हरियाणा की राजनीति में 'चौटाला परिवार' पिछले कई दशकों से मुख्य भूमिका में रहा है.
रसूख वाले इस परिवार की नींव पड़ी चौधरी देवी लाल के द्वारा जो 90 के दशक में भारत के उपप्रधानमंत्री रहे तो ठीक इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे. चौधरी देवी लाल को 'ताऊ देवी लाल' के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने हरियाणा की राजनीति को एक नया आयाम दिया. कहा जाता है कि एक बार बागपत में एक रैली के समय चौधरी चरण सिंह ने देवी लाल को मंच से नीचे उतार दिया था, जिसके बाद नए सिरे से हरियाणा में 'ताऊ' ने अपनी पैठ बनानी शुरू की थी.
उनके बाद उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने संभाली जिनका जन्म 1936 में हुआ था. अपने दूसरे भाइयों की तुलना में ओम प्रकाश चौटाला राजनीतिक रूप से काफी कुशाग्र रहे और यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि वह हरियाणा के 4 बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि ओम प्रकाश चौटाला को उनके पिता देवीलाल ने घर से निकाल दिया था और इसका कारण यही था कि वह दिल्ली एयरपोर्ट पर घड़ियों की स्मगलिंग करते हुए पकड़ लिए गए थे. ऐसा अक्सर होता है कि बेटा बाप का आशीर्वाद पा ही जाता है, ठीक उसी प्रकार ताऊ देवीलाल ने अपने 'इस बेटे' को भी हरियाणा के सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया था.
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बाद में शिक्षक भर्ती घोटाले में बाप बेटों, यानी ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला को 10 साल की सजा हो गई जो अभी जारी ही है.
इससे आगे की कहानी कुछ इस प्रकार है.
अजय चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला के जेल जाने के पश्चात अजय के छोटे भाई अभय के हाथ में इंडियन नेशनल लोक दल यानी 'इनेलो' की कमान आ जाती है और अभय चौटाला जरा गर्म मिजाज के शख्सियत हैं. इनेलो चुकी कई दशकों से हरियाणा में सक्रिय रही है, तो उसके साथ काफी वफादार भी उसी अनुपात में सालों से जुड़े हुए थे, जिन्हें अभय चौटाला के काम करने का अंदाज पसंद नहीं आया.
यूं भी अजय चौटाला के जेल जाने के पश्चात उनके समर्थक अभय चौटाला के साथ उस तरीके से कंफर्टेबल फील नहीं कर पा रहे थे, जिस प्रकार से वह अजय के साथ थे. एक के बाद एक नेताओं की नाराजगी शुरू होती है और ऐसे में इंट्री होती है 'दुष्यंत चौटाला' की, जो अपने पिता अजय चौटाला की तरह संगठन में लोकप्रिय होने का हुनर विरासत में लेकर आये नज़र आते हैं.
जाहिर तौर पर दुष्यंत के साथ इनेलो से नाराज़ नेता करीबी दिखलाने लगे थे और इसका अंदाजा उनके चाचा अभय चौटाला को भी हो ही गया.
2014 का लोकसभा चुनाव आता है और मोदी लहर में दुष्यंत को सबसे कठिन सीट दी जाती है और उनके खिलाफ होते हैं भजन लाल के पुत्र और हरियाणा जनहित कांग्रेस-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई!
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तब हिसार कुलदीप बिश्नोई का गढ़ माना जाता था. ऐसे में उनको हराना आसान नहीं था, लेकिन दुष्यंत ने अपने चाचा के द्वारा दी गई इस कठिन चुनौती को पार कर लेते हैं. इस जीत को एक चमत्कार ही माना गया, खासकर 'चौटाला परिवार के सपोर्टर्स' के बीच दुष्यंत की लोकप्रियता बढ़ती चली जाती है.
न केवल हिसार बल्कि हरियाणा की दूसरी तमाम जगहों से दुष्यंत से लोग जुड़ने लगे. जेल में बंद होने के कारण अजय सिंह चौटाला के प्रति कुछ कार्यकर्ताओं की सहानुभूति थी ही और ऐसे में दुष्यंत चौटाला अपने छोटे भाई दिग्विजय की युवा छवि के साथ राजनीतिक विरासत पर आगे बढ़ते चले गए. यहां तक कि उनकी विधायक मां नैना चौटाला भी अपने बेटों के साथ खड़ी नजर आती हैं.
पर अभय चौटाला भी कुछ कम न थे जैसा कि उनके एक बयान में झलकता है कि "अपने बड़े भाई अजय चौटाला से वह मात्र 2 साल छोटे हैं."
खैर! अभय चौटाला दुष्यंत की राजनीति को भांप गए और पहले उन्होंने अपने पिता ओमप्रकाश चौटाला को कन्वींस करके अपने भतीजे दुष्यंत और उनके छोटे भाई दिग्विजय को पार्टी से निकलवाया और बाद में अजय चौटाला जब अपने बेटों के समर्थन में आ गए तो अजय चौटाला को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. कहा जा रहा है कि 'इनेलो' अब तक दो हिस्सों में बंट चुकी थी और कई महत्वपूर्ण नेता दोनों खेमों से अपनी-अपनी वफादारी जतला रहे थे.
देखा जाए तो यह समूचा विवाद उत्तर प्रदेश के मुलायम-परिवार विवाद से मिलता जुलता है, जहां दो भाइयों मुलायम-शिवपाल ने मिलकर पार्टी खड़ी थी लेकिन जब नई पीढ़ी को नेतृत्व देने का समय आया तब बड़े भाई और छोटे भाई के बीच में एक तरीके से विवाद खड़ा हो गया.
Tau Devi Lal and Om Prakash Chautala (Pic: kharikhari) |
कहते हैं 'पीढ़ियों' के अंतर के कारण 'सत्ता हस्तांतरण' के समय इस तरह का विवाद महाभारत-काल या फिर उससे पहले से ही चलता आ रहा है.
हालाँकि, एक परिवार के बीच दिख रही लड़ाई पर जनता का नजरिया क्या होता है... यह तो आने वाला चुनाव ही बताएगा. हाँ! आज हरियाणा में जहाँ भाजपा एक तरह से कमजोर थी, वह पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है और कांग्रेस का तो खैर बेस इस राज्य में था थी. इन सब बातों को देखकर कहा जा सकता है कि चौटाला-परिवार की आपसी लड़ाई कहीं 'दोनों गुटों' को सत्ता से दूर ही न रख दे. वैसे भी इस पार्टी के अब तक मुख्य कर्ताधर्ता ओम प्रकाश चौटाला जेल में 'वनवास' काट रहे हैं. दोनों गुट अपने-अपने तरीके से जनता और ओम प्रकाश चौटाला का समर्थन अपने साथ होने का दावा कर रहे हैं, किन्तु हकीकत तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगी.
हाँ! ताऊ देवी लाल की विरासत पर लड़ रहे 'दुष्यंत' कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर रहे हैं या फिर दुष्यंत की लोकप्रियता को उनके चाचा 'अभय' द्वारा पचाने में कहीं दिक्कत तो नहीं आ रही है... यह बात अवश्य ही समझने वाली है.
हालाँकि, अगर 'इतनी बात' समझ आ जाए तो फिर 'रार' हो ही किसलिए?
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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