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भूकम्प - Earthquake, Short Story, Laghu Katha by Mithilesh Anbhigya


दूसरे की तकलीफ़ तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं आती है, कभी किचेन में दो रोटियां बनाओ फिर एक हाउसवाइफ का दर्द पता चलेगा, रागिनी ने भड़कते हुए कहा!

उसका पति रमेश भी कहाँ कम था, ताना मारते हुए बोला- कभी हमारी तरह धूप में बाहर निकलो और ऑफिस की पॉलिटिक्स झेलो, तुम्हें भी आटे-दाल का भाव पता चल जायेगा!
उन दोनों की शादी को 5 साल होने को आये और इस तरह की नोक झोंक सप्ताह में एकाधिक बार हो ही जाया करती थी.
आज भी शनिवार का दिन था और रमेश का 'हाफ डे' था.
दोनों के बीच बच्चे को स्कूल से लाने को लेकर किच-किच होती रहती थी, विशेषकर तब जब रमेश घर पर होता था.

अब पलंग क्यों हिला रहे हो?
मैं नहीं, तुम हिला रही हो, रमेश ने आदतन तुरंत उत्तर दिया.
फिर ... ये ... हिल . ... ? ?
भू ... क ... म्प !!
भागिए.

रमेश अचकचा गया. हड़बड़ा कर उठा और शर्ट पहनने लगा.
छोड़िये शर्ट.. और उसका हाथ पकड़ कर रागिनी सीढ़ियों की ओर भागी.
तब तक बिल्डिंग हिलना बंद हो चुकी थी और सामने लगी टीवी पर नेपाल में आये भीषण भूकम्प की ब्रेकिंग-न्यूज आने लगी थी.
7.9 रिक्टर स्केल से दिल्ली भी अछूती न रह सकी थी. लोगबाग सहम गए थे.
तब तक नेपाल में सैकड़ों, हज़ारों लोगों के मरने, घायलों की संख्या और नुकसान हुए मकानों के आंकलन आने लगे.

रागिनी और रमेश की साँसे अभी थमी नहीं थीं. यह दोपहर का ही समय था जब नर्सरी में पढ़ने वाले उनके बच्चे की छुट्टी होती है. रमेश बिना कहे, पास में स्थित स्कूल की ओर दौड़ा.
सब कुशल था.
रागिनी अपने बेटे को गोद में लेकर बैठी थी. रमेश ने माँ बेटे को गले लगा लिया. उधर टीवी पर भूकम्प की भयावहता का आंकलन लगातार बढ़ रहा था.

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'.




Earthquake, Short Story, Laghu Katha by Mithilesh Anbhigya

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