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'जीएसटी' की पिक्चर अभी बाकी है... मेरे दोस्त! GST Bill passed in Rajya Sabha, Hindi Article, New, Indian Tax Systems, Politics Behind Economy, Business



पिछली यूपीए सरकार के समय से ही चल रहा 'जीएसटी' का मुद्दा आख़िरकार अपनी तार्किक परिणति को प्राप्त हो गया. मोदी सरकार बनने के बाद से ही इस बिल को पास कराने के गंभीर प्रयास हो रहे थे, किन्तु कांग्रेस ने भाजपा को उसके विरोध की याद दिला दिलाकर इस बिल को सत्र दर सत्र लटकाया. हालाँकि, नरेंद्र मोदी की कुशल रणनीति ने कांग्रेस को इस बिल का समर्थन करने के लिए दो तरह से मजबूर किया. पहला 'जीएसटी बिल' के मुद्दे पर कांग्रेस को छोड़कर बाकी छोटे-बड़े दलों के नेताओं को इसके पक्ष में किया तो जनता में कांग्रेस के खिलाफ मजबूती से यह मेसेज फैलाया (GST Bill passed in Rajya Sabha, Hindi Article) कि कांग्रेस संसद में न तो कामकाज होने दे रही है और जीएसटी बिल पास कराने में लगातार बढ़ा डाल रही है. कांग्रेस की संसद कार्यवाही के पिछले कई सत्रों में बाधा उत्पन्न करने को लेकर खासी आलोचना भी हुई और इस वजह से इस बार कांग्रेसी विरोध मंद पड़ गया था. खैर, यह बिल एक बड़ी बाधा पार कर गया है और इसके लिए पीएम ने कांग्रेस समेत अन्य दलों का धन्यवाद भी किया है. भाजपा के रणनीतिकार इस बिल के पास होने के बाद खासे खुश नज़र आये और आखिर खुश हों भी क्यों नहीं, आखिर आज़ादी के बाद के सबसे बड़े टैक्स-सुधार का श्रेय जो उन्हें मिल रहा है. 


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राजनीति में श्रेय का लेन-देन भी अजीब कशमकश से भरा अहसास है और इसी के चक्कर में शायद इतना लंबा यह बिल खिंच भी गया. अब जबकि यह बिल लागू होने जा रहा है तो इसकी अलग-अलग परतों पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है. एक तरफ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह अर्थव्यवस्था में एक नई जान फूंकेगा, तो कुछ पार्टियों और राज्य इसे लागू करने के ख़िलाफ़ भी हैं. कुछ उलझनों के बावजूद सरकार और अधिकांश आर्थशास्त्री इसे आज़ादी के बाद भारत का सबसे बड़ा कर सुधार मान रहे हैं और इसके पीछे उनका तर्क है कि जीएसटी देश की टेढ़ी कर व्यवस्था को पटरी पर लाएगा और लाल फीताशाही को कम करेगा. गौरतलब है कि ये अकेला टेक्स, सामान के शहर में प्रवेश पर लगने वाले कर, एक्साइज़ ड्यूटी, सर्विस टैक्स और अन्य राज्य स्तरीय करों की जगह ले लेगा. जानकारों के अनुसार, इससे मेक इन इंडिया प्रोग्राम (GST Bill passed in Rajya Sabha, Hindi Article, Make in India Program) को प्रोत्साहन मिलेगा ही मिलेगा, क्योंकि व्यापार क्षेत्र में उच्च कर दरों और लाल फीताशाही के कारण वर्तमान में बिज़नेस को 5-10 प्रतिशत का नुकसान होता है. जाहिर है, यह एक बड़ा आंकड़ा है और अगर गुड्स एन्ड सर्विसेज टैक्स (GST) इस गैप को भरने में कामयाब रहता है तो एक बड़ी उपलब्धि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी एक निश्चित उछाल आ सकता है. जीएसटी की महत्ता को हम कुछ यूं भी समझ सकते हैं कि भारत के एक राज्य में बनने वाला सामान जब देश के किसी दूसरे हिस्से में पहुंचता है तो उस पर कई बार टैक्स लग जाता है. 



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इस स्थिति से जीएसटी छुटकारा दिला सकता है. हालाँकि, इतनी जल्दी भारतीय टैक्स सिस्टम की उलझनें सुलझने की उम्मीद पालना बचकाना ही होगा, मगर इतना जरूर है कि टैक्स-समस्याएं सुलझाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है. एकाध जो इस कानून से सम्बंधित और बारीकियां हैं उसके अनुसार शराब, क्रूड ऑयल, हाई स्पीड डीज़ल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और विमान ईंधन को जीएसटी से बाहर रखा गया है और इस पर फ़ैसला जीएसटी काउंसिल करेगा, तो तंबाकू को जीएसटी के दायरे में जरूर लाया गया है, पर केंद्र सरकार इस पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है. जाहिर है, जीएसटी से समान कर-प्रणाली को बढ़ावा  तो जरूर मिल सकता है, पर विभिन्न वस्तुओं की प्रकृति और उसके उपभोक्ता अलग-अलग (GST Bill passed in Rajya Sabha, Hindi Article, New, Indian Tax Systems) वर्ग से हैं. साफ़ है कि अभी काफी कुछ किया जायेगा. जीएसटी का जो सबसे बड़ा फायदा बताया जा रहा है, उसके अनुसार टैक्स वो राज्य सरकारें वसूलेंगी जहां उत्पाद की खपत होती है. ज्ञातव्य हो कि इससे पहले टैक्स वसूली वहां होती थी, जहाँ सामान बनता था और खपत वाले राज्यों में भी वैट इत्यादि से सरकारें अपनी आमदनी बढ़ाने का जरिया खोजती थीं. ऐसे में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कम विकसित राज्यों को अधिक संसाधन मिलेंगे क्योंकि वहां उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है. समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों बिहार के सीएम नीतीश कुमार एवं यूपी के सीएम अखिलेश यादव जीएसटी पर मोदी सरकार के सुर में सुर मिलाते नज़र आये थे. साफ़ है कि यह व्यवस्था भारत के विभिन्न राज्यों के बीच राजस्व के बराबरी वाली वितरण व्यवस्था के रूप को प्रोत्साहन देती है. इस कानून का एक बड़ा फायदा यह भी बताया जा रहा है कि यह टैक्स वसूली में मदद करेगा और देश में कर चोरी को कम करेगा. जानकारी के अनुसार, यह पूरा तंत्र इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा है इसलिए हर भुगतान का एक डिज़िटल मार्क होगा, जिसे तलाशना आसान होगा.



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साफ़ तौर पर ये बड़ा प्रयास है जिसके तहत टैक्स संबंधित 75 लाख मामलों को ऑनलाइन लाया जा सकेगा. ऑनलाइन आने से ट्रांसपेरेंसी बढ़ेगी ही और अंततः लोगों की उलझनें दूर होने के साथ-साथ सरकार की आमदनी भी बढ़ेगी. हालाँकि, संसद से पास होने के बाद भी इस बिल के सामने कुछ चुनौतियां हैं. इसमें आधे से ज्यादा राज्यों (15) से भी इसे पास कराना जरूरी है. हालाँकि, यह कार्य हो आसानी से हो जाना चाहिए, किन्तु फिर भी औपचारिकता तो औपचारिकता ही है और राजनीति कब किस करवट बैठे, इसकी गारंटी भला कौन ले सकता है. इसी कड़ी में जीएसटी अमेंडमेंट के मुताबिक नया टैक्स लागू करने के लिए जीएसटी काउंसिल के पास भेजा जाना जरूरी है और ऐसे में माना जा रहा है कि प्रक्रिया नवंबर तक पूरी होगी और दोबारा विचार के लिए जीएसटी बिल विंटर सेशन में लाया जा सकता है. खैर, इस मामले में अब तक के रूख से यही प्रतीत होता है कि सरकार जीएसटी को अगले फाइनेंशियल इयर (1 अप्रैल) से लागू करना चाहती है और इसके लिए वह जी जान लगा देगी. सरकार किसी कीमत पर इसे जल्द से जल्द लागू करना चाहेगी, क्योंकि अब तक जीएसटी जिन भी देशों में लागू हुआ है, वहां महंगाई बढ़ी है और तत्कालीन सरकारों को अलोकप्रियता का सामना भी करना पड़ा है. केंद्र की भाजपा सरकार यह कभी नहीं चाहेगी कि 2019 के आम चुनावों में महंगाई कोई मुद्दा बने, इसलिए जीएसटी को जो कुछ थोड़े-बहुत साइड इफ़ेक्ट होंगे, उससे जितनी जल्दी हो सके, सरकार निपटना चाहेगी. देखना दिलचस्प होगा कि जीएसटी, जिसे एक बड़ा आर्थिक सुधार बताया जा रहा है वह भारतीय अर्थव्यवस्था और आम जनजीवन पर किस प्रकार से अपना प्रभाव छोड़ता है. ऐसे तमाम मामलों पर 'पिक्चर अभी बाकी है' वाला फ़िल्मी डायलॉग बेहतर सूट करता है. जनता और अर्थशास्त्री दोनों इसके प्रभावों का अध्ययन करना चाहेंगे, मगर दोनों की प्रतिक्रिया देने का ढंग थोड़ा अलग होगा. एक लेख लिखकर, कालम लिखकर अपनी प्रतिक्रिया देगा तो दूसरा वोटिंग मशीन का 'बटन' दबाकर!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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