आज अगर नेपाल में संविधान लागू होने का जश्न मनाया जा रहा है तो इसकी पृष्ठभूमि में तमाम संघर्षों की दास्ताँ शामिल है. यहाँ तक कि नेपाल में माओवादी हिंसक संघर्ष ने भी लोकतांत्रिक ढांचा खड़ा करने में अपनी भूमिका का निर्वहन किया, नहीं तो आज भी वहां राजशाही ही होती. इस बात को कई विश्लेषक खुले दिल से स्वीकार करते हैं. यह बात अलग है कि उसी संघर्ष के कारण नेपाल का राजनीतिक ढांचा अस्त व्यस्त हो गया है और इसमें वहां की अनेक जातियों और क्षेत्रीय शक्तियों का संयोजन नहीं हो पा रहा था, जो देश में ‘संविधान 2072’ लागू होने के बाद काफी हद तक सुलझने के करीब दिख रहा है. संविधान सभा अध्यक्ष सुभाष नेमवांग की अगुवाई में सत्तारूढ सीएपीएन, यूएमएल, यूसीपीएन और माओवादी गुटों के बीच तमाम तनातनी के दौर के बाद संविधान को संविधान सभा ने 85 प्रतिशत बहुमत के साथ पारित किया है. इसके साथ प्राचीन हिंदू राष्ट्र नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य हो गया है. हालाँकि, हिन्दुत्ववादी संगठन इस बात पर खुश हो सकते हैं कि सनातन हिंदू धर्म की रक्षा का जिम्मा सरकार को दिया गया है तो हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाने वाली गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है. साथ ही साथ धर्म परिवर्तन को भी गैर कानूनी माना जाएगा. नेपाली संविधान के तकनीकी पहलु की ओर देखें तो नेपाली संविधान में 37 खंड, 304 आर्टिकल और सात अनुसूचियां हैं. संविधान के मुताबिक, संसद के दो सदन होंगे, जिसमें निचले सदन प्रतिनिधि सभा में 375 सदस्य होंगे, वहीं उच्च सदन में 60 सदस्य होंगे. देश सात प्रांतों का संघ होगा, जिनके नाम बाद में तय होंगे तो बुरुंश का फूल राष्ट्रीय पुष्प होगा. इसी कड़ी में साहसिक निर्णय के अंतर्गत लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर को समान अधिकार हैं और ऐसा करने वाला एशिया में पहला देश बन गया है नेपाल. किसी भी तरह के यौन और लैंगिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव पर रोक लगाई गयी है तो देवनागरी में लिखी नेपाली राष्ट्रभाषा होगी तथा शेष सभी भाषाओं और बोलियों को समान दर्जा हासिल होगा. कहते हैं कि पहाड़ों ने बहुत कुछ देखा है, सदियों से, दशकों तक. निश्चित रूप से नेपाल ने भी पिछले दशकों से बहुत कुछ देखा और झेला है. बचपन में जब जनरल नॉलेज की किताबों में पढ़ाया जाता था कि कौन सा ऐसा देश है जो आज तक गुलाम नहीं हुआ तो 'नेपाल' का नाम पढ़कर गौरव से सीना चौड़ा हो जाता था, वहीं एक भारतीय होने के नाते भी जब हम यह देखते सुनते थे कि नेपाली संस्कृति भारतीय संस्कृति के करीब है तो गौरव भाव और भी बढ़ जाता था. बाद में इस राष्ट्र में कभी माओवादी समस्या के रूप में उभार देखने को मिला तो वक्त - बेवक्त राजनैतिक उथल पुथल ने इस देश की नब्ज़ को दुखी किये रखा. राजशाही और हिन्दू राष्ट्र के रूप में अब तक पहचाने जाने वाले इस राष्ट्र ने अपनी दोनों पहचानों से आगे बढ़ने को स्वीकृति देते हुए देशवासियों को नया संविधान दे दिया है. देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राम बरन यादव ने नेपाल के इस ऐतिहासिक संविधान को अधिकारिक तौर पर राष्ट्र को समर्पित किया और इसके साथ ही दुनिया ने एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र में बदलते हुए देखा और हर्ष के साथ स्वागत किया. सात प्रांतों के इस राष्ट्र में अब बहुमत पर आधारित 'सुधरा हुआ बहुदलीय प्रजातंत्र' होगा. कमोबेश यह भारतीय व्यवस्था के आधार पर ही दिखेगा, जहाँ ग्राम पंचायतों से लेकर प्रांतीय सरकारें और फिर केंद्र सरकार का गठन सुनिश्चित किया जायेगा. कई लोग इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि नेपाल ने हिन्दू राष्ट्र का दामन छोड़ के धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर बढ़ने का निर्णय क्यों लिया, तो उनको यह समझना होगा कि बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियों में लोगों को रोजी-रोजगार और गरीबी से निकालने की ज्यादे आवश्यकता है और यह तभी संभव है जब राज्य धर्म से ऊपर उठकर अपने देश का विकास सुनिश्चित करने का प्रयास करे. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि धर्म को तिलांजलि दे दी जाय, लेकिन राजसत्ता शुद्ध रूप से नागरिकों के जीवन स्तर से ही जुड़ी होनी चाहिए और नेपाली संविधान में इसका बखूबी ध्यान रखा गया है. हाल ही में आये विध्वंसकारी भूकम्प ने नेपाल की स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है, जिसके कारण मानव तस्करी की घटनाएं भी काफी बढ़ी हैं. अब नए संविधान और उसको लागू करने वाले नेपाल के नेता अपने नागरिक जीवन-स्तर में किस प्रकार से सुधार ला पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. अपने स्वरुप और पहचान को कायम रखते हुए अगर यह पहाड़ी देश अपने नागरिक अधिकारों के प्रति और उनके जीवन स्तर में सुधार के प्रति सजग रहा तो कोई कारण नहीं कि भारतीय उप महाद्वीप में इस राष्ट्र की भूमिका और भी महत्वपूर्ण न हो! जहाँ तक भारतीय नेतृत्व की बात है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश सचिव एस. जयशंकर को नेपाल भेजा है और वे नेपाली नेतृत्व से सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की अपील कर रहे हैं. दिलचस्प यह भी है कि सभी प्रांतों की सीमा भारत से लगेगी. हालाँकि, प्रस्तावित सात राज्यों के नाम और सीमाएं अभी तय नहीं किए गए हैं और यह एक बेहद जटिल और विवादित मुद्दा है.
देश के दक्षिणी तराई इलाक़े और पश्चिमी इलाक़ों में इन प्रस्तावों को लेकर हिंसक प्रदर्शन भी हुए हैं जिनमें 40 से ज्यादे लोग मारे गए हैं. नेपाल की तराई में रह रहे लोग पिछले 39 दिनों से ज्यादे समय से हड़ताल पर हैं, जिनके बारे में पूरी वैश्विक बिरादरी ने चिंता प्रकट की है. इस कड़ी में, दक्षिणी नेपाल में रहने वाले मधेसियों और थारू जैसे अन्य जातीय समूहों, मुस्लिम अल्पसंख्यकों और देसी लोगों के हितों और चिंताओं का ध्यान रखने के लिए संविधान में एक अलग आयोग गठित करने का प्रावधान भी है, जिस पर असंतुष्टों को विश्वास दिलाया जाने का प्रयास किया जाना चाहिए. आरक्षण की बातों पर भारत में भी आज कल हंगामा मचा हुआ है तो नेपाली संविधान में भी आरक्षण और कोटा व्यवस्था के ज़रिए वंचित, क्षेत्रीय और जातीय समुदायों के सशक्तिकरण की व्यवस्था की गई है. मूल निवासियों, दलितों, अछूतों और महिलाओं के लिए स्थानीय प्रशासन, प्रांतीय और संघीय सरकार से लेकर हर स्तर पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है. अमरीका, चीन, ब्रिटेन और भारत समेत नेपाल के सभी विदेशी दोस्तों ने संविधान के पूरा होने की प्रशंसा की है. हालांकि इन देशों ने दक्षिणी नेपाल में जारी विरोध प्रदर्शनों पर चिंता भी ज़ाहिर की है और यही असल चुनौती है नेपाल सरकार के सामने कि हिंसा को नियंत्रित करते हुए किस प्रकार वह अपने नागरिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाती है. इस चुनौती से इस नए धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक देश को पार पाना ही होगा और नेपाल इसे करने में सक्षम होगा, क्योंकि वहां के लोग पहाड़ों पर चढ़ाई करना बखूबी जानते हैं.
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