नए लेख

6/recent/ticker-posts

संत, समाज सुधारक एवं जातिवाद के घोर विरोधी रविदास के बारे में जानें ... Sant Ravidas, Hindi Article, Miracles

आखिर कैसे होगी 'न्यूज-पोर्टल' से कमाई? देखें वीडियो...



आधुनिक समय में संत शब्द की परिभाषा ही बदल गयी है. या यूँ कहें कि चंद लोगों ने मिलकर ऐसे चरित्रों का निर्माण किया है कि साधु, संत, गुरु जैसे शब्द छलावा से हो गए हैं. तमाम छद्म लोगों ने संतों का भेष धारण कर ऐसे-ऐसे अनैतिक कार्य किये हैं कि नयी पीढ़ी का विश्वास ही उठ गया है संतों के नाम पर! पुराने काल से ही भारतीय समाज में गुरुओं और संतों का बेहद महत्त्व रहा है. यही वो लोग होते थे, जो समाज को दिशा प्रदान करने का काम करते थे, लोगों को सत्कर्म करने और प्रभु-भक्ति करने का माध्यम बनते थे. इसलिए इन संतों के बारे में अनवरत चर्चा ही एकमात्र वह रास्ता है, जिससे नयी पीढ़ी भारत की पावन धरती पर महान संतों की शिक्षाओं को समझ सकेगी. इन्हीं की दी हुयी सीख और सत्कर्मों को याद करके हम बुराइयों को भुला सकेंगे! ऐसे में हमें उन छद्म और भ्रष्ट लोगों से सावधान रहना होगा, जो संतों के भेष में व्यापारी हैं और जिनका धर्म और मानवता से कोई वास्ता नहीं, बल्कि इनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है. येन, केन, प्रकारेण वह अपने कुत्सित लक्ष्यों को पूरा भी करते हैं, बेशक मानवता उससे त्राहिमाम क्यों न कर उठे!

Sant Ravidas, Hindi Article, Miracles, Creative: Team mithilesh2020
संत शब्द की परिभाषा बताने के लिए 'रविदास' नाम ही काफी है, इस महान सन्त ने ताउम्र जाति और धर्म का भेद मिटाने का ही सन्देश दिया. आखिर, कौन नहीं जानता है कि तत्कालीन समय में हमारा समाज अनगिनत बुराइयों से जकड़ा हुआ था, जिसमें जाति के नाम पर भेदभाव सबसे बड़ी बुराई के रूप में विद्यमान थी. 
बुराइयों पर अपना नजरिया स्पष्ट करके समाज को राह दिखलाने वाले संत रविदास के अनुसार जब कोई जन्म लेता है, तब उसकी कोई जाति नही होती है. उनकी कल्पना एक ऐसे समाज की थी, जिसमें लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता और भेदभाव का दूर दूर तक कोई वास्ता न था. 
रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया. 

रविदास का जीवन  
गुरु रविदास का जन्म माघ शुक्ल पूर्णिमा 1398 को काशी में हुआ था. स्वयं चर्मकार (हरिजन) जाति में पैदा हुए रविदास के विचार और प्रभु के प्रति भक्ति और निष्ठा इतनी गहरी थी कि सभी वर्गों के लोग उनको श्रद्धा और सम्मान देते और उनकी बातों को आदर पुर्वक सुनते थे. कहते हैं उनकी भक्ति भावना से प्रभावित हो कर मीराबाई उनकी शिष्या बन गयी थीं. अगर आज के समय में हम बात करें तो कई लोग किसी भी तामझाम, चमक- दमक वाले व्यक्ति से प्रभावित हो कर उसको गुरु मान लेते हैं जबकि आडम्बर तो संतो का गुण ही नहीं है. बेहद आश्चर्य होता है कि कई तथाकथित 'सन्त' जेल में होने, अपराध के आरोप से घिरे होने के बावजूद करोड़ों फ्लोवेर्स होने का दावा करते हैं. इस कड़ी में, अगर आप संत रविदास के जीवन को देखेंगे तो पता चलता है कि उन्होंने दूसरे संतों की तरह बिना घर-परिवार छोड़े भगवान की भक्ति की और लोगों की सेवा करते रहे. उन्होंने यह सन्देश दिया  कि अपने मौलिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी ईश्वर भक्ति की जा सकती है. हालाँकि, संन्यास परंपरा हमारे भारतीय मूल्यों में अनमोल महत्त्व रखती है, किन्तु ऐसा भी देखा गया है कि लोगबाग जिम्मेदारियां निभाने की बजाय, जिम्मेदारियां छोड़ कर भाग खड़े होते हैं और भगोड़ेपन के आरोप से बचने के लिए संन्यास का चोला ओढ़ लेते हैं. 


कठिनाईओं का सामना 
जैसा कि सभी सत्य और धर्म की राह पर चलने वाले लोगों की राहों में कठिनाईयां आती हैं, वैसे ही संत रविदास के जीवन में भी तमाम कठिनाईयां आयीं. रविदास के माता-पिता को उनका ईश्वर की भक्ति करना पसंद नहीं था. इससे तंग आकर रविदास को उनकी पत्नी समेत घर से बाहर निकाल दिया गया था. पिता द्वारा घर से निकाले जाने के बाद उन्होंने अपने मन में किसी तरह का कोई द्वेष न रखते हुए अपनी जीविका चलाने के लिए अपने पारम्परिक पेशा (जूता बनाने के काम) को अपनाया और साथ में समाज सेवा के कार्य को भी अनवरत जारी रखा. 

काम के प्रति निष्ठा 
संतों का जीवन कितना अनुशासित, नियमित होना चाहिए, यह रविदास के जीवन से जुड़े एक प्रसंग से पता चलता है. एक बार किसी अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे, तभी रैदास के शिष्यों में से किसी एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया, तो वह सहज भाव से बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है. यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा. गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? सन्देश साफ़ था कि मन जिस काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो, वही काम करना उचित है. संत रविदास ये जानते थे कि अपने काम को समय पर पूरा करने का कितना महत्त्व है और साथ ही उन्होंने ये भी सन्देश दिया कि भगवान की भक्ति के लिए अंतःकरण का शुद्ध रहना भी जरुरी है. जब अंतःकरण शुद्ध रहेगा तो कठौती में पड़ा जल भी गंगा की तरह पवित्र होगा. कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि:  
मन चंगा तो कठौती में गंगा.

संत रविदास के सन्दर्भ में प्रचलित कथा 
किवदंतियों के अनुसार यह कथा भी प्रचलित है कि खुद रविदास गंगा स्नान के लिए जाना चाहते थे, किन्तु कार्य की व्यस्तता के कारण वह जब नहीं जा पाए तो माँ गंगा को अर्पण करने के लिए उन्होंने गठरी में बाँध कर कुछ 'आटा' दे दिया. कहते हैं सन्त रविदास की गठरी ले जाने वाले व्यक्ति ने जब गंगा में वह गठरी अर्पण की तो स्वयं माँ गंगा प्रकट हुईं और संत रविदास को देने के लिए एक 'स्वर्ण कंगन' दिया. दिव्य 'स्वर्ण कंगन' को देखकर उस व्यक्ति के मन में लालच आ गया और तब उसने रविदास से झूठ बोल दिया था कि माँ गंगा ने उसे कुछ नहीं दिया. उस स्वर्ण कंगन को उस व्यक्ति ने राज्य के राजा को इनाम के लालच में भेंट कर दिया था. राजा ने उस दिव्य कंगन को अपनी रानी को दिया और तब रानी ने दूसरे कंगन की ज़िद्द पकड़ ली. वह व्यक्ति लाख कहता कि उसके पास दूसरा कंगन नहीं है, किन्तु राजा-रानी मानने को तैयार ही नहीं थे. उस व्यक्ति पर दूसरे कंगन की चोरी का आरोप लगा दिया गया और उसे 'मृत्युदंड' की आज्ञा सुना दी गयी. तब थोड़ा समय लेकर वह भागा-भागा गया और संत रविदास के चरणों में गिर पड़ा और उन्हें सब कुछ सच-सच बताया. कहते हैं तब संत रविदास ने पास पड़ी कठौती में हाथ डालकर माँ गंगा की कृपा से उसी कंगन जैसा दूसरा दिव्य 'कंगन' निकाल दिया था और फिर उस व्यक्ति की जान बची. यह संत रविदास का तेज और पुण्य ही था कि माँ गंगा तक को एक चर्मकार की 'कठौती' में आना पड़ा था.




सन्त रविदास के चमत्कारों की कहानी
गुरु रविदास का सीधा-साधा भक्तिमय जीवन चमत्कारों से भरा था. इसमें कुछ ऐसे हैं कि... 
उन्होंने गंगा नदी में एक पत्थर की मूर्ति को विसर्जित करने के लिए जैसे ही पानी में डाला, मूर्ति पानी में तैरने लगी थी. कहते हैं रामायण के नल- निल के बाद सिर्फ गुरु रविदास के साथ ऐसा हो सका था. वह अपनी साधारण कठौती के पानी से कुष्ट रोग तक को ठीक कर सकते थे. गुरु रविदास के जीवन में हुए चमत्कारों के पीछे सिर्फ और सिर्फ उनकी सच्ची भक्ति ही मानी जा सकती थी. उनका जन्म-महोत्सव तमाम भारतवासियों के लिए किसी धार्मिक त्यौहार से कम नही होता है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में संत रविदास के मानने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है, तो शेष भारत में भी इनके योगदानों का गुणगान करने वाले लोग लाखों में हैं.

साहित्य में योगदान 
संत रविदास द्वारा लिखी गयीं रचनाएं सीधी-सरल भाषा में हैं, जिसमें समाज के व्यापक हित की कामना को सच्ची भावना से दर्शाया गया है. संत रविदास का साहित्य मन को असीम शांति और संतोष प्रदान करने वाला है. इनका सन्देश सीधे लोगों के दिलों को प्रभावित करता है. यही कारण है कि सभी वर्गों के लोग इनके अनुयायी स्वतः बन जाते हैं. संत रविदास के आदर्शों के मानने वाले 'रैदास के उपासक' कहलाते हैं. संत रविदास का ऊँचा दर्जा उन्हें कबीर, सूर और तुलसी जैसे कवियों के समकक्ष खड़ा करता है. इस बात का अंदाजा आप कुछ यूं लगा सकते हैं कि स्वयं कबीरदास ने "संतन में रविदास" कहकर उन्हें साहित्य जगत में उच्च दर्जा दिया है. संत रविदास का यह पद देखिये, जो आपको उनके सहज ईश्वर में आस्था का प्रमाण देगा:
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै 'रैदासा'॥

Sant Ravidas, Hindi Article, Miracles, Pic: charanamrit.com
एक तरफ उन्होंने दोहे और छन्दों के द्वारा भगवान के तमाम रूपों को मनुष्यों तक पहुचाया, तो दूसरी ओर उनकी समाजिक और आध्यात्मिक जागरूकता ने उन्हें लोगों बीच बड़े स्तर पर स्वीकार्य बनाया. विश्व में प्यार और सम्मान पाने वाले शिरोमणि गुरु रविदास की सामाजिक जिम्मेदारियों को सम्भालते हुए भगवान की भक्ति करना, उस समय के लोगों के लिए सन्देश तो था ही, साथ ही साथ आज के परिप्रेक्ष्य में भी लोगों और धर्मिक गुरुओं के लिए बड़ी प्रेरणा है. गुरु रविदास जातिगत भेदभाव के धुर विरोधी रहे हैं और उनका यह विरोधाभाष उनकी रचनाओ में भी झलकता है. उनका हर एक दोहा और पद समाज के प्रति जागरूकता का सन्देश देता है. यदि कहा जाए कि उन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर में मानवता के मूल्यों की मजबूती के लिए कार्य किया, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. उनके एक दोहे में सफलता पाने का सच्चा रास्ता देखिये:
 "कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै। 
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।"

इसका अर्थ है, वे लोग बहुत ही भाग्यवान होते हैं, जिन्हें ईश्वर की भक्ति करने का सौभाग्य प्राप्त होता है. जैसे विशालकाय हाथी धरती पर पड़े शक्कर के कणों को नही चुन सकती, जबकि एक नन्हीं सी चींटी के लिए यह बहुत ही आसान काम है. इस पद में संत रविदास का सन्देश स्पष्ट है कि 'अभिमान को त्याग कर कार्य करनेवाले ही जीवन में सफलता को प्राप्त करते हैं'. इसके साथ, संत रविदास द्वारा जातिगत भेदभाव का विरोध, हमारे समाज के लिए आज भी अपनाया जा सकने वाला कार्य है. 
शिक्षित समाज की ओर लगातार बढ़ रहे भारतवर्ष में अगर आज भी जातिगत भेदभाव की बुराई सुनायी देती है तो इसका सीधा अर्थ यही है कि संत रविदास जैसे महात्माओं की सार्थक शिक्षाओं एवं संदेशों को हम सही अर्थों में आत्मसात नहीं कर सके हैं. 

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




Sant Ravidas, Hindi Article, Miracles, Teaching, Learn, casteism, Ganga River, Youth Inspiration, editorial, spiritual, Hindi Spiritual Article, Saints, Great People, guru ravidas, guru ravidas jayanti, guru ravidas jayanti 2017, guru ravidas ji
मिथिलेश  के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें... (More than 1000 Hindi Articles !!)

Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें पूरे होश-ओ-हवास में तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, समाज से प्राप्त अनुभव, प्रिंट मीडिया, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि रह गयी हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार इस वेबसाइट के संचालक मिथिलेश के पास सुरक्षित हैं. इस लेख के किसी भी हिस्से को लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को उद्धृत किए जाने पर लेख का लिंक और वेबसाइट का पूरा सन्दर्भ (www.mithilesh2020.com) अवश्य दिया जाए, अन्यथा कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ