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कैशलेश इंडिया के लिए छूटों की बौछार का मतलब क्या है?

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नरेंद्र मोदी सरकार निश्चित रूप से बेहद 'टेकसेवी' सरकार है. ऐसे में नोटबंदी के 1 महीने बाद, जब 'कैशलेस इंडिया' की बात ज़ोर शोर से की जाने लगी तो स्वाभाविक रूप से उत्सुक होकर अपने एंड्राइड स्मार्टफोन के गूगल प्लेस्टोर पर इसी कीवर्ड, यानि 'Cashless India' डालकर इसका ऑफिसियल एप्प सर्च करने लगा. मेरी यह रिसर्च 10 दिसंबर 2016 की है और तब गवर्नमेंट का ऑफिसियल एप्प मुझे नहीं दिखा. हाँ, कुछ दुसरे एप्प जरूर मौजूद थे, जिस पर थोड़ी बहुत जानकारी दी गयी थी. खैर, इसके बाद मैंने सरकार द्वारा इस विषय पर बनायी गयी वेबसाइट ढूंढनी शुरू की तो, मुझे http://www.cashlessindia.gov.in/ दिखी. मुझे थोड़ी बहुत राहत मिली कि चलो कुछ तो सूचना देने की जहमत उठाई गयी, किन्तु यह क्या? अंग्रेजी में बनी इस वेबसाइट में मात्र 16 लिंक (पेज) देकर खानापूर्ति कर दी गयी है. उन 16 पृष्ठों में भी 10 पेज तो विभिन्न पेमेंट मेथड्स के दिए गए हैं. मसलन, बैंकिंग कार्ड्स, यूएससडी, एइपीएस, यूपीआइ, मोबाइल वालेट्स, बैंक प्री-पेड कार्ड्स, पॉइंट ऑफ़ सेल, इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग एवं माइक्रो एटीम के बारे में सामान्य जानकारी देकर इतिश्री कर ली गयी है. तकनीक से जुड़े व्यक्ति बखूबी समझ सकते हैं कि कैशलेस और डिजिटल इंडिया की बात करने वाली सरकार ने इसके प्रचार प्रसार के लिए ठोस प्रयास कतई नहीं किया है. कई लोगों को तमाम पेमेंट मेथड्स के बारे में बिलकुल भी पता नहीं है तो क्या इसके लिए अब तक मोबाइल एप्प (No preparation for cashless India!) भी नहीं बनाया जाना चाहिए था? पीएम की सरकारी वेबसाइट 11 भाषाओं में है तो क्या इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की वेबसाइट को 'हिंदी' तक में उपलब्ध न कराया जाना सरकार की 'विशेष' मानसिकता नहीं जाहिर करता है? वह 'विशेष' मानसिकता, जो पुरानी सरकारों की तरह टालमटोल वाली मानसिकता भी हो सकती है अथवा नयी सरकार की 'कहना कुछ और सोचना कुछ और या फिर करना कुछ और' हो सकती है? Possibility of Cashless India, Hindi Article, New, Deep Analysis of Currency Ban, Government Policy, Employment, Technology, Tech Savvy, Economy, Criticism

तकनीकी स्तर पर इतनी बारीक व्याख्या के लिए मैं इसलिए मजबूर हुआ क्योंकि 'नोटबंदी' से सवा सौ करोड़ देशवासी सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं तो तमाम अर्थशास्त्रियों (Major economist criticize currency ban, Hindi article) ने एक सुर में सरकार के इस कदम को एक तरह से निष्प्रभावी बता डाला है. जाहिर तौर पर 'कैशलेस इंडिया' का राग इतने ऊँचे स्वर में गाया जाना ध्यान भटकाव की कोशिश ही प्रतीत हो रही है, जो अंततः अपने मकसद को पाने की बजाय अफरातफरी ही बढ़ाएगी! नोट बंदी के एक महीना पूरा होने के अवसर पर व्हाट्सएप्प पर एक जोक बड़ी तेजी से सर्क्युलेट हो रहा था, जिसमें लिखा था कि आज 8 दिसंबर है और आप सावधान रहिए, क्योंकि पीएम मोदी ने ठीक 1 महीने पहले नोटबन्दी की घोषणा की थी, तो फिर आज भी कहीं .. .. .. ? 
इसके साथ मेरे पास आए एक और व्हाट्सएप्प संदेश ने मेरा ध्यान खींचा, जिसमें केंद्र सरकार के नोटबंदी की आलोचना करते हुए इस तरफ ध्यान दिलाया गया था कि सरकार के पास नोटबंदी की योजना का कोई ठोस रोडमैप नहीं था, तो उससे उत्पन्न प्रभाव और उसके हल पर ठीक से विचार नहीं किया गया था, और इसीलिए सरकार 30 दिन के नोट बंदी समय निकल जाने के पश्चात भी कोई ठोस उपलब्धि हासिल करने में नाकाम रही है. शुरू में कुछ एक अर्थशास्त्रियों ने नोट बंदी को लेकर अवश्य अपना समर्थन जारी किया था, किंतु जैसे-जैसे समय निकलने लगा है, एक-एक करके अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने इस योजना की आलोचना करनी शुरू कर दी है. खैर, 8 दिसंबर की शाम को ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कुछ प्रावधानों की घोषणा जरूर की, जिसे पहली नजर में देखने पर यही लगता है कि इससे देश 'कैशलेस' होने की दिशा में आगे बढ़ेगा, पर क्या वाकई ऐसा है? और अगर ऐसा है भी, तो क्या इसके लिए नोट बंदी जैसे भयानक कदम (Currency ban is a dangerous step in Indian Economy) उठाने की आवश्यकता थी? युवा होने के कारण मैं व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के सन्देश कुछ ज्यादा ही देखता हूं तो उस पर एक और संदेश देखा जिसमें वित्त मंत्री के कैशलेश प्रोत्साहन के उपायों की जमकर बखिया उधेड़ी गई थी. साफ तौर पर उसमें कहा गया था कि सरकार नोटबंदी से कुछ खास लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई है, इसलिए अब कैशलेस का 'जुमला' उछाला जा रहा है. Possibility of Cashless India, Hindi Article, New, Deep Analysis of Currency Ban, Government Policy, Employment, Technology, Tech Savvy, Economy, Criticism
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प्रथम दृष्टया यह बात सच भी लगती है, क्योंकि जिस देश में बिजली और इंटरनेट जैसी बेसिक समस्याओं से लोग अभी दो-चार हो रहे हैं, वहां 'कैशलेश इंडिया' की बात करना अजीब ही है! वह भी 'युद्धस्तर' पर इसकी बात करना, बेहद अव्यवहारिक अभियान प्रतीत होता है. अरुण जेटली ने 8 दिसंबर को जिन उपायों की घोषणा की, मसलन ट्रेन में ऑनलाइन टिकट खरीदने पर, बीमा खरीदने या प्रीमियम ऑनलाइन देने पर, पेट्रोल पंपो पर कार्ड से पेमेंट करने इत्यादि पर अतिरिक्त छूट दी जाएगी, तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि जो वर्ग ऑनलाइन पेमेंट करता है यह उपाय उन्हीं को राहत पहुंचाएंगे (Discount fact, announced by Arun Jaitley, Sampadkiya lekh), जबकि जरूरत वहां थी जो वर्ग इंटरनेट या तकनीक से नहीं जुड़ा है उसको राहत पहुंचाने की! मतलब कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में! हालांकि, 10 हजार या अधिक की आबादी वाले गांव में 2 पॉइंट ऑफ सेल मशीनें लगाने की बात केंद्र सरकार ने कही है, किंतु इतने मात्र से क्या कुछ ठोस हासिल होगा, इस बात पर बड़ा क्वेश्चन मार्क लगा हुआ है. आश्चर्य तो यह भी है कि 'कैश' की कमी के कारण लोग डिजिटल पेमेंट करने की तरफ अग्रसर जरूर हुए हैं, किंतु असल समस्या पेमेंट लेने वाले की ही है. मैं अपने अनुभव की बात करूं, तो मेरा बच्चा जिस स्कूल में पढ़ता है वहां मैंने रिक्वेस्ट की ताकि उसकी फीस कार्ड या चेक से कर सकूं, किंतु वहां इंकार कर दिया गया. संभव है कई स्कूलों में चेक या कार्ड से पेमेंट ली जाती हो, किंतु बात यहां समग्र व्यवस्था की है! छोटे किराना स्टोर, होलसेल मार्केट और दूसरी जगहों पर 'कैश' लेने के अतिरिक्त कोई बात सुनने को राजी नहीं है. मजबूरन इसका सिस्टम उतना प्रभावी बनता नहीं दिख रहा है, जितना सरकार सोच रही है. मेरे किसी सोशल मीडिया दोस्त ने फेसबुक पर तर्क दिया था कि देश जब बदलाव को तैयार हुआ तो आसानी से घर-घर टीवी आ गए, स्वाभाविक रूप से अधिकांश घरों में कंप्यूटर आ गए, लोगों के हाथ में ही स्मार्टफोन आ गए और यह सब नेचुरल रुप से हुआ, ना कि किसी को टॉर्चर करके (Changes should be natural, not to be forced in 1 day, Hindi Article ) या 1 दिन में बदलाव की उम्मीद करके! तो कैशलेश इंडिया बनाने की कोशिश क्या मोदी सरकार रातों-रात सफल कर लेना चाहती है? क्या वाकई लोग इस मामले में इतने फैमिलीयर हो जाएंगे कि डिजिटल वालेट, पीओएस मशीन और तमाम पासवर्ड के झमेले से अपनी मानसिकता का तालमेल बिठा सकें? खासकर 35 - 40 साल से ऊपर के उम्र वालों की बात की जाए, तो उनमें 80 फ़ीसदी से ज्यादा लोग टेक्नोलॉजी से कंफर्ट महसूस नहीं करते हैं. उनमें से कुछ लोग हद से हद चेक से पेमेंट कर लेते हैं या फिर एटीएम से पैसे निकाल लेते हैं. Possibility of Cashless India, Hindi Article, New, Deep Analysis of Currency Ban, Government Policy, Employment, Technology, Tech Savvy, Economy, Criticism, Revolution or Bad Decision?

कई जगह मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो अपना एटीएम कार्ड इसलिए नहीं निकालते हैं कि कहीं उनके कार्ड की क्लोनिंग (Security majors of digital transactions) न हो जाए और उनका डाटा न चुरा लिया जाए. यह आशंका निराधार भी नहीं है. अक्सर एटीएम कार्ड की क्लोनिंग और डाटा चोरी के मामले सामने आते रहे हैं. अभी हाल ही में स्टेट बैंक जैसे मजबूत संस्थानों के लाखों डेबिट कार्ड के डाटा चोरी से बैंक प्रशासन और कार्ड कंपनियां हिली हुई थीं, जिसका असर रिजर्व बैंक तक महसूस किया गया था. इसी तरह डिजिटल वालेट की भी समस्या है. उस पर सर्विस चार्ज और इंटरनेट की उपलब्धता की अनिवार्यता कैशलेस इंडिया की राह में बड़ा रोड़ा बनने जा रही है. ऐसा नहीं है कि यह लक्ष्य हासिल ही नहीं हो सकता किंतु अगर कोई इसे रातों-रात करना चाहता है तो उसकी बुद्धि पर तरस आना ही चाहिए. वस्तुतः यह प्रोजेक्ट कम से कम 2 से 5 साल का है, वह भी यदि तीव्र गति से किया जाए तो! ऐसे में नोटबंदी की असफलता छिपाने के लिए सरकार इसे 50 या 100 दिन में भला कैसे करना चाहती है? सवा सौ करोड़ देशवासी अभी जाने कब तक बैंक और एटीएम की लाइन में लगे रहेंगे, यही क्लियर नहीं है, तो फिर उन्हें फिर किसी दूसरी ओर उलझाना कहाँ का न्याय है? अरे लोग कमाएंगे तब तो 'कैशलेश' इंडिया बनेगा न? अगर यही हाल रहा तो लाखों लोगों की नौकरियाँ (Bad effect of currency ban on employment, Editorial Article in Hindi) छिन जाएंगी, जिसका अंदेशा कई रिपोर्ट्स में भी आ चुका है, फिर बनाते रहना आप 'कैशलेश इंडिया' और मनाते रहना 'नोटबंदी' का त्यौहार! आम आदमी सहित सुप्रीम कोर्ट तक सरकार से प्रश्न पूछ रहा है कि सेविंग अकाउंट वालों को सप्ताह में तय की गयी 24 हज़ार की राशि भी क्यों नहीं मिल रही है? करेंट अकाउंट वालों को सरकार द्वारा तय 50 हज़ार की राशि ही क्यों नहीं मिल रही है? एटीएम की लाइन में लगने वालों को 2 हज़ार भी क्यों नहीं मिल पा रहा है? मैं दिल्ली में रहता हूँ और मेरा छोटा भाई फरीदाबाद में. उसे दिल्ली से कुछ पुराना सामान फरीदाबाद ले जाना है, किन्तु उसके पास इतना भी कैश नहीं है कि वह किसी गाड़ी वाले को 3 चार हज़ार दे सके. लगभग हफ्ते भर से वह इस कार्य को टाल रहा था, तो जब मैंने उससे साफ़ पूछा कि भाई क्या बात है, सामान ले क्यों नहीं जा रहे हो, तो उसने बताया कि फरीदाबाद में अधिकांश एटीएम ठप्प हैं. सेक्टर 15 और एकाध जगह का उसने नाम लिया, जहाँ एटीएम चल रहे हैं. कमोबेश यही हाल दिल्ली और दूसरी जगहों का भी है. Possibility of Cashless India, Hindi Article, New, Deep Analysis of Currency Ban, Government Policy, Employment, Technology, Tech Savvy, Economy, Criticism, Revolution or Bad Decision?

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लगभग 80 फीसदी एटीएम बंद ही हैं और जाने कब उनकी किस्मत खुलेगी. ऐसे में अगर कोई सोचे कि रातों रात भारत को कैशलेश बना दिया जाएगा, तो यह कुछ उसी तरह की बात हुई कि बच्चे को 9 महीने की जगह एक महीने में ही पैदा करने की सोचा जाए (Why so hurry for cashless India? Hindi Essay). जाहिर तौर पर इससे तनाव उत्पन्न होगा और समस्याएं बढ़ती ही जाएंगी. अगर नोटबंदी के वास्तविक लक्ष्य को सरकार नहीं हासिल कर सकी है तो उसकी असफलता उसे स्वीकारनी चाहिए और अनाप-शनाप कदमों को उठाने की बजाय संतुलित और दीर्घकालिक कदम उठाने की ओर ध्यान देना चाहिए ना कि जल्दबाजी में 'माया मिली न राम' की हालत करने की ज़िद्द करनी चाहिए. नोटबंदी से कुछ लाभ भी जरूर हुए हैं, किन्तु उसकी कीमत कहीं ज्यादा बड़ी चुकाई है देश ने, इस बात में दो राय नहीं! मोदी सरकार के लिए राहत की बात है कि नरेंद्र मोदी का समर्थन जनता में अभी बना हुआ है, तो लोगों को उनकी मंशा पर भरोसा भी है. साथ ही साथ विपक्ष का नाकारापन जनता के गुस्से को स्वर देने में पूरी तरह विफल रहा है, किन्तु, केंद्र सरकार को यह याद रखना चाहिए कि "लोकप्रियता वह 'ब्रह्मास्त्र' है, जो एक बार ही चलाया जा सकता है." और वह ब्रह्मास्त्र नरेंद्र मोदी 'नोटबंदी' का फैसला लेकर चला चुके हैं. अब यदि कोई और बड़ी बेवकूफी सरकार करती है तो उसका सीधा दुष्परिणाम उसे भोगना पड़ सकता है, फिर 2019 का सपना उसके लिए दिवास्वप्न ही हो जायेगा. इससे भी बड़ी बात यह है कि सरकार तो कोई न कोई आएगी ही, किन्तु लोगों के जीवन स्तर पर उन 'बेक़ूफ़ाना' डिसीजन्स (Bad decisions of Indian Government, Hindi Article, New) का परिणाम दशकों तक पड़ सकता है, जिसे वर्तमान केंद्र सरकार 'क्रांतिकारी' समझने की भूल पर भूल करती जा रही है.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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