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समुद्री चक्रवात वरदा से तमिलनाडु सहित पूरा देश प्रभावित

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हमारे देश की खूबसूरती में यहां की विविधता का बड़ा ही अमूल्य योगदान रहा है, किंतु जैसा कि हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं, तो हमारे देश में भी प्राकृतिक आपदाएं जब तब आती ही रहती हैं. कभी सूखा, कभी बाढ़, कहीं ओले, तो कहीं पाले (ज्यादा ठंड) अक्सर ही देश के नागरिकों का जीवन संकट में डाल देती है. हालात तब और भी गंभीर हो जाते हैं जब सुनामी या वरदा जैसा कोई बड़ा तूफान आता है, क्योंकि इससे जान माल की भारी क्षति होती ही होती है. हाल के दिनों में चक्रवाती तूफान वर्धा तमिलनाडु के तटवर्ती इलाकों में तबाही मचाने के बाद आंध्र प्रदेश और पूर्वी कर्नाटक की तरफ भी बढ़ा, जिससे कई लोगों की मौत हुई, वहीं चेन्नई जैसे शहरों की अर्थव्यवस्था थम सी गई. थोड़ा और व्यापक ढंग से बात करें तो, भारत के तटवर्ती इलाके में आए इस तूफान में ना केवल चेन्नई (तमिलनाडु), आंध्रा या कर्नाटक ही प्रभावित हुए हैं, बल्कि इसके दुष्प्रभाव से समूचा देश ही प्रभावित हुआ है. जी हाँ, इकॉनमी के स्तर पर भी और उससे आगे बढ़कर तकनीक के स्तर पर, जो भविष्य के लिहाज से भी चिंता उत्पन्न करता है. अगर तमिलनाडु की ही बात पहले कर लें, तो उद्योग जगत की संस्था एसोचैम के आंकलन के मुताबिक चक्रवात वरदा से तमिलनाडु में तकरीबन 6749 करोड़ रुपए का भारी नुकसान हुआ है. जाहिर तौर पर इस तूफान से जहां इमारतों, गाड़ियों और पेड़ों को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है, तो कृषि क्षेत्र को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है. क्षेत्र में होने वाली फसलें जैसे केले, पपीते, धान इत्यादि को इस तूफान के कारण बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है. साथ ही साथ भारी बारिश, बिजली की परेशानी, परिवहन व्यवस्था में अव्यवस्था और पालतू पशुओं को हुए नुकसान के साथ-साथ निजी संपत्ति को होने वाले नुकसान ने परिदृश्य को व्यापक कर दिया है. निश्चित रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था भारी सदमे में है, क्योंकि न केवल प्रत्यक्ष नुक्सान बल्कि इस तूफान के कारण दक्षिण भारत के पर्यटन व्यवसाय को भी भारी नुकसान पहुंचा है. हम सबको पता ही है कि दक्षिण भारत में कम ठण्ड के कारण विंटर सीजन में काफी पर्यटक जाड़े की छुट्टियां मनाने की तैयारी करते हैं, किन्तु अब वह इस क्षेत्र की बजाय कहीं और का रूख करेंगे. Vardah Cyclone Chennai, Hindi Article, new, Natural Disaster, Tamil Nadu, Karnataka, Andhra Pradesh, Harm, Economy, Editorial, Current Affairs, Hindi Essays


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हालाँकि, पिछले साल के भयानक तजुर्बे से सबक लेकर समुद्री तूफ़ान के विनाशकारी प्रभावों से बचने की काफी तैयारियां इस बार की जा चुकी थीं, किन्तु अब जब तूफ़ान गुजर चुका है, तब इसके असर से उबरना चेन्नईवासियों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. वैसे, तमिलनाडु के प्रभावित इलाक़े में राष्ट्रीय आपदा राहत बल यानी एनडीआरएफ़ की कई टीमें तैनात हैं और तूफान से निपटने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, पर समस्या कहीं व्यापक है. निश्चित रूप से इस मुसीबत से निपटने में अन्य देशवासियों को विभिन्न राहत कोसों में अपना अनुदान देने की कवायद करनी चाहिए. इससे प्रभावित लोग समस्याओं से जल्दी उबर पाने में सक्षम होंगे. हालांकि वरदा तूफ़ान के प्रत्यक्ष प्रभाव के अतिरिक्त अगर हम दूरगामी सोचते हैं, तो चेन्नई में आए इस तूफान से पूरे देश की इंटरनेट व्यवस्था पर भी भारी असर पड़ा है. थोड़ा तकनीकी दृष्टि से इस पूरे तथ्य को समझने का प्रयत्न करते हैं तो इस तूफान ने समुद्र में बिछी इंटरनेट केबल्स को भारी नुकसान पहुंचाया है, और इसी वजह से इंटरनेट कनेक्शन में कई जगह पर परेशानियां दर्ज की गई हैं. हालाँकि, तमाम इन्टरनेट कंपनियां अपने ग्राहकों से एसएमएस के जरिये माफ़ी मांग रही हैं, किन्तु सवाल तो मुसीबत का है, जो माफ़ी मांगने से तो कतई दूर नहीं होने वाला! गौरतलब है कि टेली कंयुनिकेशन मार्केट रिसर्च फर्म टेली जियोग्राफी के मुताबिक, पूरे विश्व में समुद्र के नीचे तकरीबन 321 केबल सिस्टम काम कर रहे हैं और दुनिया का 99 फ़ीसदी अंतरराष्ट्रीय डेटा इन्हीं केबल्स  के सहारे दौड़ता है. जाहिर तौर पर अगर समुद्र में कोई बड़ी हलचल उत्पन्न होती है, तो इन तारों को नुकसान पहुंचता ही है और फिर परिणामस्वरूप इंटरनेट पर उपलब्ध वेबसाइटों को खंगालने में दिक्कतें पेश आती हैं. बताते चलें कि डिजिटल डाटा के लिए ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें टेलीफोन इंटरनेट और प्राइवेट डाटा ट्रेफिक शामिल किए जाते हैं. तकनीकी दृष्टि से देखें तो, इन केबलों की मोटाई करीब 25 मिली मीटर और वजन तकरीबन 1.4 किलोग्राम प्रति मीटर होता है. किनारे पर केबल्स की मोटाई ज्यादा होती है. बेहद दिलचस्प है कि अंटार्कटिक को छोड़कर सभी महाद्वीप इन्हीं केबल्स से जुड़े हुए हैं. Vardah Cyclone Chennai, Hindi Article, new, Natural Disaster, Tamil Nadu, Karnataka, Andhra Pradesh, Harm, Economy, Editorial, Current Affairs, Hindi Essays



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निश्चित रूप से वरदा तूफ़ान के बाद जब इंटरनेट की समस्या कई जगह आई, तो तुरंत कोई नहीं समझ पाया कि आखिर इन समस्याओं के पीछे क्या बात है? मैंने भी अपने इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) को फोन किया और मामले को समझने की कोशिश की. दूसरी जगहें भी, धीरे-धीरे बातें खुलती चली गयीं कि दुनिया कम्युनिकेशन के लिए, खास तौर से इंटरनेट के मामले में इन्हीं केबलों पर निर्भर करती है और जब इनको नुकसान पहुंचेगा तो, समस्या आनी स्वभाविक ही है. हालांकि कई जगह पर इंटरनेट सैटेलाइट से भी एक्सेस किया जाता है, किंतु दुनिया भर के देश इन्हीं फाइबर ऑप्टिक केबल नेटवर्क में निवेश कर रहे हैं, क्योंकि यह सैटेलाइट की तुलना में कहीं ज्यादा सस्ती है. इसी कड़ी में अगर भारत की बात करें तो सब मरीन केबल नेटवर्क के मुताबिक देश में 10 सबमरीन केबल रनिंग स्टेशन हैं, जिनमें से चार मुंबई, तीन चेन्नई 1 तूतीकोरिन और एक बीघा में स्थित है. जाहिर तौर पर अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट गेटवे के लिहाज से मुंबई और चेन्नई काफी अहम हैं और जैसे ही चेन्नई में तूफान आया और आप्टिक  फाइबर केबल को नुकसान पहुंचा वैसे ही इंडियन गेटवे प्रभावित हुआ. चूंकि, इंटरनेट आज हमारी आपकी जिंदगी से बेहद गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है, इसलिए इस समस्या को बड़े स्तर पर नोटिस किया गया है, किंतु प्रकृति के आगे भला किसकी चली है. हां, अगर हम और आप देश के दूसरे हिस्से में हैं और इन्टरनेट की छोटी सी डिस्टर्बेंस से परेशान हैं तो सहज ही चेन्नईवासियों की स्थिति का आंकलन कर सकते हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि नागरिक के स्तर पर हम सभी पीड़ितों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाएंगे तो सरकार के स्तर पर और भी पुख्ता स्तर की सावधानियां बरती जाएँगी, ताकि ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद आम जनजीवन जल्द से जल्द पटरी पर लाया जा सके. और हाँ, 'कैशलेस इंडिया' के दौर में सरकार को आने वाले भविष्य के लिए इन्टरनेट डिस्टर्बेंस का बैकअप भी तैयार करने की आवश्यकता है, क्योंकि 'बिन पानी सब सून' की तर्ज पर 'बिन इन्टरनेट सब सून' हो सकता है!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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