दिल्ली में एक सफल और प्रोफेसनल और मेरी सुपरिचित लेडी के यहाँ जाना हुआ तो मालूम हुआ कि उनका आठ दस साल का लड़का बीमार है. उसे शायद पीलिया हो गया था, जो लम्बा खिंच गया और उसकी तबियत बिगड़ती ही चली गयी. चूँकि, आज कल पता नहीं चलता है कि कौन सा डॉक्टर एम्स जैसे संस्थान से एमबीबीएस धारी है और कौन रूस या ऐसे ही किसी देश से मेडिकल एग्जाम देकर आया है, इसलिए उनके लड़के की हालत ख़राब होती चली गयी. चूँकि मैं संपर्क में था, इसलिए मुझे पता चल सका कि वह बीमार बच्चे को लेकर कई मंदिरों, मजारों और तंत्र-मंत्र वालों के पास भी पहुंची थीं और उनकी मानसिकता का फायदा भी उठाया गया. उस दौरान, उन बिचारी को कुछ समझ नहीं आता था और एक ही रट लगाई बैठीं थीं कि कैसे भी उनका बेटा ठीक हो जाय. सच कहा जाय तो उस दौरान उन पढ़ी लिखी महिला का दिमाग से कंट्रोल हट चुका था और नतीजा यह हुआ कि लड़के की मरने जीने की हालत हो गयी. वह तो भला हो उनके पति महोदय का कि बाद में ही सही, उसे लेकर वह एम्स पहुंचे और अपने इकलौते बेटे को खोने से बच गए. ऐसे एक दो नहीं, बल्कि सैकड़ों वाकये हम अपने आस पास देखते हैं कि किस प्रकार ऐसी हालत में लोग अन्धविश्वास के चक्कर में अपना नुक्सान कर बैठते हैं. ऐसा ही एक वाकया मेरे गाँव में हुआ. एक तांत्रिक के चक्कर में एक फेमिली आ गयी और उनके एक नाबालिग बेटे को टारगेट पर लेते हुए उस ढोंगी ने मकड़जाल फेंका कि उसी लड़के पर जिन्न का साया है. बस फिर क्या था, सभी लोग समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए उस तांत्रिक के अड्डे पर पहुंचे जो गाँव के कब्रिस्तान के बगल में था. वहां उस लड़के को कई गिलास अजीब सा घोल पिलाने के बाद धूप में बैठाकर झूमने को कहा तो लड़के को चक्कर आ गया और डिहाइड्रेशन भी हो गया. वह जमीन पर गिरकर छटपटाने लगा, मगर उसके परिवार वाले यह सोचकर खुश हो रहे थे कि तथाकथित जिन्न लड़के के रूह से बाहर निकल रहा है. वह लोग उपरोक्त वर्णित दिल्ली की मैडम जितने भाग्यशाली नहीं निकले और नतीजा वही हुआ जो इस तरह के मामलों में अक्सर होता है... !! लड़के के शांत हो जाने के बाद तांत्रिक के हाथ पाँव फूल गए और जब तक पुलिस आती, वह उलटे पाँव भाग निकला. यही दोनों केस क्यों, झारखण्ड से आ रही कई खबरों में यह अन्धविश्वास अपने चरम पर दिखा है, जहाँ कई महिलाएं 'डायन' होने के आरोप में अपनी जान गँवा चुकी हैं. यह आधुनिक भारत की वह तस्वीर है, जिसपर भूतकाल का साया बदस्तूर जारी है, मगर कहानी इससे आगे भी है जो हमें अन्धविश्वास से आगे की दुनिया पर नजर डालने को मजबूर करती है. भारत की प्राचीन पद्धति में जीवन के अंतिम उद्देश्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ और काम का बड़ा सुन्दर संयोजन बताया गया है. आज भी कई प्रवचनकर्ता जीवन के इन चार स्तम्भों का वर्णन अनेकानेक उदाहरणों के साथ करते हैं. खैर, इसकी शास्त्रीय व्याख्या बहुत लम्बी चौड़ी हो जाएगी और उसे यहाँ कहने का कोई औचित्य भी नहीं है, क्योंकि उसके बारे में संभवतः प्रत्येक हिंदुस्तानी बचपन से ही सुनता आ रहा है. जिन बातों पर यहाँ बात करने की आवश्यकता है, वह निश्चित रूप से आम जनमानस के शोषण से जुड़ा विषय है. ऐसे अनेक वाकये और आम-ओ-ख़ास सामने आये हैं, जो उपरोक्त वर्णित अन्धविश्वास के साथ-साथ तथाकथित धर्म का सहारा लेते हुए अर्थ और विकृत कामवासना का जाल भी फैलाये हुए हैं. इस मामले में कोई धर्म विशेष ही संलिप्त हो ऐसा भी नहीं है, बल्कि दुष्कर्म के आरोपों में पादरी, मौलवी और पोंगा पंडितों की भारी मात्रा पायी गयी है, जबकि समान अनुपात में ही उनके पास से नकदी और ऐश-ओ-आराम के सामान भी बरामद होते रहे हैं. इन सबके आलावा इनके अड्डों से आधुनिक तकनीक के प्रयोग से जनता को मूर्ख बनाने की भी पर्याप्त सामग्री मिली है, जैसे लिफ्ट, अदृश्य होने का भ्रम पैदा करने वाली तकनीक, आसान के नीचे सुरंग, जिससे धर्म गुरु कहीं और प्रकट हो सकें इत्यादि. इससे भी बढ़कर बात यह है कि इनके भक्तों में अमीर-गरीब, आम-खास सभी तरह के लोग शामिल होते हैं, किन्तु शोषण के सर्वाधिक शिकार वही लोग होते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर तबके के होते हैं. इसके पीछे सीधा तर्क यह होता है कि खास लोग अपनी नेटवर्किंग और व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए धार्मिक प्रभाव के व्यक्तियों का इस्तेमाल करते हैं और अपने समय और इन्वेस्टमेंट की पूरी कीमत वसूलने से चूकते नहीं हैं, किन्तु अपने जीवन, बीमारी, कोर्ट-कचहरी और दूसरी समस्याओं से परेशान लोग न केवल अपनी गाढ़ी कमाई बल्कि अपनी इज्जत भी दांव पर लगा बैठते हैं. कई बार ऐसी खबरें मन झिंझोड़ कर रख देती हैं कि अमुख व्यक्ति की पत्नी या बेटी के साथ फलाने धर्मगुरु ने बलात्कार किया अथवा उसे सेक्स रैकेट में धकेल दिया. धन और इज्जात गंवाने के बाद बेहद कम लोग अपनी आवाज बुलंद कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा भी होता है. यदि मीडिया और कुछ संगठनों के माध्यम से उन्होंने अपनी आवाज उठा भी ली तो उनकी जान पर बन आती है. ऐसे में परिणाम वही ढाक के तीन पात! आसाराम, रामपाल जैसे कुछ मुद्दे राजनीतिक बन जाते हैं, जिसके कारण उन्हें जेल में जरूर सड़ना पड़ता है. वैसे, भारत देश में दो चार धार्मिक नेता जेल में चले भी जाएँ तो क्या फर्क पड़ता है, क्योंकि धर्म के नाम पर आर्थिक और सेक्स का साम्राज्य एक इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो चुका है जो तमाम गलत सही रास्तों से होते हुए हवाला के कारोबार में शामिल दिखता है. हमारा राजनीतिक तंत्र भी इस मामले में तब बौना साबित हो जाता है, क्योंकि देश में आम जनमानस पर किसी पॉलिटिकल या दुसरे सिस्टम का नहीं बल्कि तथाकथित धर्म के ठेकेदारों का ही कब्ज़ा दिखता है और कई बार ऐसा दिखा है कि पॉलिटिकल सिस्टम, धार्मिक संगठनों के आगे बेबस खड़ा नजर आता है. कुछ ही दिन पहले की घटना है जब जमा मस्जिद के शाही इमाम ने अपने बेटे की दस्तारबंदी रस्म में भारत के प्रधानमंत्री की सरेआम अनदेखी की जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उन्होंने बुलावा भेजा. पूरे देश और विदेशी प्रतिष्ठानों को भी इस बात के पीछे यह मंतव्य समझ आ गया था कि उन धर्मगुरु ने एक तरह से शीर्ष पॉलिटिकल सिस्टम को चिढ़ाया था और सिस्टम कहाँ तक उन महानुभाव पर कार्रवाई करता, बल्कि चुपचाप मामले को रफादफा कर देने में ही कुशलता का अनुभव किया. हालाँकि, इस सम्बन्ध में एकाध बयान जरूर जारी किये गए कि जामा मस्जिद एक तरह से सरकार के अधीन वक्फ बोर्ड की संपत्ति है, किन्तु धर्मगुरु की गद्दी जस की तस सुरक्षित रही. अभी हाल ही में राधे माँ के नाम से मशहूर एक महिला धर्मगुरु पर अश्लीलता फैलाने से लेकर, धमकी देने तक के आरोप लग रहे हैं और कहाँ तक पुलिस और प्रशासन उन पर कार्रवाई करती, बजाय इसके संसद में जगदम्बिका पाल जैसे लोगों ने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर डाली. सवाल यह है कि इस मुद्दे को एक आपराधिक मुद्दे की तरह हैंडल करने के बजाय संसद में चर्चा करके इसका महिमांडन क्यों किया जाना चाहिए? क्या हंगामों से परेशान संसद के पास इसके अतिरिक्त कोई और काम नहीं है? इसी तरह दिल्ली में एक स्कूल में जब चोरी की सामान्य वारदात हुई तो उसने दिल्ली पुलिस, गृह मंत्रालय और पीएमओ तक को सांसत में डाल दिया और इस छोटी सी घटना से भारतीय लोकतंत्र को इस प्रकार शर्मसार किया गया, मानो भारत में कोई सुरक्षित है ही नहीं! इस मुद्दे को लेकर बाद में शायद प्रधानमंत्री को भी कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि 'भारत में सभी लोग वगैर भेदभाव के सुरक्षित हैं'. सवाल यहाँ बड़ा स्पष्ट है कि एक तरफ धार्मिक ठेकेदार अपने आर्थिक और सेक्स साम्राज्य को बदस्तूर जारी रखे हुए हैं, वहीँ राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र को वह पाकिस्तान की तरह रोज धमकी देते रहते हैं कि 'परमाणु बम फोड़ देंगे' ... जी हाँ! आखिर धर्म भी आज परमाणु बम ही तो है! अर्थ और कामवासना के बारूद से सना हुआ !! हद तो तब हो जाती है जब याकूब मेनन को फांसी देने के मुद्दों को धार्मिक रंग देने का भरपूर प्रयास किया जाता है और ओवैसी जैसे लोग धर्म की अफीम को भारतीय जनता को बेख़ौफ़ होकर पिलाते हैं. न सिर्फ पिलाते हैं, बल्कि धर्म के ही नाम पर भारत राष्ट्र के विरुद्ध भड़काते भी हैं और जनता भी इतनी भोली, मासूम, अशिक्षित या कुंठित कहें, वगैर सोचे समझे किसी के पीछे हज़ारों की संख्या में जमा हो जाती है. यह तो यह, लोग बाग़ और संस्थान फिल्मों और मनोरंजन को भी धर्म के पलड़े में तौलने से बाज नहीं आते हैं. हाल ही में आयी बहुचर्चित फिल्म 'बाहुबली' को समुदाय विशेष की फिल्म कहकर सम्बोधित किया गया और एक बड़ी संस्था के मुखपत्र पर इसी मंतव्य को दर्शाता हुआ आंकलन पेश किया गया , जो हमारी मानसिकता के उथलेपन को ही दर्शाता है. आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि हम अपनी प्रत्येक नाकामी को छुपाने के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं! परीक्षा में फेल हुए तो कह दिया, उपरवाले की यही इच्छा थी! ज़िन्दगी में असफल हुए, कह दिया कि भाग्य हमारे साथ नहीं! बिजनेस में सफल नहीं हुए तो कह दिया, हाथ की लकीरों ने धोखा दे दिया.... और ऐसी ही अंतहीन कड़ी! इस बात में कोई दोराय नहीं है कि व्यक्ति अपनी असफलताएं और कर्महीनता छुपाने के लिए बहुधा 'धर्म की आड़' लेता है, जिसका फायदा इस कॉर्पोरेट युग में तमाम मैनेजमेंट गुरु उठाना जान गए हैं. यह अन्धविश्वास से आगे का शोषण है क्योंकि धर्म के नाम पर सेक्स और अर्थ का व्यापर करने वाले अपेक्षाकृत शिक्षित हैं, न्यूज चैनलों का इस्तेमाल करना जानते हैं और जानते हैं योजना बनाना कि किस प्रकार उनका कारोबार बदस्तूर जारी रहे! और यदि उनके कारोबार पर जरा भी आंच आती है तो फिर ... दंगे, फसाद, खतरा, जिहाद! सोचिये, सोचिये, सोचिये !!
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