भारत और अमेरिका पिछले समय में जिस तरह से एक दुसरे के करीब आये हैं, उससे वैश्विक समीकरणों में महत्वपूर्ण बदलाव आने की सुगबुगाहट साफ़ दिख रही है. हालाँकि, प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिलिकॉन वैली दौरे का अहम मकसद अपनी तीन योजनाओं डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया को तेजी से आगे बढ़ाना है और इसके लिए सरकार की योजना अगले तीन सालों में ढाई लाख गांवों को इंटरनेट कनेक्शन से जोड़ना है. माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक, इनटेल, एचपी, सिस्को जैसी कंपनियां सभी सिलिकॉन वैली में हैं और मोदी वहां की हाईटेक कंपनियों और सीईओ के साथ जुड़कर अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. बेहद थकाऊ कार्यक्रम और एक के बाद एक धुआंधार मीटिंग करते हुए आपने शायद ही किसी और प्रधानमंत्री को इससे पहले देखा हो, जैसा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते दिख रहे हैं. विश्लेषक इसका कुछ और अर्थ निकालें या न निकालें, लेकिन उम्मीदों का बोझ और जिम्मेवारी निभाने की चाहत इस राजनेता की रग रग में दिखती है, इस बात से शायद ही किसी को इंकार हो. उनकी इसी मेहनत को न केवल आम जनता, बल्कि तमाम वैश्विक लीडर्स भी सम्मान दे रहे हैं और उनके सपोर्ट में कइयों के बयान भी सामने आ रहे हैं, जिसे भारतीय खेमे की बड़ी उपलब्धि कही जानी चाहिए. संयोगवश चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी अमेरिकी दौरे पर हैं, लेकिन अमरीका का कहना है कि साइबर संसार में चीन की जासूसी गतिविधियों के कारण दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं.
अमेरिकी प्रशासन के अतिरिक्त चीन में अमेरिका की बड़ी कंपनियां जैसे फेसबुक, गूगल, ट्विटर इत्यादि के बैन होने से भी सिलिकॉन वैली में चीन का उस तरह से वेलकम नहीं हुआ है, जिस प्रकार भारतीय प्रधानमंत्री का किया गया है. चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग की सिलिकॉन वैली विजिट के बाद मोदी का दौरा कई मायनों में अहम है और यहाँ समझना आवश्यक है कि चीन के मुकाबले भारत की अर्थव्यवस्था भले ही छोटी है, लेकिन इसके दरवाजे विदेशी समूहों के लिए खुले हैं. खास बात ये भी है कि मोदी अमेरिकी कंपनियों को देश में इनवेस्टमेंट का ऑफर दे रहे हैं, जो उन्हें जिनपिंग से शायद नहीं मिलेगा! मोदी की अमेरिकी यात्रा की उपलब्धि में हम इसे भी पर रख सकते हैं. इसी कड़ी में विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यंग किम ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सुधारों की दिशा में की गई नई पहल से भारत की तरफ देखने के दुनिया के नजरिये पर काफी प्रभाव पड़ा है. लगे हाथ उन्होंने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान और ‘स्वच्छ गंगा’ कार्यक्रम की भी सराहना की. संयुक्त राष्ट्र महासभा के यहां जारी सत्र के दौरान अलग से मोदी के साथ हुई बैठक में विश्व बैंक अध्यक्ष ने ‘स्वच्छ भारत’ और ’स्वच्छ गंगा’ कार्यक्रम में हुई प्रगति की सराहना की, जिनमें विश्व बैंक खुद भी महत्वपूर्ण भागीदार है. व्यक्तिगत तारीफ़ के मामले में मोदी पर मीडिया मुग़ल कहे जाने वाले रूपर्ट मर्डोक भी काफी मेहरबान दिखे, जिन्होंने आज़ाद भारत का सबसे बढ़िया नेता बताया नरेंद्र मोदी को. व्यक्तिगत स्कोरिंग में फेसबुक के ऑफिस में क्वेश्चन-आंसर सेशन और गूगल के सुन्दर पिचाई द्वारा मोदी के स्वागत में वीडियो जारी करना बहुत कुछ कहता है. हालाँकि, इन सब बातों के पीछे के उद्देश्यों को समझना आवश्यक है. ज़ुकरवर्ग अपने इंटरनेट डॉट ओआरजी प्रोग्राम के लिए चाहते हैं कि भारत में इंटरनेट का एक्सपैंशन हो. भारत में 12.5 फीसदी लोगों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है, और जैसे-जैसे यह संख्या बढ़ेगी फेसबुक समेत दूसरी ऑनलाइन कंपनियों का व्यापार भी उसी रफ़्तार से आगे बढ़ेगा. फेसबुक के इस महत्वकांक्षी मिशन के अलावा, सरकार द्वारा कॉन्फिडेंशियल इन्फॉर्मेशन मांगने का मुद्दा और टैक्स व्यवस्था की दिक्कतों को दूर करने के साथ भ्रष्टाचार पर सुधार की बात होना तो कॉमन मुद्दा है ही! इसके साथ अब तक जो जानकारी मिली है, उसके आधार पर मोदी की इच्छा है कि जुकरबर्ग भारत में शिक्षा और ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में सहयोग करें. इसके बारे में कंपनी सीओओ शेरिल सैंडबर्ग ने अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान संकेत भी दिए थे.
अगर ऐसा होता है तो भारत में शिक्षा की बुनियादी दिक्कतों को दूर करने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है. फेसबुक के अतिरिक्त, एप्पल के टिम कुक भारत में प्रोड्क्ट्स को नया लुक देने वाली यूनिट लगाना चाहते हैं, लेकिन भारत की इंडस्ट्रियल पॉलिसी इसमें बाधा है. एप्पल सीईओ मोदी से पॉलिसी में बदलाव की मांग कर सकते हैं, जिसके बाद भारत में पैर जमाकर एप्पल भारत और एशिया के दूसरे देशों में सैमसंग जैसी कंपनी को टक्कर देने में सक्षम हो सके. इसके साथ मोदी की इच्छा है कि एप्पल भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाए, ताकि मेक इन इण्डिया प्रोग्राम को बल मिल सके. यूं भी एप्पल के लिए भारत दुनिया का बड़ा बाजार है और इसी साल तीसरी तिमाही में भारत में आईफोन की बिक्री 93 फीसदी बढ़ी है, जबकि चीन में इसकी विक्री मात्र 87 फीसदी ही बढ़ी है. उद्योग जगत 'मेक इन इण्डिया' से ज्यादा 'इन्नोवेट इन इण्डिया' की सलाह दे रहा है, जिससे भारत इनोवेशन में अपनी माहिरता साबित करने में सक्षम हो सके. हालाँकि, उद्योग जगत निवेश करने के बदले नागरिक अधिकारों से समझौता करने की नाजायज़ मांग पर दबाव न बना सके, इस बाद का ध्यान भारतीय प्रशासन को रखना ही होगा. ऐसे ही कई दबावों की बात भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते में भी सामने आयी थी, जिससे अब बचने की कोशिश ही सार्थक रहेगी. मोदी की अगली उपलब्धि में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में विस्तार के मुद्दे पर अपनाई जाने वाली रणनीति रही है. इस सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र की 70वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और इसका प्रतिनिधित्व व्यापक करने की जोरदार वकालत करते हुए कहा है कि इसकी विश्वसनीयता और औचित्य बनाये रखने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है. साथ ही उन्होंने विकसित देशों से कहा कि विकास और जलवायु परिवर्तन की अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को वे पूरा करें. अपने प्रभावी भाषण में मोदी ने आईएस को पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा बताया तो गरीबी से निपटने के लक्ष्य को दुनिया के सामने रखा. हालाँकि, सुरक्षा परिषद में विस्तार अभी दूर की कौड़ी ही दिखती है. जी-4 बैठक में भी प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मुद्दा जोर शोर से उठाया है. भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी की भागीदारी वाले समूह में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि आज के दौर में दुनिया काफी बदल चुकी है. क्लाइमेट चेंज, आतंकवाद, गरीबी जैसी कई चुनौतियां दुनिया के सामने खड़ी हैं तो शांति और सुरक्षा सबसे अहम मुद्दा है. इससे निपटने के लिए सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. इन तमाम कड़ियों को जोड़ते हैं तो भारत अमेरिका संबंधों की मजबूती, चीनी रणनीति की काट, भारत में इन्वेस्टमेंट और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए प्रयास के रूप में भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा का प्रयास दिखता है. प्रधानमंत्री बहुत सधे कदमों से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन देशी और विदेशी निवेशक अब उनसे ठोस परिणामों की अपेक्षा कर रहे हैं. भारतीय नौकरशाही की रफ़्तार में सुधार और भारतीय कृषि-क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में कोई सुगबुगाहट न होना निश्चित रूप से सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि पूरी दुनिया के सामने भारत का चमकता हुआ, आत्मविश्वासी चेहरा सामने आ रहा है. अब चेहरे के पीछे हमारा स्वास्थ्य किस प्रकार बेहतर होगा, यह आने वाले समय में ही बेहतर तरीके से पता चल सकता है.
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