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हम ज्यादा 'सहिष्णु' हो गए...


कल वो घर ख़राब हो गया, जहाँ हम जन्मे,
क्योंकि हम ज्यादा 'बड़े' हो गए

कल वो गाँव ख़राब हो गया, जहाँ हम पले,
क्योंकि हम ज्यादा 'सभ्य' हो गए

कल वो शहर ख़राब हो गया, जहाँ हम पढ़े,
क्योंकि हम ज्यादा 'योग्य' हो गए

आज ये देश ख़राब हो गया, जहाँ हम जिए,
क्योंकि हम ज्यादा 'सहिष्णु' हो गए

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'.





Short Hindi Poem on Tolerance, Intolerance

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