आपने नाम तो सुना ही होगा 'एड ब्लॉकर्स' का! वैसे भी आजकल न्यूज में यह शब्द काफी प्रचलन में है, क्योंकि इस दो शब्द के 'प्रोग्राम' ने टॉप इन्टरनेट विज्ञापन कंपनियों की नींद उड़ा दी है. इस पूरे मामले को कुछ यूं समझना पड़ेगा कि इन्टरनेट पर अधिकांश कंटेंट मुफ्त में उपलब्ध है. वह चाहे समाचार की वेबसाइट हो, विज्ञान पर कोई सूचना हो, लेख हो, ब्लॉग हो या फिर सोशल नेटवर्किंग साइट ही क्यों न हो, हम हर वह चीज जो इन्टरनेट पर ब्राउज करते हैं और 99.99 फीसदी मामलों में बिना कोई पेमेंट दिए उस पर दी गयी सुविधाओं का, कंटेंट का उपभोग भी करते हैं. पर क्या हममें से किसी ने विचार किया है कि जो कंपनियां, ब्लॉगर, वेबसाइटें (Ad block filter, Internet Advertising Companies, Facebook Ads, Google Adwords, Hindi Article, Bloggers, Website Companies) हमें इतनी फैसिलिटी / सूचनाएं मुफ्त देती हैं, उनका खर्च किस प्रकार चलता है? सर्वर की कॉस्टिंग से लेकर, कंटेंट, टेक्नोलॉजी, साइबर सिक्योरिटी और सम्बंधित स्टाफ इत्यादि पर आने वाला खर्च तो आखिर लगता ही है. चूंकि, इन्टरनेट का प्रसार बेहद व्यापक है और यदि किसी वेबसाइट, ब्लॉगर या कंपनी के कांसेप्ट / कंटेंट में दम है तो सर्च-इंजिन के माध्यम से जल्द ही उससे हज़ारों, लाखों और करोड़ों लोग तक जुड़ जाते हैं. अपने इसी यूजर बेस को विज्ञापन दिखलाकर ही इन्टरनेट व्यवसाय तेजी से फला फुला है. आप गूगल, फेसबुक या दूसरी किसी भी बड़ी इन्टरनेट कंपनी को उठा लें, उनमें से अधिकांश इसी विज्ञापन से आगे बढ़ी हैं. ऐसे में, अगर आप क्रोम, फ़ायरफ़ॉक्स, मैक्सथॉन या दूसरे ब्राउज़र इस्तेमाल करते हैं तो एड ब्लॉक फ़िल्टर इस्तेमाल करके ऑनलाइन विज्ञापनों को ब्लॉक करने का ऑप्शन आपके पास होता है.
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चूंकि फ़ेसबुक जैसी कई कंपनियों की मोटी कमाई ऑनलाइन विज्ञापनों से ही होती है और इसीलिए उसने एड ब्लॉकर्स को सबक सिखाने का बीड़ा उठाया है. गूगल की भी कमाई ऐसे ही होती है, लेकिन उसके ईमेल, यूट्यूब, सर्च, मैप जैसे कई और सर्विस से तरह-तरह के ग्राहकों के बारे में जानकारी मिल जाती है, इसलिए फेसबुक इस मामले में ज्यादा अग्रेसिव नज़र आ रहा है. जाहिर है कि ऑनलाइन विज्ञापन ही तमाम इन्टरनेट कंपनियों की जान है. हालाँकि, कई कंपनियां सर्विस या प्रोडक्ट सेल भी करती हैं, किन्तु वह सर्विस या प्रोडक्ट सेल करने के लिए भी 'इन्टरनेट विज्ञापन' ही बड़ा माध्यम होता है. इन्टरनेट विज्ञापनों के मामले में कुछ समय पहले तक तो सब ठीक था, किन्तु असल समस्या तब सामने आयी जब इन्टरनेट माध्यमों पर विज्ञापन से बिना मेहनत कमाई करने वाले 'स्पैमर्स' बड़ी संख्या में घुस गए. ऐसे स्पैमर्स (Facebook Ads, Google Adwords, Hindi Article, New, Anti Ad block Script, Spammers are dangerous) ने इन्टरनेट की दुनिया का कबाड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और लोगों को खूब दुःखी भी किया. आपने गौर किया होगा कि आप कोई वेबसाइट या ब्लॉग ब्राउज करना चाहते हैं, किन्तु उसके साथ कई सारे विज्ञापन, पॉप-अप विंडोज खुल जाती हैं. कई बार तो यह अनुभव इस कदर इरिटेटिंग हो जाता है कि आप क्या ढूंढ रहे हैं और क्या देखना चाहते हैं, वह कहीं दूर छूट जाता है और अनचाहे और मिसगाइड करने वाले विज्ञापनों से न केवल आपका समय खराब होता है, बल्कि कई बार इनके माध्यम से आप का कंप्यूटर भी वायरस से ग्रसित कर दिया जाता है, तो कई एड-ऑन्स, प्रोग्राम जबरदस्ती आपके कंप्यूटर में घुसेड़ दिया जाता है. मेरे कई जानने वालों का इस तरह के जबरदस्ती वाले विज्ञापनों के माध्यम से बड़ा नुकसान हुआ है, कइयों के पास कंप्यूटर फॉर्मेट करने का विकल्प ही बचता है तो कई अपने करप्टेड डेटा को लेकर रोना रोते हैं. कई कंपनियां, जिनमें एंटी-वायरस कंपनियां भी शामिल रही हैं, ऐसे स्पैमर्स को रोकने के लिए, उनके प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए खूब ज़ोर लगाती रही हैं, किन्तु अब तक इन पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा और तब दुःखी होकर जन्म हुआ 'एड ब्लॉकर्स' का!
स्पैमर्स से इन्टरनेट यूजर्स किस कदर परेशान थे, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक अपुष्ट आंकड़े के अनुसार जनवरी 2015 में 'एड ब्लॉक फ़िल्टर' का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 181 मिलियन तक पहुँच गयी थी. 2016 के एक अन्य आंकड़े के अनुसार स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों में से लगभग 22 फीसदी यूजर्स (लगभग 419 मिलियन) एड ब्लॉकर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में 'ऑनलाइन एड एक्सपीरियंस' को लेकर एक बड़ी बहस सी छिड़ गयी है, जो दिन ब दिन टकराहट की ओर ही बढ़ रही है. जाहिर है, इसने फेसबुक के विज्ञापनों समेत, गूगल एडवर्ड्स जैसे स्थाई खिलाड़ियों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. मार्क ज़ुकरबर्ग तो इसके खिलाफ मोर्चा ही खोल चुके हैं, तो कई प्रोग्रामर्स ने इस तरह की स्क्रिप्ट तैयार की है, जिन्हें अपनी वेबसाइट पर इंस्टाल करने के बाद अगर आपने अपने ब्राउज़र में एड ब्लॉकर इनेबल किया है तो फिर आप उस वेबसाइट का कंटेंट ही नहीं देख पाएंगे. खासकर तमाम न्यूज, व्यूज पोर्टल्स ने भी (Ad block filter, Internet Advertising Companies, Facebook Ads, Google Adwords, Hindi Article, News, Views Portals) खुलकर एड ब्लॉकर्स के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है. साफ है कि स्पैमर्स की वजह से कंटेंट प्रोवाइडर्स और कंटेंट रीडर्स / व्यूअर्स के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है. इस बात में दो राय नहीं है कि कोई भी वेब बिजनेस ऑनलाइन ऐड से हासिल होने वाले रेवेन्यू पर ही टिका होता है, पर मौजूदा समय में वेब ब्राऊज़र्स में पहले से ही इंस्टाल होकर आने वाले एड ब्लॉकर ने विज्ञापनदाताओं की खाट खड़ी कर रखी है. इन्टरनेट विज्ञापन कंपनियों के विज्ञापन दिखलाये जाने के बावजूद वह विज्ञापन यूजर को दिखता नहीं है, बल्कि बीच में ही 'एड ब्लॉक फ़िल्टर' द्वारा ब्लॉक हो जाता है. चूंकि वेबसाइट, ब्लॉग पर लगने वाले एड की गिनती उस परिस्थिति में होती है कि ये ऐड कितने लोगों तक पहुंचा, जबकि 'एड ब्लॉकर' की वजह से वो पहुंचता चंद लोगों तक ही है. वो भी उनके पास ही पहुंचता है, जो टेकसैवी नहीं होते या फिर लगातार ऑनलाइन व्यवहार नहीं करते.
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ऐसे में ऐड देने के बावजूद कंपनियों का फायदा कम होता जा रहा है. दुनिया में 1.9 बिलियन लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें बहुतायत में लोग ऐड ब्लॉक करने वाले ब्रॉउजर या सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल करते हैं. जाहिर तौर पर ये ऑनलाइन बिजनेस के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरा है. मोबाइल ब्राउज़िंग में तो इसकी स्थिति और भी विकराल रूप में सामने आयी है. टेकसेवी लोगों का इस सम्बन्ध में तर्क है कि ऐड से लोगों के मोबाइल का ज्यादा डाटा इस्तेमाल होता है, ऐसे में उन्हें ब्लॉक होना ही चाहिए, पर दूसरी तरह इस ब्लॉकिंग से इन्टरनेट विज्ञापन कंपनियों को होने वाले नुकसान के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है. ऐसी परिस्थिति में बीच का रास्ता निकालने की जरूरत है, जिससे कंपनियों की कमाई पर भी बड़ा असर न पड़े तो इन्टरनेट यूजर्स का अनुभव भी स्पैमर्स और विज्ञापन कंपनियां खराब न कर सकें. इस सम्बन्ध में आगे बात करते हैं तो फेसबुक का बड़ा इनिशिएटिव (Facebook Ads, Google Adwords, Hindi Article, New, Anti Ad block Script, Real solution needed) सामने आया है, जिसके अनुसार, एड ब्लॉक ऐप के ख़िलाफ़ उसने तैयारी कर ली है और अब वह ऐसे ऐप को खुद ही ब्लॉक करने को तैयार है. जानकारी के अनुसार इंटरनेट पर एड ब्लॉक ऐप इस्तेमाल करने वाले लोग उसका फ़ायदा नहीं उठा पाएंगे. हालाँकि, दूसरी तरफ एडब्लॉक प्लस नाम की कंपनी ने भी एक और फ़िल्टर लॉन्च किया है जिससे फ़ेसबुक की एडब्लॉक ऐप को ब्लॉक करने की कोशिश बेकार हो जाएगी. साफ़ है कि ऑनलाइन विज्ञापन देने वाली कंपनियों और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों के बीच ये लड़ाई पिछले एक-दो साल में काफी तेज़ हो गई है. ऐसे में फ़ेसबुक जैसी हज़ारों ऑनलाइन कंपनियों का मानना है कि ऑनलाइन ग्राहकों को मुफ्त का कंटेंट मिल रहा है, इसलिए उन्हें तरह-तरह के विज्ञापन दिखाए जाने चाहिए. वहीं ऑनलाइन ग्राहकों और प्राइवेसी के हक़ में बोलने वालों का मानना है कि ग्राहकों को विज्ञापन तो दिखाए जा ही रहे हैं, किन्तु इससे बचने के लिए वो एड ब्लॉक ऐप का इस्तेमाल जायज़ है.
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हालाँकि, कई कंपनियां चाहती हैं कि उनकी वेबसाइट के विज्ञापन को एड ब्लॉकर से बख्श दिया जाए और इसके लिए वह बाकायदा रिक्वेस्ट भी कर रही हैं. इसी सम्बन्ध में एंटी-एडब्लॉक जैसे प्रोग्राम मार्किट में आये हैं. इन्टरनेट कंपनियों का साफ़ कहना है कि चूंकि लोग ऑनलाइन पढ़ने के लिए पैसे नहीं देते हैं इसलिए कंपनियां विज्ञापन के सहारे ही ये कंटेंट लोगों तक पहुंचा सकती हैं. ऐसे में एक सम्भावना यह भी बन रही है कि अगर आप विज्ञापन नहीं चाहते हैं तो हो सकता है आपको इंटरनेट के तरह तरह के कंटेंट को पढ़ने के लिए अब कुछ पैसे देने पड़ें. हालाँकि, विकसित देशों में यह प्रोविजन भले ही कुछ सफल हो जाए, किन्तु विकासशील देशों में यह संघर्ष लंबा खींचने वाला है और चूंकि भारत, ब्राज़ील जैसे तमाम देशों में इन्टरनेट (Ad block filter, Internet Advertising Companies, Facebook Ads, Google Adwords, Hindi Article, New, Developing Countries) बेहद तेजी से पाँव पसार रहा है तो असल मामला इन्हीं को लेकर है. देखना दिलचस्प होगा कि तेजी से बढ़ रही इस लड़ाई की परिणति किस रूप में होती है. हालाँकि, हाल-फिलहाल मामला गंभीर ही होता जा रहा है और इसलिए संशय की स्थिति भी स्वाभाविक रूप से बढ़ रही है. शायद इसके लिए 'इन्तजार' ही बेहतर विकल्प है, तो आइये हम और आप भी इन्टरनेट के इस बड़े मामले को हर एंगल से देखने और प्रतिक्रिया देने की कोशिश करते हैं. क्या पता, इसी से कोई राह निकले! इसके साथ यह बात भी निश्चित है कि मामला सिर्फ 'प्रोग्रामिंग और कोडिंग' के स्तर का ही नहीं है, बल्कि उससे आगे बढ़कर यह सिद्धांतों और यूजर-एक्सपीरियंस का भी है. बेहतर होता कि एड ब्लॉक कंपनियां और फेसबुक, गूगल जैसी इन्टरनेट कंपनियां मिलकर 'स्पैमर्स' को रोकने की कवायद करतीं तो इस बात पर भी एकराय बनाने की कोशिश की जाती कि विज्ञापनों की भरमार से इन्टरनेट यूजर्स का स्वाद कड़वा न हो! शायद यह सबसे बेहतर विकल्प होता, किन्तु अभी तो .... !!!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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