन वह खानापूर्ति ज्यादा लगता है, बजाय गंभीर प्रयास के. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने हाल ही में इस कमी को स्वीकार करते हुए कहा भी है कि अमरीका के पास अभी भी इस्लामिक स्टेट से जारी जंग में एक 'सम्पूर्ण नीति' तैयार नहीं है. यहाँ यह बताना आवश्यक है कि पिछले चंद महीनों के दौरान अमरीकी नेतृत्व में हुए हवाई हमलों के बावजूद आईएस ने जंग में महत्त्वपूर्ण कब्ज़े करने में सफलता प्राप्त की है. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि पूर्वोत्तर शहर हासाकेह में आईएस के हमले के कारण 60 हज़ार लोग विस्थापित हो गए हैं, जो डर को बढ़ाने वाला है. तुर्की के खूबसूरत शहर इस्तांबुल पर आईएस की कुदृष्टि पड़ चुकी है. गौरतलब है कि यह शहर अपेक्षाकृत खुलापन लिए है और इस्लामिक होने के बावजूद पश्चिम के विचारों को अपनाया है. तुर्की में चाय पर आजकल यह चर्चा का प्रमुख विषय है कि क्या इस्तांबुल भी काबुल बनने से बच पाएगा? इस आतंकी संगठन का दुस्साहस देखिये कि इसने इजरायल पर राकेट दागने की जुर्रत कर डाली. इस कड़ी में बताना आवश्यक है कि न सिर्फ आतंक के मामले में, बल्कि सोशल मीडिया पर शेयर हो रहीं कुछ तस्वीरों को इस्लामिक स्टेट की मुद्रा बताया जा रहा है. इन तमाम बातों को देखकर ऐसा लगता है कि आईएस के बढ़ते खतरों के प्रति वैश्विक समूह कहीं न कहीं अनदेखा करने का रवैया अपना रहा है, जो दिन-ब-दिन विश्व भर के लिए घातक साबित होता जा रहा है. हालाँकि इसके पीछे के कारणों को समझना बहुत मुश्किल नहीं है, जिनमें पहला कारण मुसलमानो की नाराजगी मोल लेना है, तो दूसरा जबरदस्त कारण यह है कि अभी आईएस का मुख्य प्रभाव-क्षेत्र इस्लामिक देश ही रहे हैं. इस तरफ ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरन के एक बयान ने इशारा भी किया है, जिसमें उन्होंने मीडिया से इस आतंकी संगठन को 'इस्लामिक स्टेट' न कहने को कहा था, क्योंकि इससे इस आतंकी संगठन के कार्यों पर बेवजह धर्म का मुलम्मा चढ़ जाता है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री का दर्द समझा जा सकता है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि मजबूत ईसाई लॉबी कहीं न कहीं यह भी चाहती है कि इस्लामिक जगत में फूट पड़ी रहे और आईएस के कारण, ऐसा हो भी रहा है. हालाँकि इतिहास गवाह है कि यदि आपके पडोसी पर अत्याचार हो रहा है और आपको नींद आ जाती है, तो अगला नंबर आपका हो सकता है. पश्चिमी देशों पर हाल ही में हुए आईएस के दुस्साहसों से बड़ा दूसरा सबूत भला क्या हो सकता है.
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