नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

ट्रेन का टाइम ... Train Timing, Social Poem by Mithilesh


बेटा, आज तो रुक जा
अभी तो आया है, अब जा रहा है
माँ बोलीं
पिछली बार भी तू न रुका था
तब मेरा मन खूब दुखा था

उन्हें लगा, बुरा न लग जाए
बोलीं-
तुझे भी कितना काम है,
एक पल ना आराम है
और फिर बहु भी शहर में अकेली है
पोता बदमाश, पोती अलबेली है

अरे सुन-
उसको भी तो गाँव ले आ
उसकी जड़ों से उसको मिला
उसके दादा उसकी फ़ोटो सहलाते हैं
मिलने को उससे रोज तड़प जाते हैं

कहते हैं-
छोटी बहु भी घर नहीं आयी
मायके से वापसी की टिकट कटवाई
देख न पाया छोटे पोते को
कहते हुए, आँखें डबडबाई

थोड़े अमरुद ले जा,
निम्बू के आचार बहू बना देगी
ये सरसों का शुद्ध तेल है,
पोते की मालिश वह करेगी

सूरज ढल रहा था
मैं माँ को सुन रहा था,
जी किया सुनता जाऊं
लेकिन-
ट्रेन का टाइम हो रहा था।
ट्रेन का टाइम हो रहा था।

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'.



Train Timing, Social Poem by Mithilesh, Pic: saraberman.blogspot.in

मिथिलेश  के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें... (More than 1000 Hindi Articles !!)

Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें पूरे होश-ओ-हवास में तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, समाज से प्राप्त अनुभव, प्रिंट मीडिया, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि रह गयी हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार इस वेबसाइट के संचालक मिथिलेश के पास सुरक्षित हैं. इस लेख के किसी भी हिस्से को लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को उद्धृत किए जाने पर लेख का लिंक और वेबसाइट का पूरा सन्दर्भ (www.mithilesh2020.com) अवश्य दिया जाए, अन्यथा कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ