बहुत दिन नहीं हुए, जब बहुत से लोग हवाई जहाज से जीवन में एक बार जाने की सोचते थे और उसके किस्से दूसरों को सुनाया करते थे. हालाँकि, आकाश में उड़ना अब शौक से अधिक जरूरत का विषय बन गया है. एक तो ज़िन्दगी की रफ़्तार ने समय की किल्लत उत्पन्न कर दी है और दूसरी ओर बढ़ती आबादी ने ज़मीनी यातायात पर अत्यधिक दबाव बना दिया है. वह चाहे रेलयात्रा हो या सड़क का ट्रैफिक हो, बदलते समय के साथ पारम्परिक यातायात में तालमेल बिठाने में मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं. ऐसे में भविष्य की जरूरतों को देखते हुए, हवाई यातायात को सुगम और सस्ता बनाने के अतिरिक्त कोई दूसरी राह दिखती नहीं है. हाल ही में, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की बड़ी ज़ोर शोर से चर्चा हुई और इस सम्बन्ध में शुरूआती स्तर पर जो बातें कही जा रही हैं उसका लब्बोलुआब यही है कि हवाई यातायात से यह प्रोजेक्ट न केवल महंगा पड़ेगा, बल्कि इसका सेटअप तैयार करने में जो खर्च आने वाला है, उसे उँगलियों पर गिनना मुश्किल है! ऐसे में देश में सही समय पर नागर विमानन नीति का नया मसौदा पेश किया गया, जिसमें किफायती लागत पर छोटे शहरों और कस्बों तक उड़ान सेवाएं शुरू करने और विदेश में घरेलू विमानन कंपनियों की सेवाएं शुरू करने के लिए नियमों में ढील बरतने जैसे मुद्दे भी शामिल किये गए हैं. इस नीति का मुख्य उद्देश्य हवाईअड्डा डेवलपर्स और संचालकों दोनों के लिए लाभों के साथ प्रत्येक उड़ान घंटे में प्रति टिकट 2,500 रुपए तक के टिकट मूल्य दर को सुनिश्चित करना है. इसका सीधा मतलब यही है कि टिकट दर 2500 रुपए से अधिक होने की सम्भावना पर फुलस्टॉप नहीं तो 'कॉमा' लग ही गया है.
नागरिक उड्डयन मंत्री गजपति राजू ने नए मसौदे को पेश करते हुए कहा कि इसमें हितधारकों और जनता से सुझाव मांगे गए हैं और 'इस नीति के लागू होने की एक निश्चित अवधि भी है ताकि उद्योग जगत समय पूर्व ही अपनी योजनाएं बना सके.' ज़ाहिर है, सरकार इस मामले में गंभीरता से कार्य करती दिख रही है और अगर निश्चित समय में इस मसौदे को लागू करने की कोशिश परवान चढ़ाई गई तो हवाई यातायात में इसे एक क्रन्तिकारी प्रयास ही माना जायेगा. इस महत्वाकांक्षी मसौदे को परवान चढाने में निश्चित रूप से हवाई अड्डों की अहम भूमिका होने वाली है. नागरिक उड्डयन सचिव ने भी इस सम्बन्ध में कहा है कि राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति का लक्ष्य जन-जन के लिए किफायती उड़ान सेवाएं उपलब्ध कराना है. आंकड़ों पर गौर करें तो, देश में लगभग 430 हवाईपट्टियां और हवाईअड्डे हैं लेकिन इसमें से लगभग 90 ही संचालन में हैं, जबकि 300 के आसपास हवाईअड्डों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. इससे निपटने के लिए हर हवाईअड्डे को 50 करोड़ रुपये की लागत से उन्नत बनाने की बात कही गयी है, जिसमें हवाईअड्डों पर सुरक्षा को विमानों के अनुकूल बनाना है, ताकि उड़ान के एक या दो घंटे पहले से ही हवाईअड्डा तैयार हो जाए. अन्य बिन्दुओं की ओर गौर करें तो, मसौदे में हवाईअड्डों का विकास, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, विदेश के लिए उड़ान नियमों में ढील, कार्गो कारोबार का विकास, हेलीकॉप्टर सेवाएं, रखरखाव क्षेत्र में निवेश बढ़ाना, हवाईअड्डे का प्रबंधन एवं सुरक्षा-तंत्र को तरजीह देने की कोशिश की गई नज़र आती है. इस नीति के अनुसार सरकार का लक्ष्य एक ऐसे तंत्र का विकास करना है जिससे 2022 तक प्रतिवर्ष 30 करोड़ और 2027 तक 50 करोड़ घरेलू टिकटों की बिक्री हो सके, जबकि 2017 तक 20 करोड़ की अंतर्राष्ट्रीय टिकटों की बिक्री का लक्ष्य निर्धारित करने की बात कही जा रही है.
धरातल पर देखें तो, सवाल उठता है कि हवाई यातायात के देसी कारोबार में कुछ ही खिलाड़ी मैदान में क्यों नज़र आते हैं और जिस प्रकार से फाइव स्टार हवाई सेवाएं देने वाली विजय माल्या की किंगफिशर का हश्र हुआ, उससे बड़े निवेशकों में इस क्षेत्र के प्रति जो आशंका उत्पन्न हुई है, उससे निपटने के लिए क्या प्रयास किये जा रहे हैं. टाटा जैसे कुछ नए खिलाडी इस मैदान में उतरे भी हैं तो बेहद फूंक फूंक कर सीमित उड़ानों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. इंडियन एयरलाइन के भी लम्बे समय तक घाटे में होने की बात कही जाती रही है तो इन झंझावातों के तहत हवाई यातायात में यात्रियों की संख्या बढ़ने के बजाय घटने का रूझान होना चिंता प्रकट करता है. इसके लिए कंपनियां कई तरह के ऑफर और लुभावनी स्कीम्स भी लांच करती है, लेकिन इसका कुछ ख़ास असर इसलिए नहीं दिख रहा है क्योंकि बिजनेस क्लास को छोड़ दिया जाय तो मिडिल क्लास हवाई यातायात को लेकर बहुत कम्फर्टेबल नहीं महसूस करता है. इसके छोटे बड़े विभिन्न कारण भी हैं, मसलन बच्चे के लिए पूरी टिकट, सामान और उसके वजन को लेकर चिकचिक, एयरपोर्ट से नजदीकी शहर की कनेक्टिविटी में जबरदस्त दिक्कत और ऑटो-टैक्सी वालों की मनमानी जैसे सामान्य मुद्दे हैं, जो मिडिल क्लास के लिए मायने रखते हैं. अगर इन सब पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो देश का बड़ा वर्ग हवाई यातायात से जुड़ नहीं पायेगा, जिसका असर इसमें निवेश करने वालों पर पड़ना तय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि नए मसौदे से इन दिक्कतों से पार पाने में काफी हद तक आसानी होगी और इससे हवाई यातायात में क्रन्तिकारी परिवर्तन काफी हद तक संभव हो सकेगा. अभी चूंकि बिजनेस का फ्लो कंपनियों का पेट भरने में नाकाफी साबित हो रहा है, इसलिए ग्राहकों से टर्म्स एंड कंडीशन की आड़ में वसूली पर ध्यान ज्यादा रहता है.
मेरे एक मित्र ने बड़ी मुश्किल से किसी स्कीम के तहत 4 हज़ार के आसपास टिकट खरीदी और जब किसी कारणवश उन्हें टिकट कैंसल करना पड़ा तो उन्हें मिले तीन सौ कुछ रूपये... !! यकीन करना मुश्किल है, लेकिन टिकट वापसी का जो विकल्प रेल यातायात में है, उससे हवाई यातायात में दूर-दूर तक साम्य नज़र नहीं आता है. यहाँ सवाल मानसिकता का भी है, क्योंकि रेल यातायात का प्रयोग करने वाली एक बड़ी जनसँख्या ही हवाई यातायात की ओर आकर्षित होगी. ऐसे में दोनों के बीच सुविधाओं, सहूलियतों और खर्चों के बीच थोड़ा ऊपर नीचे, 19 - 20 का ही सही, साम्य तो करना ही होगा. एक और अनुभव आपसे शेयर करूँ तो एक बार मेरे एक रिश्तेदार ने दिल्ली से वाराणसी जाने के लिए एयर टिकट बुक कराई, जिसका समय सुबह के 9 बजे के आस पास था. दिल्ली के टर्मिनल-3 पर हम एक घंटे पहले पहुंचे तो पता चला कि हमें देर हो गयी है और नियमतः और पहले आना चाहिए था. वह तो एक परिचित क्रू-मेंबर मिल गया अन्यथा फ्लाइट छूट ही गयी होती. थोड़ा पढ़े-लिखे होने के बावजूद दिए गए टाइम से पहले का लोचा मुझे समझ नहीं आया. इसमें अगर कोई ब्लैकमार्केटिंग का झोल न भी हो तो यात्रियों को इतना शिक्षित कौन करे? आखिर एक आम आदमी टिकट देखता है और उस पर दर्ज समय देखता है. आसानी से दावा किया जा सकता है कि पहली बार यात्रा करने वाले कइयों की फ्लाइट इस चक्कर में छूट जाती होगी और जो खाली सीट बचती है फ्लाइट में उसके लिए मनमाना किराया भी वसूला ही जाता होगा. खैर, वह बुजुर्ग फ्लाइट में चढ़े और लगभग घंटे भर में वाराणसी पहुँच गए. वहां, बाबतपुर से वाराणसी शहर तक आने में टैक्सी वालों ने उनसे 500 से ज्यादा वसूल लिए, क्योंकि कोई अन्य विकल्प था नहीं. वाराणसी से उन्हें बलिया जाना था और फिर यूपी रोडवेज की वही सर्विस, जिसकी सर्विस के बारे में जितनी तारीफ़ की जाय, कम है. इससे भी बड़ी बात कि चार हजार रूपये लगाकर सुविधा से वह वाराणसी तो पहुँच गए, लेकिन अपने निश्चित गंतव्य तक पहुँचने में उनकी वह सारी सुविधा छूमंतर हो गयी, जब वह हवाईजहाज से उन्होंने अपना कदम नीचे रखा. अब इन सबमें जब तक साम्य नहीं होगा, यातायात की हवाई सुविधा बस प्रतीकात्मक ही रहने वाली है और कंपनियां घाटे में ही रहने वाली हैं. अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को छोड़ दिया जाय तो घरेलु उड़ानों में हमें यथास्थिति में बदलाव लाना ही होगा और नयी नागरिक उड्डयन नीति से इसका सुखद संकेत भी मिल रहा है. इन्तजार है तो बस इसके क्रियान्वयन का, जिसके बाद न केवल देश का आम जनमानस उड़ान भरेगा, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी मजबूत छलांग लगेगी!
Hindi article on new aviation policy, middle class and air traffic,
नागर विमानन नीति, अशोक गजपति राजू, Pusapati Ashok Gajapathi Raju, New Aviation Policy,middle class and aeroplane, air companies and issues, little issues in flying, rail and air traffic, bullet train project
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