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विपक्ष का प्रतीकात्मक जमावड़ा - Nitish kumar oath ceremony in Bihar Gandhi Maidan

Bihar election analysis in hindi by Mithilesh, opinion polls and the truthआखिर अट्ठारह महीने के लम्बे इन्तेजार के बाद वह दिन आ ही गया, जिसका इन्तेजार विपक्ष को सबसे ज्यादा रहा होगा. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बिहार में नीतीश कुमार की जीत ने विपक्ष को सांस लेने की मोहलत दी है. लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह एक के बाद दुसरे प्रदेश में भाजपा अपना वर्चस्व साबित करती जा रही थी, उसने विपक्ष के आत्मविश्वास को रसातल में धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालाँकि, दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की जीत जरूर आयी, लेकिन उसे अपवाद का झोंका ही माना गया जो तत्काल गुजर गया. दिल्ली चुनाव के कई महीने बाद, जिस दिन बिहार का चुनाव परिणाम घोषित हुआ, उस दिन कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी की ख़ुशी देखने लायक थी. कांग्रेस को इस राज्य की विधानसभा में 26 सीटें जरूर मिलीं, किन्तु यह पार्टी बखूबी जानती है कि बनने वाली सरकार में उसकी कोई खास भूमिका नहीं होने जा रही है और न ही यह सीटें उसके जनाधार को दिखाती हैं, बल्कि राजद और नीतीश के वोट ही उसे जीत की दहलीज तक लेकर गए हैं! बावजूद इसके अगर राहुल गांधी समेत दुसरे कांग्रेसी नेता खुश हैं तो इसे विपक्ष के पुनर्जीवन से जुड़ा हुआ देखना ही चाहिए. यह बात भी जगजाहिर है कि बिहार में नीतीश-लालू, यूपी में मुलायम-माया, दिल्ली में केजरीवाल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु से करूणानिधि और अन्य जगहों पर भी दुसरे क्षेत्रीय नेताओं की मजबूत उपस्थिति के बावजूद अगर केंद्रीय स्तर पर इनके जुड़ने में कोई कॉमन प्लेटफॉर्म है तो वह निश्चित रूप से कांग्रेस ही है. यह बात कई बार सिद्ध भी हो चुकी है. कांग्रेस को हटाकर बना कोई दूसरा मोर्चा रेत के महल की तरह भरभरा कर गिर पड़ता है.
Heritage war in India and Congres, BJP Ideology fight, hindi article, Rahul Soniaअपने शपथ ग्रहण में भाजपा से दूरी रखने वाले लगभग सभी धड़ों को बुलाने और उसमें भी कांग्रेसी नेताओं की भरमार के पीछे नीतीश कुमार का मंतव्य बहुत साफ़ दिखता है कि इस बार वह कोई भी गलती करने के मूड में नहीं हैं और न ही वह लोकसभा चुनाव जैसी जल्दबाजी दिखाना चाहते हैं. विशेषकर केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस की अहमियत को वह नकारने का ज़रा भी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय ने मेहमानों की जो सूची जारी की है उस में राहुल गांधी का नाम सबसे पहला है जो काफी कुछ संकेत देता है. कांग्रेस उपाध्यक्ष के बाद पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, राकांपा प्रमुख शरद पवार, नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे नाम भी शामिल हैं.  हालाँकि, खबर तो यह भी आ रही है कि बिहार चुनाव में विपरीत रूख अपनाने के बावजूद मुलायम सिंह यादव को भी इस शपथ-ग्रहण के लिए मना लिया गया है और वह भी नीतीश की ताजपोशी में शामिल हो सकते हैं. आखिर, भाजपा विरोधी मोर्चे में आगे खड़े रहने का लम्बा इतिहास है मुलायम सिंह यादव का तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में उनकी पकड़ भी और इसलिए कई आक्षेपों के बावजूद नीतीश अपनी इस जीत में 'अहम' को दूर रखने का भरसक प्रयत्न करेंगे, क्योंकि 'अहम' से पहले से कमजोर विपक्ष में और बिखराव ही होगा और बिखराव से 2019 में केंद्रीय स्वप्न, दुःस्वप्न में तब्दील हो सकता है! गौर करने वाली बात यह भी है कि इस शपथ-ग्रहण समारोह में कांग्रेस शासित छह राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे जिनमें हिमाचल प्रदेश के वीरभद्र सिंह, कर्नाटक के सिद्धरमैया, असम के तरूण गोगोई, सिक्किम के पीके चामलिंग, मणिपुर के ओ इबोबी सिंह और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी हैं.
New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - Shivsenaइस कांग्रेसी सीरीज में शीला दीक्षित, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, अजित जोगी जैसे कांग्रेसी दिग्गजों और सोनिया गांधी के करीबी नेताओं का शामिल होना महज शिष्टाचार से आगे का संकेत देता है. हालाँकि, इसमें प्रधानमंत्री के साथ केंद्र के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को भी न्यौता दिया गया है, किन्तु यह महज औपचारिकता ही है. नीतीश कुमार को राजनीति का चाणक्य क्यों कहा जाता है, यह बात तब जाहिर हो जाती है, जब भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना को भेजा गया निमंत्रण स्वीकार लिया जाता है. हालाँकि, उद्धव ठाकरे खुद न शामिल होकर अपना प्रतिनिधि ही भेजेंगे, किन्तु महाराष्ट्र में भाजपा द्वारा की जा रही अनदेखी से परेशान होकर 2019 में यह हिंदूवादी पार्टी अलग रूख भी अख्तियार कर ले तो इसे आश्चर्य नहीं कहा जायेगा. नीतीश कुमार, शिवसेना की इस दुखती रग को सहलाना जारी रखना चाहेंगे! लोकसभा में एक भी सीट न रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह को न्यौता दिया जाना आने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की रूपरेखा तय करने में निश्चित रूप से कील-कांटे दुरुस्त करने की ही प्रक्रिया है. हालाँकि, नरेंद्र विरोधी मोर्चा बनने की प्रक्रिया का यह शुरूआती हिस्सा ही है और आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा कि बिहार से मिली जीत को विपक्षी नेता कितना सकारात्मक बनाये रख पाते हैं. नीतीश ने इस नीतिगत जीत के बात कहा था कि 'जीत के बाद बौरा जाना उनका स्वभाव नहीं'! उम्मीद की जानी चाहिए कि वह खुद इस बात को तो याद रखेंगे ही, और बाकी विपक्षी नेताओं को भी जनता से जुड़ने का सन्देश ठीक ढंग से समझा पाएंगे.
Price of onion, pyaj, hindi article, kejriwal, sisodia, Mahangaiवगैर जनता से जुड़े, बिहार की जीत की ख़ुशी ज्यादा देर तक टिक न सकेगी, यही इस शपथ-ग्रहण का मूल सन्देश नीतीश अपने समकक्षों को देना चाहेंगे! हालाँकि, राजनीति के विश्लेषक नीतीश कुमार की कांग्रेस को केंद्र में रखने की राजनीति से बहुत इत्तेफाक नहीं रख रहे हैं. इसका सीधा कारण यही है कि जनता के मन में यूपीए काल में हुए घोटाले और मनोहन सिंह की रिमोट छवि को अभी याद रखे हुए है. इसके अतिरिक्त, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा ने वंशवाद को मुद्दा बनाने में जो सफलता हासिल की है, उसे राहुल गांधी के अक्षम नेतृत्व ने और भी पुख्ता ही किया है. वैसे, यह आज की स्थिति है और आने वाले समय में इसमें अगर परिवर्तन दिखे तो कांग्रेस को पुनर्जीवन भी मिल सकता है. नीतीश समेत, भाजपा-विरोधी खेमा प्रार्थना भी यही करेगा कि कांग्रेस  कोमा से बाहर आये, ताकि आने वाले समय में नरेंद्र मोदी के वर्चस्व को सक्षम रूप से चुनौती दिया जा सके.
 
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