किसी शायर ने ठीक ही कहा है:
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती !!
आखिर क्या मजबूरी रही होगी एक प्रधानमंत्री के समक्ष कि विकास की बात करते-करते, उसने अपनी एक रैली में कांग्रेस को 'सिक्ख दंगे' का काला अध्याय याद दिला डाला. आप बेशक, उस पर वोट-बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाएं या साम्प्रदायिक राजनीति करने का बहुचर्चित आरोप चस्पा कर दें... किन्तु, आप थोड़ा निष्पक्ष होकर सोचें तो यह जान जायेंगे कि उस प्रधानमंत्री के सामने कोई और विकल्प बचा था ही नहीं था? जिस प्रकार देश में एक चुनी हुई, पूर्ण बहुमत की सरकार को अस्थिर करने का प्रयत्न किया जा रहा है, ऐसे में वह व्यक्ति जनता के बीच अपनी बात न कहे तो कहाँ जाय? क्या वह चंद छद्म बुद्धिजीवियों के हाथों ब्लैकमेल हो जाए, जिन्हें विश्व के सबसे बड़े संगठन आरएसएस और दुनिया का खूंखार आतंकी संगठन 'इस्लामिक स्टेट' के बीच फर्क भी पता नहीं है! कभी-कभी विचार आता है कि अगर 1984 में सिक्ख-कम्युनिटी के बजाय, मुस्लिम-कम्युनिटी के खिलाफ दंगा हुआ होता तो उस समय ही इस देश को 'असहिष्णु' घोषित करने का प्रयास किया जाता या नहीं? प्रश्न उठता है कि तब देश की एकता और अखंडता पर खतरा मंडराता या नहीं? क्या तब भी कांग्रेस पार्टी की सरकार का रवैया दंगाइयों के प्रति वैसा ही होता, जैसी हीलाहवाली और टालमटोल उसने सिक्ख दंगे के दोषियों के साथ किया, उनको पुरस्कृत तक किया!

अब ज़रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आकर सोचिये कि आज नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाने वाले लोग सिर्फ मुस्लिमों के डर को ही क्यों उठाते हैं? क्या दुसरे किसी समुदाय का दर्द, दर्द नहीं है! उनके ज़ख्मों पर खुर्शीद जैसे नेता नमक छिड़कते हैं और आज असहिष्णुता का रोना रोने वाली कांग्रेस ऐसे ढोंगियों का तुष्टिकरण करती है, सफाई तक नहीं मांगी जाती. चूँकि, गुजरात दंगे का ज़िक्र किये बिना लेख की गरिमा पर सवाल उठाया जा सकता है, इसलिए यहाँ भी पूछा जाना चाहिए कि 'गोधरा' का ज़िक्र करने में इतनी हीलाहवाली क्यों? क्या हिन्दुओं का खून, सिक्खों का खून, उनका दर्द, दर्द नहीं ... !! उनका डर, डर नहीं !! उनके प्रति अन्याय, अन्याय नहीं...!! उनके प्रति अपराध करने वालों को इतनी ढील क्यों दी जाती है, उन पर कानून का शासन क्यों नहीं लगाया जाता है! दिल्ली के सीएम केजरीवाल की डोर पकड़कर ही आगे चलते हैं तो उनके ही शब्दों में, 'मुआवजा तो ठीक है, लेकिन जब हम सिक्ख दंगों के षड्यंत्रकारियों को खुले घूमते देखते हैं तो हमारा खून खौलता है.
हमें न्याय चाहिए!' उन्होंने कहा, 'आज जब कोई ऐसी घटना घटती है, तो सरकार हर (पीड़ित) परिवार के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान कर देती है, लेकिन यहां देखें, 31 सालों की पीड़ा और अब भी कोई इंसाफ नहीं मिला.' ... पहले की बात छोड़ दे कांग्रेस, वह आज इस बात का जवाब दे दे कि उसकी पार्टी का सिक्ख दंगों पर और इस सन्दर्भ में राजीव गांधी के शर्मनाक बयान पर क्या रूख है ? प्रश्न यह भी उठता है कि आज एक अख़लाक़ की हत्या पर जवाब मांगने वाले, कांग्रेस पार्टी से क्यों नहीं जवाब मांगते हैं? वही खानदान है, उन्हीं के वारिश हैं... जिन्होंने सिक्खों के कातिलों को राजनीतिक संरक्षण दिया. खुद सोनिया गांधी के नेतृत्व में जिन्हें लोकसभा का टिकट मिला, कांग्रेस में पद और प्रतिष्ठा मिली (शायद मंत्रिपद भी). .. तब तो कोर्ट का निर्णय कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है और एक अख़लाक़ की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या पर नरेंद्र मोदी को फांसी देने के लिए सब अपना-अपना फंदा फेंक देते हैं! क्या यही न्याय है? क्या यही बुद्धिजीविता है? क्या यही सहिष्णुता है? अगर हाँ! तो जनता इसे नहीं मानती, और इसे उसने 2014 के आम चुनावों में खुलकर साबित भी कर दिया है... उम्मीद की जानी चाहिए कि बिहार चुनाव में वो इसे एक बार फिर साबित करेगी और ढोंगियों के मुंह पर करारा तमाचा मारेगी!
अगर निष्पक्ष रूप से आंकलन किया जाए तो सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारतवर्ष को आज़ादी के बाद 'तुष्टिकरण' के जाल में फंसाकर जनता के बीच वैमनस्य पैदा करने वाली कांग्रेस ही है, इसलिए उसे सहिष्णुता पर कोई प्रश्न पूछने का हक़ ही नहीं बनता है! अगर वह सच में सहिष्णुता पर गंभीर है तो उसे सिक्ख दंगों पर हिसाब देना ही चाहिए!
रही बात सहिष्णुता की मूर्ति तथाकथित 'बुद्धिजीवियों' की तो उन्होंने बेशक '84 के समय अपने पुरस्कारों को नहीं लौटाया हो, किन्तु आज जब उन पर देश के प्रधानमंत्री को जानबूझकर निशाना बनाने का आरोप लग रहा है तो क्यों नहीं वह एक 'स्टेटमेंट' जारी करके कांग्रेस और राजीव गांधी की आलोचना करते हैं? वह अपनी गलती सुधार सकते हैं और तब उन्हें यह नैतिक हक होगा कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बुलावे पर वह जाएँ और सहिष्णुता के विभिन्न पक्षों को संवाद के रास्ते पर ले आएं! सरकार ने खुले रूप में अगर इन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया है तो वह भी माहौल को भांप रही है.

New hindi article on sikh riots in 1984, prime minister modi on target, writer's oppose is hypocrisy,
सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कांग्रेस, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Congress, Pranab Mukherjee, नरेंद्र मोदी, सांप्रदायिकता, मुफ्ती मोहम्मद सईद, जम्मू-कश्मीर, Narendra Modi, Mufti Mohammad Sayeed, Jammu-Kashmir,शाहरुख खान, असहिष्णुता, दादरी कांड, अवार्ड वापसी, Shahrukh Khan, intolerance, Dadri Incident, awardwapsi,दिल्ली, अरविंद केजरीवाल, 1984 दंगा, सिख विरोधी दंगा, Arvind Kejriwal, 1984 Riot, Compensation, Anti Sikh riots, विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, जामा मस्जिद के इमाम बुखारी, लोकसभा चुनाव 2014, Salman Khurshid says, Sonia Gandhi, Imam Bukhari, best analytical article,
0 टिप्पणियाँ