पिछले 22 सितम्बर को जब गुडगाँव से 'कार फ्री डे' मनाने की खबर आयी तो मन के किसी कोने ने यह सोचने का दुस्साहस कर लिया कि बढ़ते प्रदूषण पर लोग चिंतित होना शुरू कर रहे हैं. सुबह 7 बजे से शाम के 7 बजे तक लोगों से अपनी गाड़ियों को सड़कों पर न उतारने को कहा गया, हालाँकि सड़कों पर इसका ज्यादा असर नहीं दिखा, बावजूद इसके कि प्रशासन द्वारा 400 बसों का इंतजाम 'दिन विशेष' के लिए किया गया तो, इस अभियान को गुड़गांव प्रशासन, रोडवेज़, रोड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी, नैसकॉम, राहगिरी फाउंडेशन और रेपिड मेट्रो के साथ निजी कंपनियों ने भी अपना सहयोग दिया. मजेदार बात यह है कि गुडगाँव प्रशासन की इस पहल को झटके से दिल्ली सरकार ने लपक लिया, जो विभिन्न मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ लड़ाई में उलझी हुई है. देश में मचे तमाम घमासान के बीच जो यह एक सकारात्मक खबर थी, जिसे मीडिया ने उस तरीके से कवर नहीं किया जितनी कवरेज उसे मिलनी चाहिए थी. सच कहा जाय तो दिल्ली सरकार की इस पहल को पहली बार गंभीरता से लेने में संकोच नहीं हो रहा है, अन्यथा अब तक उसके प्रयासों को राजनीतिक और मीडिया हलकों में बचकाना ही समझा जा रहा था. दिल्ली पुलिस की आपत्ति के बावजूद इस कार्यक्रम को सफल घोषित किया गया. हालाँकि, दिल्ली पुलिस ने पहले अक्टूबर महीने के आखिर में ‘कार-फ्री डे’ कार्यक्रम मनाने की आप सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को यह कहते हुए मंजूरी देने से इनकार कर दिया था कि सरकार ने इसे लेकर कोई फैसला करने से पहले पुलिस बल से ‘पूर्व विचार विमर्श’नहीं किया.
जाहिर है, दिल्ली सरकार से कई मामलों में टकराव के रूख का सामना करने वाली पुलिस इस प्रयास को भी गंभीरता से नहीं ले रही थी. मुख्य सचिव केके शर्मा को लिखी अपनी चिट्ठी में पुलिस उपायुक्त बीएस बस्सी ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि कार्यक्रम मनाने के लिए 22 अक्तूबर का दिन चुनना जिस दिन लोग दशहरा मनाएंगे, ‘जल्दबाजी में लिया गया काफी अव्यवहारिक कदम’ लगता है, लेकिन जिस प्रकार से 'कार फ्री डे' को सफल बताया गया, उससे जाहिर हुआ कि आप सरकार इस मुद्दे से न केवल लोगों का विश्वास जीतने में सफल रही बल्कि राजनीतिक रूप से भी दिल्ली पुलिस पर बढ़त दर्ज करने में सफल रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसके बाद कहा कि दिल्ली के प्रदूषण में यातायात एक बड़ी भूमिका निभाता है और इसे कम करने के लिए सुगम सार्वजनिक परिवहन आवश्यक है. अपने चिर-परिचित अंदाज में उन्होंने यह दावा भी किया कि मनाए गए 'कार फ्री डे' ने प्रदूषण को 60 प्रतिशत तक कम कर दिया है. हालाँकि, पर्यावरण से जुड़े संगठनों ने इस पर मिली जुली प्रतिक्रिया दी. सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) ने दावा किया कि इस अभियान के चलते प्रदूषण में भारी कमी दर्ज की गई जबकि ग्रीनपीस इंडिया ने इसे एक प्रतीकात्मक पहल बताया. सीएसई ने एक विज्ञप्ति में कहा कि लाल किला से इंडिया गेट तक कार फ्री डे के दौरान महीन प्रदूषणकारी कणों के स्तर में काफी कमी दर्ज की है. इस स्थान पर 'कार फ्री डे' से एक दिन पहले शाम को दर्ज प्रदूषण के स्तर से 60 फीसदी कमी दर्ज की गई, जबकि इसमें पीएम 2.5 (महीन कण) में 45 फीसदी की कमी दर्ज की गई. खैर, आंकड़े जो भी हो यह तो सबने ही माना है कि दिल्ली सरकार का यह एक महत्वपूर्ण कदम रहा है और उससे इसकी छवि में भी सुधार हुआ है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में दिल्ली सरकार टकराव के बजाय इसी प्रकार के सकारात्मक अभियानों के जरिये अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत बनाएगी. वैसे भी, दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेश में उसे टकराव के रास्ते पर जाकर कुछ ख़ास हासिल नहीं होने वाला. हाँ! अगर अरविन्द केजरीवाल सामाजिक मुद्दों के जरिये जनता के दिल में पैठ बनाने की कोशिश करें तो वह निश्चित रूप से अपनी छवि को पुख्ता और गंभीर कर सकते हैं. ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल द्वारा किया जाने वाला यह एक बेहतरीन प्रयास है, जिसे सराहा ही जाना चाहिए. दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल रॉय के अनुसार कार फ्री डे के दौरान कार चलाने की जिद्द करने वालों को गुलाब का फुल देकर आप कार्यकर्ताओं ने अपने अभियान को सफल बनाने की कोशिश की, जिसे सराहना मिलनी चाहिए, हालाँकि आगे अभी काफी लम्बी चुनौतियां हैं, जिसे निभाने के लिए कालजयी प्रयास की आवश्यकता है. आंकड़ों की ओर गौर करें तो, दिल्ली में आने के लिए 124 प्वाइंट हैं और दिल्ली में 66,000 गाड़ियां रोजाना एंटर करती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के फैसले में कहा था कि ऐसे वाहनों के दिल्ली प्रवेश पर पाबन्दी लगनी चाहिए, जिसकी आखिरी मंजिल दिल्ली नहीं है. हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया है कि दिल्ली में आने वाले कमर्शियल वाहनों को 700 से 1,300 रुपए तक पॉल्युशन चार्ज के तौर पर यह जुर्माना लगाया जाए. सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला 1 नवंबर से लागू होगा और प्रयोग के तौर पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला फिलहाल 4 महीने के लागू किया जाएगा. हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पैसेंजर वाहनों और एम्बुलेंस पर नहीं लगाया जाएगा. प्राप्त खबरों के अनुसार, दिल्लीवासियोंको बढ़ते प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार उन ट्रकों पर हर हाल में प्रदूषण टैक्स लगाने को तैयार है, जो सिर्फ राजधानी से गुजरकर दूसरे राज्यों में जाते हैं.
जाहिर है, छिटपुट उपायों के साथ कई स्तर पर प्रयास हो रहे हैं, लेकिन इन सभी बातों को एक साथ देखें तो लोगों की मानसिकता में परिवर्तन दिल्ली जैसे शहरों से प्रदूषण दूर करने में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हो सकता है. दिल्ली तो इस मामले में इतनी ज्यादा भाग्यशाली है कि अन्य भारतीय शहरों के मुकाबले उसके पास मेट्रो जैसी विश्व-स्तरीय परिवहन व्यवस्था मौजूद है, जो पूरी तरह सुरक्षित, जाम रहित, प्रदूषण रहित और सर्वसुलभ है. इसका नेटवर्क भी अब काफी व्यापक हो चला है. बावजूद इसके कई लोग आज भी सडकों पर अकेले कार लेकर निकलना अपनी शान समझते हैं तो इससे उनकी बेवकूफी और सामाजिक रूप से गैर जिम्मेदार रवैया ही झलकता है. दिल्ली में कमर्शियल वाहनों पर टैक्स लगाने के साथ व्यक्तिगत वाहनों पर भी भारी टैक्स लगाये जाने का प्रावधान करने की सम्भावना तलाशी जानी चाहिए, क्योंकि ट्रैफिक के रेले में 20 कारों पर एक या दो ट्रक ही आपको देखने को मिलेंगे. जाहिर है, आप सरकार द्वारा दिल्ली को प्रदूषण और जाम मुक्त बनाने के लिए शुरू हुए "अब बस करें" अभियान के तहत शुरू किया गया पहला "कार फ्री डे" मील का पत्थर साबित हो सकता है. अरविन्द केजरीवाल द्वारा अन्य साइकिल प्रेमियों के साथ लाल क़िला से इंडिया गेट तक आयोजित साइकिल रैली इस मामले में सार्थक विकल्प सुझाती है, विशेषकर उनके लिए जो बगल के काम्प्लेक्स में सब्जी लेने भी अपनी 'कार' को निकाल लेते हैं.
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