आम चुनाव में नीतीश का भाजपा विरोध स्टैंड लेना और उसके बाद नरेंद्र मोदी के भारी बहुमत से सत्ता में आ जाने के बाद ऐसा लगा था कि नीतीश कुमार की राजनीति चूक गयी है. लेकिन, नीतीश कुमार ने चुनाव जीतकर और जीतने के बाद अपनी सधी हुई नीतियों से बार-बार फिर साबित किया है कि उन्हें बिहार की राजनीति का चाणक्य यूँही नहीं कहा जाता है. जिस तरह से राज्य में शराब पर पूरी तरह पाबंदी लगाने का ऐलान किया गया है, उसने एक तीर से कई शिकार किये हैं! बिहार में शराब की खपत दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी और इस पिछड़े राज्य में सामाजिक ताने-बाने के लिए यह एक गंभीर चुनौती सी बन गयी थी. एक आंकड़े के अनुसार पिछले दस साल में शराब की खपत लगभग दस गुनी हो गयी थी. अब बिहार में एक अप्रैल 2016 से पूर्ण शराब बन्दी का कानून लागू हो जाए तो वहां के युवाओं के भविष्य पर इसका सकारात्मक असर पड़ना भी तय है. हालाँकि, अब तक राजस्व का बहाना बनाकर इसको जायज़ ठहराया जा रहा था, किन्तु सीएम नीतीश कुमार ने साफ़ कहा कि सरकार एजेंडा तैयार कर रही है, जिस पर अमल करते हुए राज्य को शराब से मुक्त किया जाएगा. सीएम ने ज़ोर देकर कहा कि ‘राजस्व प्राप्ति के बहाने नई पीढ़ी को बर्बाद होने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता. जाहिर है, इस फैसले को नीतीश कुमार के बढ़ते हुए आत्मविश्वास से जोड़कर देखा जायेगा.
इस साहसिक फैसले के तमाम पहलु एक-एक करके सामने आएंगे, किन्तु यह बात साफ़ है कि राज्य की जनता में नीतीश ने अपनी छवि और मजबूत कर ली है. इससे यह भी जाहिर होता है कि बिहार चुनाव में लालू प्रसाद यादव से गठबंधन के कारण नीतीश कुमार की जितनी भी आलोचना की गयी, उससे पार पाने की कोशिश में सुशासन बाबू सधी हुई कोशिश कर रहे हैं. अपने शराबबंदी के फैसले सी पहले और शपथ लेने के तुरंत बाद नीतीश कुमार ने उच्च अधिकारियों की बैठक में कानून का राज स्थापित करने को लेकर सख्त निर्देश जारी किये थे, जिसकी तारीफ़ कई हलकों में की गयी. उन्होंने वरिष्ठ प्रशासनिक तथा पुलिस अधिकारियों से स्पष्ट कहा कि 'कानून के शासन के संबंध में कोई समझौता नहीं किया जाएगा.' कुछ ही दिन पहले, नीतीश कुमार ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पुलिस महानिरीक्षकों, उपमहानिरीक्षकों, पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों से बात की और उन्हें कानून का शासन कायम रखने का निर्देश दिया. मुख्यमंत्री की इस बैठक का मुख्य मकसद यही था कि 'हर हाल में अपराध पर काबू पाना है.' कुमार ने कहा, 'जो कोई कानून तोड़ता है, वह अपराधी है और उसके साथ कानून के अनुसार बर्ताव करना चाहिए, भले ही उसका कद कुछ भी हो.' इस बैठक में जो और बातें सामने निकल कर आईं, वह सांप्रदायिक हिंसा पर डीएम और एसपी की जवाबदेही से सम्बंधित थी. बिहार के पांचवी बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने आगाह किया कि सांप्रदायिक तनाव को शांत करने के लिए प्रतिक्रिया त्वरित होनी चाहिए तो दोषसिद्धि पर भी जोर होना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने अपराध के मामलों की त्वरित जांच के लिए वैज्ञानिक रुख की जरूरत पर भी जोर दिया तो उन्होंने हर हफ्ते सर्किल अधिकारियों और थाना प्रभारियों द्वारा कैंप लगाने के चलन को जारी रखने पर भी जोर दिया, ताकि भूमि विवाद से जुड़े मामलों का हल किया जा सके. उनकी इस समस्त कवायद को देखते हुए इस बात को बल मिलता है कि आने वाले समय में कानून का राज स्थापित करने के लिए नीतीश कुमार अपना सब कुछ झोंक देंगे. हालाँकि, कुछेक घटनाएं बिहार से ऐसी आयी हैं, जो चिंता करने को मजबूर करती हैं. इस सिलसिले में ऐसी बात निकलकर आयी है कि पचरुखी रेलवे स्टेशन पर टहलने के समय अपहृत हरिशंकर सिहं उर्फ बड़े सिंह के निराश परिजन शीघ्र ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे. यह बेशक एक घटना हो, लेकिन बिहार के बड़े अपहरण उद्योग की ओर इशारा करती है, जिससे सावधान रहने की जरूरत है. इसके अलावा, गोपालपुर से जदयू विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल के समर्थकों ने जिला मुख्यालय में तैनात डीएसपी रामकृष्ण गुप्ता को विक्रमशिला सेतु से गंगा नदी में फेंकने की कोशिश की है, जो सत्तापक्ष के समर्थकों की मानसिकता प्रदर्शित करता है. हालाँकि, पुलिस ने दो हमलावरों को मौके से दबोच लिया है, और डीएसपी के अंगरक्षक मृत्युंजय कुमार के बयान पर दो नामजद सहित पांच लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया है, लेकिन यह समझना कठिन नहीं है कि 'जंगलराज' का आरोप बिहार से क्यों जोड़ा जाता है.
इस सिलसिले में, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आरोपों से बिहार प्रशासन को चौकन्ना होने की जरूरत है कि एक ओर तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बैठक में प्रशासनिक अधिकारियों को निर्भीक होकर बिना किसी हस्तक्षेप के काम करने की नसीहत देते हैं, दूसरी ओर सत्ताधारी विधायकों और उनके समर्थकों द्वारा कानून की धज्जियां उड़ाते हुए थानेदार को जान से मारने की धमकी दी जा रही है. इसके अलावा भी कुछ छिटपुट घटनाएं हुई हैं, लेकिन नीतीश कुमार की सजगता और खुद राजद प्रमुख लालू यादव की सक्रियता से उम्मीद की एक किरण जरूर दिखती है. लालू प्रसाद अपने विधायकों को लगातार सचेत कर रहे हैं तो उप मुख्यमंत्री तेजस्वी ने पत्रकारों से कहा कि महागठबंधन की सरकार काम करने के लिए बनी है, भोग लगाने के लिए नहीं और जनता ने इतना बड़ा समर्थन दिया है, तो हम उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे. तेजस्वी यह कहना नहीं भूले कि उनके कार्यों पर नीतीश कुमार को गौरव होगा और आम लोगों का भरोसा किसी हाल में नहीं टूटेगा! देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में बिहार के गौरव को दो ज़मीनी नेता किस प्रकार से अंजाम तक पहुंचाते हैं. अब तक जो संकेत मिले हैं, उससे राजद और जदयू के बीच न केवल बेहतर तालमेल दिख रहा है, बल्कि कई मुद्दों पर आपसी समझ भी बेहतर नज़र आ रही है. बिहार की जनता को स्थायी सरकार और सुशासन मिले तो उसका साहसिक फैसला पूरे देश को राह दिखा सकता है, इस बात में कोई दो राय नहीं है. लालू प्रसाद की पार्टी भी इस बात को बखूबी समझ रही है कि अगर नीतीश को उनके छवि जरा भी धुँधली होती दिखी तो आने वाले समय में भाजपा के साथ उनका पुनः तालमेल हो सकता है, इसलिए वह इन बातों का रिस्क नहीं लेना चाहेंगे! खैर, यह आगे की राजनीति है और अभी तक के कदमों के लिए सुशासन बाबू की तारीफ़ करनी ही होगी, शराबबंदी के फैसले के लिए और कानून व्यवस्था पर सजग दृष्टि रखने के लिए भी.
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