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नवरात्रि पर चलायें कन्याओं की रक्षा का अभियान

अनगिनत बुद्धिजीवियों द्वारा, अनेक जगहों पर यह बात कही गयी है कि हिन्दू धर्म सबसे वैज्ञानिक धर्म है और इसके अनेक कर्मकांड सामाजिक कुरीतियों व समस्याओं को दूर करने का सामूहिक प्रयत्न करते हैं. खुद आरएसएस के मोहन भागवत का भी हालिया बयान इसी सन्दर्भ में आया जब उन्होंने हिन्दुओं से वैज्ञानिक सोच रखने की अपील की थी. चाहे आप होली की बात करें, जिसमें अमीर गरीब, छोटे बड़े का भेद मिट जाता है और समाज में समरसता आती है, तो दिवाली में अंधकार के ऊपर प्रकाश की विजय की गाथा हम जानते ही हैं, जो हमें सर्वदा बुराइयों और अहंकार से दूर रहने को प्रेरित करती है. ऐसे ही नवरात्रि में माँ शक्ति की आराधना नारी जाति को सम्मान और सुरक्षा देने के विषय से जुड़ी हुई थी, जिसके मूल उद्देश्य पर कालांतर में कर्मकांड की परतें चढ़ गयीं. अब देखिये, हमारे समाज की बिडम्बना कि एक ओर हम कन्यापूजन करते हैं तो दूसरी ओर हमारी बच्चियों के शरीर का मांस मनुष्य के रूप में गिद्ध नोचते हैं और हम उनकी रक्षा करने के लिए सामूहिक रूप से खड़े होने की आवश्यकता भी महसूस नहीं करते हैं. शक्ति की प्रतीक, माँ दुर्गा के पर्व के रूप में सदियों से मनाया जाने वाला दशहरा पर्व शुरू हो गया है. दुकानों पर आपको नारियल और पूजा की सामग्री दिखेंगी तो मंदिरों में सुबह सुबह श्रद्धालुओं की भीड़. भारी मन से यह लिखना पड़ रहा है कि नवरात्रि की पहली रात अभी आयी नहीं कि एक दुख़द खबर ने दिल को न सिर्फ तोड़ दिया, बल्कि इस पर्व की महत्ता पर भी मन में कई सवाल उठने लगे कि क्या हम सिर्फ ऊपरी कर्मकांड कर के ही धर्म की इतिश्री कर लेते हैं? आखिर, हम धार्मिक मान्यताओं को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्यों नहीं खड़ा करते हैं, जो इसका मूल उद्देश्य भी है! नवरात्रि के पहले ही दिन, मोगा जिले के धर्मकोट गांव में एक युवक ने एक मंदबुद्धि 13 वर्षीय लड़की का कथित तौर पर अपहरण कर उसे अपनी हवस का शिकार बनाया है. पुलिस के अनुसार धर्मकोट गांव में एक युवक ने ऐसी लड़की का अपहरण किया, जो कि मंदबुद्धि होने के साथ ही बोल भी नहीं सकती है. अपहरण के बाद आरोपी ने कथित रूप से एक खेत में ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया. हालाँकि, फरार आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है और उसकी तलाश की जा रही है, लेकिन इस बड़ी सामाजिक समस्या से लड़ने के लिए किसी जागरूकता अभियान की कहीं सुगबुगाहट नहीं दिखती है, जो हमारी संकुचित दायरे की ओर चीख चीख कर ऊँगली उठा रही है.

दशहरा जैसे पावन पर्व, जिसमें कन्या पूजन का विधान होता है, अगर उस समय भी इस तरह के दुराचारी कानून से नहीं डरते हैं तो फिर इसके खिलाफ समाज को ही एकजुट प्रयास करने की आवश्यकता है. दशहरे में किराने की दुकानों पर अंडा बिकना बंद हो जाता है, मीट की दुकानों पर मीट बिकना बंद हो जाता है, शराबी शराब छोड़ देते हैं, लेकिन ये दुराचारी... वह भी बच्चियों के साथ... !! लिखने में कलम जवाब देती है... सोचने से बुद्धि कुंद हो जाती है, लेकिन दुराचारियों का दुराचार अनवरत चलता रहता है... माँ दुर्गा तो जगत की रखवाली हैं, अगर वह धरती पर खुद नहीं आ सकती हैं तो कम से कम अपने भक्तों को तो यह सीख दें कि हर घर से, हर व्यक्ति के दिल से दुराचारियों के खिलाफ आवाज निकले! अगर देश यह ठान ले और अपने घर में माँ दुर्गा की फोटो के साथ दुराचारियों के विरोध का बैनर भी लगा दे, हर मन्त्र के साथ दुराचारियों के खिलाफ भी शक्ति मन्त्र, सामूहिक रूप में निकले तो यह आवाज जल्द ही देश की आवाज बन जाएगी! धर्म के साथ केवल दादरी जैसे मामले ही क्यों जोड़े जाएँ, पंजाब की उस बच्ची की आवाज धर्म के साथ क्यों नहीं जोड़ी जा सकती? क्या उसका मांस इतना भी कीमती नहीं है कि लोग आवाज उठाएं, आंदोलन करें... !! सिर्फ पंजाब ही क्यों, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के केशवपुरम इलाके में झोपड़पट्टी में रहने वाली चार साल की एक मासूम बच्ची के साथ कलेजा चीर देने वाला दुष्कर्म हुआ... नवरात्रि शुरू होने के एक दिन पहले की इस घटना में डॉक्‍टरों का कहना था कि इस वारदात में बच्‍ची के आंतरिक और निजी अंगों को बेहद गंभीर चोटें आई थीं. उसके सारे शरीर पर काटने के निशान थे, जिसे ठीक होने में छह महीने से ज्यादा वक्‍त लग सकता है. नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना करने वाले भक्तों को यह जानना समझना आवश्यक है, क्योंकि कानून के वश की बात नहीं है, इन अपराधों पर नियंत्रण करना! दिल्ली की इस दिल दहला देने वाली घटना, जिसमें एक गरीब परिवार से ताल्‍लुक रखने वाली बच्‍ची को चाउमीन खिलाने और 10 रुपए देने का लालच देकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया और बच्‍ची के पिता के अनुसार आरोपी का इरादा बच्‍ची को मारने का भी था!

इस प्रकार के वातावरण के खिलाफ हम कब तक आँखें मूंदें रहेंगे. कब तक कन्यापूजन के नाम पर हम दो साल की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा को पूजते रहेंगे तो भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेंगे! कन्याओं के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाने का क्या मतलब है? हाथों में मौली बांधकर और माथे पर रोली से टीका लगाकर हम कौन से पुण्य अर्जित कर लेंगे? भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाकर क्या हम सच में उनकी कृपा के पात्र बन जायेंगे? कन्याओं को लाल चुन्नी और चूडि़यां चढ़ाकर हम उनके मन में सुरक्षा का अहसास दे पाएंगे क्या? आज हम आधुनिक हैं, सुविधा संपन्न हैं, हर तरह से जानकार हैं... अगर कुछ नहीं है हमारे भीतर तो सिर्फ सामाजिक जिम्मेवारी निभाने की कूव्वत! अगर सामूहिक रूप से हम सामाजिक जिम्मेवारियों से मुंह चुराना बंद कर दें तो फिर कोई 'निर्भया' दुराचार का शिकार नहीं होगी!  ऊपर सिर्फ दो घटनाओं का विवरण इसलिए दिया गया है, क्योंकि इसमें न तो कोई भड़काऊ कपड़े का मामला था, न कोई और दूसरा कारण... बल्कि, इसमें सिर्फ गन्दी मानसिकता ही दोषी है, जिसका निवारण माँ दुर्गा के भक्त, वह भी एक साथ होकर ही कर सकते हैं. ज़ाहिर है, हर किसी के घर बेटी है, बहन है, पत्नी है, माँ है... इसलिए इनकी रक्षा का दायित्व समाज का ही है, जो व्यापक जागरूकता से ही संभव है और नवरात्रि पर इस जागरूकता अभियान की शुरुआत हो जानी चाहिए! अगर हम सोचते रहे कि संकट हमारे ऊपर नहीं आया है, बल्कि पड़ोसी के ऊपर आया है, तो फिर अगला नंबर हमारा भी तो हो सकता है! अगर हर व्यक्ति, अपने व्रत के समय इन बुराइयों के समाधान पर चिंतन करे तो समाज में वह सोच अपने आप पैदा हो जाएगी, जो मनुष्य के रूप में गिद्धों को विलुप्त कर देगी! और सबसे बड़ी बात यह है कि इससे बढ़कर माँ दुर्गा की पूजा नहीं होगी, गौ माता की पूजा नहीं होगी, माँ सरस्वती की पूजा नहीं होगी.... साहित्यकार, पत्रकार, आम आदमी... सबको ही इस समस्या के समाधान पर चिंतन करना ही होगा! यही एक रास्ता है माँ भगवती की असली आराधना का!


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