पीछे की गली में मुशायरा चल रहा था, लेकिन उसका मन आज टीवी पर ख़बर देखकर विक्षिप्त सा हो गया था!
यूं तो आये दिन वह रेप, बलात्कार की खबरें (Short story on rape) सुनता रहता था, किन्तु जैसे-जैसे उसकी बेटी बड़ी हो रही थी, ऐसी हर ख़बर उसे अपने ऊपर लगने लगती थी.
आज किसी हाईवे पर हुई दरिंदगी की ख़बर सुनकर वह कांपने लगा था.
डर की हालत में कई बार दिमाग तेज कार्य करने लगता है और इसी अवस्था में उसका दिमाग भी सोचने लगा कि अगर कुछ ऐसा-वैसा उसके साथ हो जाए तो...
नहीं, नहीं उसके साथ क्यों होगा... उसने विचार को झटकने की नाकाम कोशिश की!
पर हो जाए तो...
तो वह अपनी जान दे ... नहीं, नहीं ले लेगा ...
पर अगर नहीं ले पाया तो ...
धरना देगा, ऊपर तक अपनी बात पहुंचाएगा...
आंदोलन करेगा...
तूफ़ान मचा देगा !!
लेकिन, आंदोलन में आएगा कौन? उसके दिमाग ने फिर प्रश्न पूछा तो उसका चेहरा और पीला पड़ गया..
वह भी तो ऐसी वारदातों पर चुप्पी साध लेता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो!
फिर दूसरों से उम्मीद...
रात गहराती जा रही थी, मुशायरे की आवाज़ और साफ़ होती जा रही थी.
शायर किसी नवाज़ 'देवबंदी' का शेर पढ़ रहा था...
जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है, आगे मुकद्दर आपका है !
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है, अगला नम्बर 'आपका' है !!
अगला नंबर आपका है, बुदबुदाने लगा वह भी...
अगला नम्बर...
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
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