यदि ईमानदारी से कहा जाय कि भारत में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा प्रयोग कब किया गया है तो सैकड़ों, हज़ारों मुद्दों के ऊपर पोर्नोग्राफी पर बैन और समर्थन की चर्चा के 24 घंटे, दूसरे सभी मुद्दों पर भारी पड़ जायेंगे. ऐसी स्थिति, हाल ही में तब दिखी जब अचानक केंद्र सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पोर्न वेबसाइट को ब्लॉक करने की दिशा में कदम उठाया और पीछे भी खींचा. बेहद आश्चर्य की बात है कि आज़ाद भारत में अब तक की सबसे मजबूत सरकार कही जा रही नरेंद्र मोदी की सरकार को यदि किसी एक मामले पर झटके से पीछे हटना पड़ा है तो वह पोर्नोग्राफी का मामला ही रहा है. इसके अतिरिक्त, तमाम दूसरे विरोधों और आलोचनाओं पर नरेंद्र मोदी और उनका प्रशासन ध्यान देने की आवश्यकता तक नहीं समझ रहा था. इस मामले में 'पोर्नोग्राफी' को बधाई देने का भी मन करता है कि चलो कम से कम इस मामले पर तो मोदी जी झुक गए और अपने तमाम विरोधियों को ख़ुशी का कुछ क्षण दे गए, अन्यथा लैंड बिल पर संसद, पार्टी, यहाँ तक कि आरएसएस के कई हलकों में तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद नरेंद्र मोदी टस से मस नहीं हुए. खैर, विषय यहाँ पोर्नोग्राफी का है तो बात उसी पर होनी चाहिए. यह मामला शुरू हुआ एक याचिका से. इंदौर हाई कोर्ट के एक वकील कमलेश वासवानी की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश देकर 850 पोर्न वेबसाइट बंद कराने को कहा. यह अलग बात है कि मात्र एक दिन बाद ही केंद्र सरकार, जो संसद से सड़क तक विपक्ष का भारी गतिरोध झेलने के बावजूद नहीं झुकी, वह भाजपा सरकार पोर्न मुद्दे पर बैकफुट पर आ गई. संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को कहना पड़ा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देनी वाली वेबसाइट को छोड़कर बाकी सभी से बैन हटा लिया जाएगा. सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम में मचे भारी हंगामे और अनापेक्षित चर्चा ने इस मुद्दे पर न केवल सरकार के, बल्कि तमाम विचारकों के कान खड़े कर दिए. सामाजिक रूप से भी इन विषयों पर चर्चा की फुलझड़ियाँ देखने को मिलीं और कई लोग पोर्न बैन पर चर्चा से ही उतने आनंदित देखे गए, जितना आनंद उन्हें पोर्न देखकर भी शायद ही मिले. क्या छोटा, क्या बड़ा जिसे देखो पोर्न पर बैन का समर्थन या विरोध के लिए अपने तर्क गढ़ता देखा गया और जिसे तर्क नहीं मिला उसने वात्स्यायन से लेकर ओशो तक की विचारधारा को सामने लाने में अपनी और समाज की मानसिकता को बाधा नहीं बनने दिया. एक मेरे मित्र जो उभरते हुए बेहतरीन लेखक भी हैं, इस मौके का उपयोग करते हुए अपने लेख में मस्तराम, आर्गेज्म और ऐसे ही दूसरे तमाम शब्द और वाक्यों के प्रयोग से रुचि पैदा करते हुए ओशो की विवादित किताब 'सम्भोग से समाधि' तक पढ़ने की भावुक अपील कर डाली. समस्या यह थी कि ओशो की पैरवी करते-करते उन्होंने अपने लेख के अंत में बच्चों को संस्कारवान बनाने की जिम्मेवारी भी माता-पिता और समाज पर डाल दी. अब कोई यह बताये कि ओशो का उन्मुक्त-दर्शन और घर-समाज का अनुशासित संस्कार दोनों एक साथ किस प्रकार हो सकते हैं. वगैर, अनुशासन के संस्कार आ सकता है क्या? खैर, वगैर विषयांतर किये मुख्य मुद्दे पर आते हैं. ऊपर की पंक्तियों में पोर्न को धन्यवाद इसलिए देने की इच्छा हुई क्योंकि इसने सरकार पर दबाव बनाकर, विपक्ष वर्णित, सरकार की तथाकथित तानाशाही को झुका दिया और इसके सामानांतर सरकार को भी इसलिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने समाज में बवंडर की तरह उठ रही चर्चा को भाँपने में 24 घंटे से भी कम समय लिया और बैन हटा लिया, अन्यथा ट्विटर और फेसबुक के हैश टैग के साथ देश भी इस मुख्य मुद्दे पर चर्चा करके अपनी गंभीर प्रतिभा का परिचय जाने कब तक देता रहता. आखिर, हमारा समाज इतने दिनों से इस मुद्दे पर संकोच, शर्म, हया और परदे का विषय मानते-मानते कुंठित जो हो गया है! ऐसे में, चर्चा के इतने सुन्दर अवसर को हाथ से भला कैसे जाने दिया जाता? इसी कड़ी में, कांग्रेसी सांसदों के शोरगुल से परेशान सुमित्रा महाजन को भी संसद में 'पोर्नोग्राफी' पर राष्ट्रीय बहस की इजाजत देनी पड़ती और शरद यादव जैसे सक्षम, सर्वश्रेष्ठ सांसद जो दक्षिण भारतीय महिलाओं की बनावट और कसावट पर विशेष ज्ञान रखते हैं अपने तर्क और वक्तव्य से सदन को लाजवाब कर देते. पोर्नोग्राफी की ही महिमा है कि संसद से बर्खास्त किये गए थोड़े से बचे-खुचे कांग्रेसी सांसद भी खुश हो रहे होंगे कि चलो, जबरदस्ती के कमजोर विरोध से छुटकारा तो मिला, नहीं बेवजह विरोध 'छछूंदर' की तरह गले में अटक गया था. तमाम चैनल प्राइम टाइम में बहस का मुद्दा बनाने लगे थे कि क्या कांग्रेस का विरोध उचित है? अब कम से कम कांग्रेस की कमजोरी से ध्यान हटकर, मोदी सरकार पर ध्यान तो गया है और यह सब कुछ संभव हुआ है पोर्नोग्राफी की महिमा से. कहीं पढ़ा था कि सेक्स की जरूरत मनुष्य की बेसिक जरूरतों में शामिल होता है, किन्तु इससे भी जरूरी रोटी, कपडा और मकान जैसी आवश्यकताएं हैं. हालाँकि, इस विषय पर जिस प्रकार की हृदय स्पर्शी चर्चाएं हुईं, उसे देखकर लगा नहीं कि हमारे देश में कोई भूखा और गरीब भी है. अनेक क्षेत्र के धुरंधरों और महारथियों की इस विषय पर प्रतिक्रियाएं आयीं, जिनकी चर्चा करने की न तो यहाँ जरूरत है और न ही कोई मंतव्य, मगर बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज के इस सम्बन्ध में दिए गए बयान का एक हिस्सा जरूर समझने लायक है कि “इस तरह की चीज़े बैन करने से उन्हें चर्चा मिलती है और बैन हुई चीज़ के प्रति लोगों में जिज्ञासा ही बढ़ती है.” ऐसे में, सवाल यह भी उठता है कि क्या सरकार ने जानबूझकर इस विषय को हवा दी. खैर, इतनी बातें समझने के बाद भी, मन यह मानने को तैयार नहीं हुआ कि पोर्न जैसे मुद्दे, राष्ट्रीय चर्चा का विषय किस प्रकार बन गए! मगर ऐसा हुआ है, वह भी तमाम तर्कों-कुतर्कों, मुद्दों, आंकड़ों को ध्वस्त करते हुए इस विषय ने चर्चा की नयी ऊंचाई छुई है. हालाँकि, ऐसा भी नहीं है कि पोर्न के मामले में भारतीयों की ही इच्छाएं ज़ोर मरती हैं, बल्कि हाल ही आये एक आंकड़े के अनुसार ब्रिटेन की संसद में ढाई लाख बार पोर्न देखा गया है, मगर वहां कोई होहल्ला नहीं. इसके अतिरिक्त, अमेरिकी वाइट हाउस के बिल क्लिंटन और मोनिका लेविंस्की प्रकरण को पूरा विश्व देख ही चुका है. चीन जैसे देश में जहाँ इन सभी विषयों पर बैन है वहां भी इस पर गरमागरम चर्चा छिड़ी हुई है, मगर भारत जैसी राष्ट्रीय चर्चा कहीं नहीं होती. सोचने, समझने की बात यह भी है कि पश्चिमी देश रोटी, कपडा और मकान जैसी जरूरतों से पार पा चुके हैं, जबकि एक आंकड़े के अनुसार, भारत में आज भी 20 करोड़ लोग भूखे सोने को मजबूर हैं. क्या पोर्नोग्राफी जैसे मुद्दे को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाना उन भूखे नंगों का मजाक उड़ाना नहीं है. ऐसे विषयों पर दिमाग कुंद हो जाता है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सांप सूंघ जाता है. सभी आंकड़े उलटे पुल्टे हो जाते हैं और कलम लिखने से इंकार कर देती है. आखिर, हम ओशो नहीं हैं, हमें एक तरफ अपने परिवार में माँ-बाप, भाई बहनों को भी देखना है तो समाज में आर्मी से रिटायर्ड रामू काका से भी नजरें मिलानी हैं. और इन सबसे बढ़कर उन भूखे और नंगे लोगों का ख्याल आता है, जिसके बच्चे स्कूल का मुंह नहीं देख पाते हैं, उनका किसी विदेशी वेबसाइट या यूएनओ की पत्रिका में फोटो देखकर बौद्धिक विलास करना पाप लगता है. जी हाँ! बौद्धिक विलास, बौद्धिक विलास ... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही तो पर्यायवाची है यह! पहचानिये इस शब्द और उसके अर्थ को!
Intelligence terror, national debate on pornography, hindi article
porn, modi, porn ban, porn support, poor indian people, sex, human body, health, boy, girl, child crime, sex exploitation, rape, balatkar, Hindi lekhak, hindi kavi, kahanikar, rachnakar, writer, author, political writer, journalist, patrakar, Indian writer, current writing, samsamyiki, लेखक, कवि, कहानीकार, रचनाकार,
0 टिप्पणियाँ