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सार्थक, राजनीतिक और बेवकूफाना मोदी विरोध

नरेंद्र मोदी जैसा राजनेता भारतीय परिदृश्य में शायद ही कोई हुआ हो. न केवल अपनी लोकप्रियता और विवादित छवि के कारण, बल्कि उनके अनूठे विरोध के तौर तरीकों को भी गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया जाना चाहिए. उनकी हालिया अमेरिका यात्रा को ही ले लीजिये. इसमें फेसबुक के मालिक मार्क ज़ुकरबर्ग से उनकी मुलाकात को विवादित बनाने के लिए विरोधियों ने अनोखे तरीके अपनाए. फेसबुक हेडक्वार्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है और इसे उस वीडियो का जवाब माना जा रहा है जो बीते दो दिनों में वायरल हो चुका है. इस वीडियो के आधार पर सोशल मीडिया के जरिए लोगों ने पीएम पर आरोप लगाया कि उन्‍होंने फेसबुक के सीईओ माक जुकरबर्ग को बांह पकड़ कर अपने सामने से हटा कर साइड कर दिया, ताकि वह उनके और कैमरे के बीच नहीं आ सकें. वस्तुतः इस वीडियो के जरिये मोदी विरोधी मोदी के 'कैमरा-प्रेम' पर कटाक्ष करना चाह रहे होंगे! लेकिन नया वीडियो शेयर कर यह दावा किया जा रहा है कि असल में मोदी ने जुकरबर्ग को हाथ पकड़ कर अपने सामने से हटा कर बगल में खड़ा किया, ताकि कैमरे के फ्रेम में वह भी आ सकें. अब विरोध के इस स्वरुप को सार्थक कहा जाए या कुछ और यह आप ही तय करें.  विरोध का आलम यह कि ज़ुकरबर्ग को कुछ लोगों के एक संगठन ने 'सैनिटाइजर' की बोतलें भेजीं, क्योंकि मोदी से हाथ मिलाने के बाद ज़ुकरबर्ग के हाथ में भी खून लग गया है. क्या भारतीय अदालतें, जांच एजेंसियां और उससे आगे बढ़कर भारत की जनता की कोई इज्जत है ऐसे लोगों के मन में, जिसने नरेंद्र मोदी को हाथों हाथ लिया है, तमाम आरोपों से बरी किया है? शायद नहीं! ऐसे आत्ममुग्ध लोग अपने जायज़ / नाजायज़ विरोध का स्वर उठाकर ही अपने अस्तित्व की रोटियां सेंकते रहे हैं. ऐसे ही विरोधी विश्लेषणों में बीबीसी हिंदी जैसी अन्य वेबसाइट पर कई दिलचस्प लेख पढ़ने को मिलते हैं. मसलन, एक लेख में मोदी द्वारा वैश्विक नेताओं से 'गले मिलने का बहुत बारीक विश्लेषण किया गया' और उसके आधार पर उनके राजनीतिक, सार्वजनिक जीवन का पूरा चित्र प्रस्तुत कर दिया गया. कहा गया है कि मोदी गले मिलते नहीं हैं, बल्कि गले पड़ते हैं!  अभी दिल थाम कर बैठिये, क्योंकि मोदी विरोध के नाम पर आपको उनका ड्रेसिंग सेन्स, उनकी पत्नी से सम्बन्ध, एक लड़की का जासूसी प्रकरण और दुसरे ऐसे ही मुद्दे बड़े ज़ोर शोर से उठाये जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि 'गुजरात दंगों' को अगर छोड़ दिया जाए तो और किसी मामले में मोदी पर न तो कानूनी, न ही नैतिक, न ही भ्रष्टाचार के आरोप बनते हैं. यहाँ तक कि कोई एक व्यक्ति भी मोदी के खिलाफ शिकायत तक दर्ज नहीं करा सका है. जाहिर है कि उनका उभार, उनके तमाम विरोधों की पटकथाएं लगातार लिख रहा है. चाहे, वह विरोध सार्थक हो, बचकाना हो या बेवकूफाना ही क्यों न हो!
राजनीति से यूं तो संवेदना की उम्मीद नहीं ही की जाती है, लेकिन फिर भी कुछ सार्वजनिक मर्यादाएं निभाने की परंपरा हमारे देश में रही हैं जो एक-एक करके टूट रही हैं. कांग्रेस के कई दशकों के राजनीतिक वर्चस्व के बाद संघ पृष्ठभूमि की भारतीय जनता पार्टी के उभार ने राजनीति के पुराने बरगदों की जड़ों को उखाड़ने की हद तक हिला दिया हैं, इस बात से शायद ही किसी को इंकार हो. इस बात से भी किसी को इंकार नहीं हो सकता कि राजनीति में उतार चढ़ाव प्रत्येक व्यक्ति या पार्टी के जीवनकाल में आते ही हैं, लेकिन अगर किसी एक के उभार से किसी को 'सदमा' लग जाए तो वह व्यक्ति या संगठन बदहवास हो उठता है. कांग्रेस पार्टी 44 लोकसभा की सीटों तक सिमटने के बाद ऐसी ही बिडम्बना में जानबूझकर डूबती जा रही है. पिछले आरोप-प्रत्यारोपों को छोड़ दिया जाय और नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा पर कांग्रेसी प्रतिक्रियाओं पर गौर किया जाय तो साफ़ दिखता है कि बदहवासी में मर्यादाएं, संवेदनाएं ताक पर रखी जा चुकी हैं और अँधेरी कोठरी में फंसे व्यक्ति की तरह दीवारों पर कांग्रेस कभी नाखून मारती है तो कभी सर पटकती है. निराशा में वह कभी रोने लगती है तो कभी गुस्से में खुदा को गाली देने लगती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी हालिया अमेरिकी यात्रा की प्रशंसा का अंदाजा पाकिस्तानी मीडिया के रूख से ही लगाया जा सकता है, जिसने अपने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को लताड़ते हुए लिखा कि 'अमेरिका में मोदी का स्वागत स्टार की तरह हो रहा है, लेकिन नवाज वहां क्या कर रहे हैं?' न सिर्फ पाकिस्तानी मीडिया बल्कि अमेरिकी मीडिया ने भी एक स्वर में नरेंद्र मोदी की सिलिकॉन वैली की यात्रा को सफल बताते हुए, चीनी राष्ट्रपति से भी आगे कवरेज दिया. निष्पक्ष और बड़े अर्थशास्त्री माने जाने वाले, रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत को निवेश के लिए अच्छे विकल्प के रूप में पेश करने की पहल का समर्थन करते हुए कहा, "हमें बस इतना करना है कि वह (प्रधानमंत्री) अपनी यात्राओं में देश की जो छवि बनाकर आते हैं, उसे बरकरार रखने और उसे पुष्ट करने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करें..." रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'भारत का सटीक प्रवक्ता' करार देते हुए कहा कि केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के मामले में बढ़िया काम कर रही है. अब जाहिर है कि इतनी निष्पक्ष तारीफें किसी राजनीतिक विरोधी को तो पसंद नहीं ही आएँगी, जो स्वाभाविक ही है. मगर, क्या इसके चक्कर में कोई पागल होकर सड़कों पर दौड़ने लगेगा? पहले तो कांग्रेस में इस स्टाइल के माहिर खिलाड़ी दिग्विजय सिंह ही दिखते थे, लेकिन अब पूरी की पूरी कांग्रेस ने इस बदहवास स्टाइल को कॉपी कर लिया है.
अमेरिका में अपनी माँ के ज़िक्र पर प्रधानमंत्री मोदी की आँखों से आंसू क्या निकले, कांग्रेस ने तत्काल इस मुद्दे का राजनीतिकरण करते हुए इसे 'नाटक' बता डाला. न केवल एक प्रवक्ता ने, बल्कि उसके प्रवक्ताओं की टीम ने इसको अपना ऑफिशियल स्टैंड बनाते हुए टीवी चैनलों पर माँ और बेटे के पवित्र रिश्ते की गरिमा को रौंद डाला! न.. न... इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मोदी को क्लीन चिट दे रहा हूँ कि मोदी ने नाटक किया या नहीं, हम उसकी पुष्टि या खंडन नहीं कर सकते हैं... लेकिन, क्या दुनिया में ऐसी कोई मशीन बनी है कि 'माँ और बेटे' के रिश्ते को नाप सके, उनकी भावनाओं का वर्गीकरण कर सके... !! इस भावना प्रधान देश में कांग्रेस को इतनी भी समझ नहीं आती है, इससे बड़ी बिडम्बना और क्या हो सकती है? रामकथा के मर्मज्ञ मोरारी बापू ने भी इसी मुद्दे पर सवालिया लहजे में कांग्रेस से पूछा कि अगर मां को याद कर आंसू आ गए तो क्या हुआ? उन्‍होंने कांग्रेस के रवैये को संवेदनहीन बताते हुए कहा कि एक आदमी ने मां को याद किया और उसकी आंखों से आंसू आ गए तो इसमें अलग या विचित्र क्या है? अपनी मां को याद करके किसके आंसू नहीं निकले हैं? बापू ने यह भी कहा कि कांग्रेस वालों तुम संवेदनाहीन हो चुके हो! हालांकि, मोरारी बापू ने अपने बयान के बाद यह भी साफ़ किया कि उन्हें सियासत से कोई लेना-देना नहीं है. कई ओर से कांग्रेसी रूख पर आलोचना आने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेसी मानसिकता में थोड़ा भी बदलाव आये! क्योंकि, इस देश को मजबूत विपक्ष की वाकई जरूरत हैं! कांग्रेस अगर अपने राजनीतिक चक्षु खोलकर देखे तो प्रधानमंत्री के विरोध के लिए उसे कई सार्थक विकल्प मिल जायेंगे. देश में मरते हुए किसान, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, साम्प्रदायिक तनाव, आरक्षण पर बढ़ता जातिगत तनाव और ऐसे ही तमाम दुसरे मुद्दे! तब शायद 'माँ और बेटे' के रिश्ते पर कांग्रेस इतनी घटिया राजनीति करने से बाज भी आ जाए और फिर उसकी राजनीति को थोड़ी बहुत रौशनी भी दिखे! लेकिन, एयर कंडीशन में बैठ कर राजनीति करने वालों को आरामतलबी की आदत पड़ गयी है, इसलिए उन्हें मर्यादा, संवेदना, राजनीति जैसे शब्द विस्मृत हो गए लगते हैं. सार्थक विरोध की श्रेणी में शिवसेना का रूख देखने योग्य हैं. वह प्रधानमंत्री के बढ़ते कद को सटीक बातों से विरोध कर रही हैं. सामना में शिवसेना के हवाले से ठीक ही छपा कि मोदी की लोकप्रियता से पहले भी लोकप्रिय नेता हुए हैं और इसलिए भाजपा को किसी ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए. शिवसेना ने दूर की राजनीति भांपते हुए अपने राजनीतिक विरोधी कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों नेहरू, गांधी और नरसिम्हा राव समेत मनमोहन सिंह की तारीफ़ करने से भी नहीं चूकी! अरविन्द केजरीवाल भी अब मोदी का सार्थक विरोध करना सीख रहे हैं, तभी उन्होंने मोदी के विदेश दौरों से निकले आउटपुट की तरफ ध्यान देने की बात कही हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी विरोध के नाम पर सार्थक, राजनीतिक और बेवकूफाना विरोध के बीच में फर्क किया जायेगा और एक मजबूत प्रधानमंत्री की असीमित होती ताकत को लोकतान्त्रिक ढंग से नियंत्रित करने पर ध्यान दिया जायेगा. यही वक्त की जरूरत है... कांग्रेस सुन रही हैं न ... !!!
 
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