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2019 का लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुका है और इस चुनाव में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सरकार गठन की ओर बढ़ चुकी है. कई सारे आंकलनों में नरेंद्र मोदी की भारी जीत का कई तार्किक/ अतार्किक पक्ष ढूंढा गया और महीनों तक ढूँढा जाता रहेगा!
किसी ने जातीय समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग को इस विशाल बहुमत का कारण बताया तो किसी ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को इसकी जड़ बता डाला. किसी ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक को इसका श्रेय दिया तो किसी ने अमित शाह की संगठनात्मक क्षमता को इससे जोड़ा. इसी प्रकार से इकॉनमी, प्रधानमंत्री की मेहनत, विपक्ष की कमजोरी सहित तमाम केंद्रीय मुद्दों और सैकड़ों, हज़ारों स्थानीय मुद्दों को गिनाया जा सकता है.
पर क्या वाकई इन सभी मुद्दों को मिलाकर यह बड़ी जीत संभव है. आप जवाब दें इससे पहले आपको बता दें कि भारत की आजादी के तकरीबन 70 साल बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरी बार इतने विशाल बहुमत के सहारे सत्ता में अपने दम पर आए हैं.
सच कहा जाए तो इतने विशाल बहुमत और उसके पीछे के कारणों को समझने के लिए आपको अपना हृदय और मस्तिष्क उसी अनुपात में विशाल करना होगा. निश्चित रूप से आप संकुचित दृष्टि से, एकपक्षीय नजरिये से इसे समझने में सफल नहीं होंगे.
भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत राजनीतिक आधार देने वाले और उसे पार्टी लाइन से हटकर बाहरी दुनिया में स्वीकार्य बनाने वाले अटल बिहारी बाजपेई इस संदर्भ में कहते हैं कि-
निश्चित रूप से यह जीत छोटे मुद्दों के आधार पर, संकुचित निर्णयों के आधार पर मिली जीत नहीं है बल्कि यह उससे कहीं ज्यादा संदेश देती है. यह संदेश क्या है इस पर आगे जाने से पहले अपना एक व्यक्तिगत अनुभव आप सबके साथ शेयर करना चाहूंगा.
अपनी कॉलेज की पढ़ाई के बाद बिजनेस करने का विचार मेरे मन में आया और तत्पश्चात मैंने एक कंपनी बना ली. तमाम स्टार्टअप्स की तरह मैं भी बड़े बड़े सपने देखने लगा और कंपनी शुरू हो गई. तब मेरे पास कुछ ख़ास विजन नहीं था. कंपनी का मतलब तब सिर्फ इतना ही पता था कि उसमें ढेर सारे एम्प्लोयी होते हैं, बॉस की चेयर होती है और आपकी बात सभी सुनते हैं.
आप हंस सकते हैं, किन्तु वास्तव में मुझे तब पता नहीं था कि कंपनी का मतलब बैलेंस-शीट और प्रॉफिट होता है. अगर पता था भी तो मस्तिष्क की ऊपरी परत तक ही था, गहरे तक मैं अहसास नहीं कर पाया था और यही कारण था कि कंपनी चलाने के बावजूद उसमें एक 'उद्देश्यहीनता' की स्थिति थी.
कंपनी कुछ समय तक चली भी किंतु उसके बाद लगातार घाटे में चलती चली गई ऐसा तमाम स्टार्टअप्स के साथ होता है.
इस बात को सीधे तौर पर हम अगर 2019 के जनरल इलेक्शन-रिजल्ट से को-रिलेट करें तो विपक्षी हार का अक्श उपरोक्त उदाहरण में नजर आएगा.
क्या वास्तव में यही वस्तुस्थिति राजनीति में नहीं है?
राजनीति आखिर राजनेता क्यों करते हैं या फिर उन्हें क्यों करना चाहिए?
सीधा सा आपको उत्तर मिलेगा कि इसमें जनता की भलाई के लिए, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए, लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने के लिए राजनीति की जाती है, लोगों के बीच छोटी-बड़ी समस्याओं के हल के लिए उम्मीद जगाने हेतु ही की जाती है न?
किंतु क्या यह वाकई हुआ है अथवा होने की उम्मीद नज़र आयी है?
सच कहें तो पिछले 70 सालों के दौरान अधिकांश राजनेता किसी असफल स्टार्टअप्स की तरह ही 'राजनीति के प्रोसेस' में उलझ कर रह गए हैं, उसके असल उद्देश्य, उसके आउटपुट से तो जैसे उन्हें कोई मतलब ही नहीं रहा है.
खासकर कांग्रेस की बात करें तो उसके लिए राजनीति का मतलब बेहद 'संकुचित' रहा है!
निश्चित रूप से गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूम रही कांग्रेसी राजनीति लोगों की 'राजनीतिक उम्मीदों' को ख़त्म करने के लिए जानी जाएगी. आज अगर देश के पास पिछले पांच सालों सहित, अगले पांच सालों तक आधिकारिक 'नेता-प्रतिपक्ष' तक नहीं है तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी की 'उम्मीदों को समाप्त' करने की राजनीति ही जिम्मेदार मानी जाएगी.
क्या देश की जनता के पास वाकई कांग्रेस को लेकर कोई 'उम्मीद' बची है, यह वह प्रश्न है, जिसमें 2019 के विशाल जनादेश का उत्तर छिपा हुआ है.
ज़रुरत है तो बस इसे समझने की!
रही बात नरेंद्र मोदी की तो, मोदी निश्चित रूप से 5 साल में कोई बहुत बड़े बदलाव ला पाए हैं या नहीं ला पाए हैं, यह चर्चा का विषय हो सकता है, किंतु उन्होंने 'उम्मीद की किरण' दिखलाई है, इस बात से शायद ही कोई इनकार कर सकता है.
यह उम्मीद की किरण केवल एक दिशा में नहीं है, बल्कि यह उम्मीद बहुआयामी है. यह उम्मीद की किरण जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर सबका साथ सबका विकास और सब का विश्वास हासिल करने से संबंधित है. आखिर, 2019 में चुनावी विजय मिलने के बाद जो पहला ट्वीट पीएम ने किया वह यही तो है!
यह उम्मीद औरतों के अधिकार मिलने की भी है. जिस प्रकार से उन्होंने तीन तलाक को लेकर बिना किसी राजनीतिक प्रतिक्रिया की परवाह किए खुद की नीतियों को आगे बढ़ाया उसने मुस्लिम समुदाय की महिलाओं सहित तमाम दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित किया.
केवल तीन तलाक का मुद्दा ही क्यों, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से लेकर उज्जवला योजना में फ्री गैस कनेक्शन देकर नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के सन्दर्भ में बदलाव की एक लहर पैदा की. आखिर इसे उम्मीद नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भी एक मजबूत उम्मीद पैदा की. कहने को तमाम लोग यह कह सकते हैं कि पाकिस्तान में बालाकोट पर अटैक करके या उससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक करके नरेंद्र मोदी ने गलत डिसीजन लिया था. उनकी आलोचना यह कहकर भी की जा सकती है कि यह कोई बहुत प्रभावी डिसीजन नहीं था, लेकिन असल बाद उम्मीद की है!
और वह उम्मीद यह है कि आतंकवाद का मुकाबला ढुलमुल तरीके से नहीं किया जायेगा. हर कोई जानता है कि आतंकवाद पर विजय पाना इतना आसान नहीं है, यह बात अमेरिका भी जानता है और उसने पाकिस्तान पर एक तरह से अटैक करके ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतारा भी था, लेकिन क्या इससे आतंकवाद की समस्या निपट गई?
नरेंद्र मोदी ने इकोनामी को लेकर भी बेहतर उम्मीद जगाई. नोटबंदी और जीएसटी के उनके फैसलों को लाख क्रिटिसाइज किया जाए, किंतु इस बात में एक उम्मीद तो नजर आती ही है कि वह इकॉनमी को बेहतर करना चाहते हैं. कई योजनाएं फेल भी हुईं, लेकिन उसी जोशो खरोश के साथ कई दूसरी योजनाएं भी सामने आईं. 2019 के चुनाव परिणाम के दिन रूझानों के साथ ही स्टॉक मार्किट जैसे खुशियों के गोते लगा रहा था और यह 'उम्मीद' ही तो है?
खास बात यह है कि नरेंद्र मोदी 'राजनीतिक प्रोसेस' में फंसने की बजाय, उसके मुख्य उद्देश्य को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते रहे, लगातार!
अगर यकीन न आये तो आप गौर कीजिए उनके बयानों और उनके लिए गए एक्शन को.
पिछले दिनों यह आंकड़ा आया कि 2019 का लोकसभा चुनाव भारत में अब तक सबसे खर्चीला चुनाव है. जरा सोचिए! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कितनी बार सीरियस वकालत करी इस बात की, कि देश में तमाम चुनाव एक साथ होने चाहिए. वह कई बार सीरियस मंचों से इस बात का आह्वान करते रहे कि चुनाव सुधार होना चाहिए.
क्या यह राजनीतिक प्रोसेस में बिना फंसे उसके मूल उद्देश्य की तरफ बढ़ने का संकेत नहीं था?
इसी तरह से नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक दिन एक कानून खत्म करने की बात कही और तमाम कानूनों को खत्म भी किया गया. क्या यह राजनीतिक प्रोसेस की उलझन को दूर करने का एक्शन नहीं था?
आतंकवाद पर भी उन्होंने ठोस एक्शन लिया और इसका अहसास मुझे तब हुआ जब विदेश से आये मेरे एक मित्र ने 'इंडियन वीजा' मिलने के प्रोसेस को मेरे साथ साझा किया. उसने मुझे बताया कि अब अगर कोई इंडियन वीजा मांगता है तो उसमें एक कॉलम उसे भरना पड़ता है, जिसमें लिखा होता है कि 'क्या उसने कभी पाकिस्तान की यात्रा की है?'
जो इसकी बारीकियों को नहीं जानता है, उन्हें यह बात शायद उतनी गंभीर न लगे, किन्तु आपको बता दें कि पहले अमेरिकन या यूरोपियन वीजा में ही यह प्रोसेस था.
इसके अतिरिक्त चीन तक को अज़हर मसूद पर अपना रूख बदलना पड़ा और इन संकेतों को अगर आप हल्के में ले रहे है तो यह आपकी प्रॉब्लम है.
निश्चित तौर पर यह बड़ी उम्मीदों का चुनाव था और जब कभी आप अपने एंड यूजर को, अपने ऑडियंस को यह संदेश देने में सफल रहेंगे कि आप बदलाव के वाहक हैं, आप उम्मीद जगा सकते हैं, आप उम्मीदों का भार सहन कर सकते हैं तो आपका एंड यूजर, आपकी जनता आपको निश्चित रूप से एंटरटेन करेगी.
बाकी तमाम छोटे-बड़े मुद्दे भी सहयोग करते ही हैं, किंतु बड़ी बात होती है विश्वास की और अगर विश्वास होता है तो आपके सामने तमाम बड़ी चुनौतियां छोटी पड़ जाती हैं. पर हाँ, यह उम्मीद 'खोखली' नहीं होती है और 'उम्मीदों पर खरा' उतरने की जवाबदेही भी खुद ही उठानी पड़ती है.
पर अभी बात परिणामों की है, तो 2019 का लोकसभा चुनाव और उसका परिणाम यही बात मजबूती के साथ कहता है कि 2014 में जो 'उम्मीद' जगी थी वह 2019 में बरकरार भी है.
जनता ने छोटे नहीं, बल्कि 'विशाल हृदय के साथ विशाल जनादेश' दिया है और इसीलिए महान भारतीय लोकतंत्र में इस महान सन्देश को हर छोटे-बड़े द्वारा आत्मसात करना चाहिए.
बगैर... किन्तु, परन्तु के!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
2019 का लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुका है और इस चुनाव में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सरकार गठन की ओर बढ़ चुकी है. कई सारे आंकलनों में नरेंद्र मोदी की भारी जीत का कई तार्किक/ अतार्किक पक्ष ढूंढा गया और महीनों तक ढूँढा जाता रहेगा!
किसी ने जातीय समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग को इस विशाल बहुमत का कारण बताया तो किसी ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को इसकी जड़ बता डाला. किसी ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक को इसका श्रेय दिया तो किसी ने अमित शाह की संगठनात्मक क्षमता को इससे जोड़ा. इसी प्रकार से इकॉनमी, प्रधानमंत्री की मेहनत, विपक्ष की कमजोरी सहित तमाम केंद्रीय मुद्दों और सैकड़ों, हज़ारों स्थानीय मुद्दों को गिनाया जा सकता है.
पर क्या वाकई इन सभी मुद्दों को मिलाकर यह बड़ी जीत संभव है. आप जवाब दें इससे पहले आपको बता दें कि भारत की आजादी के तकरीबन 70 साल बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरी बार इतने विशाल बहुमत के सहारे सत्ता में अपने दम पर आए हैं.
सच कहा जाए तो इतने विशाल बहुमत और उसके पीछे के कारणों को समझने के लिए आपको अपना हृदय और मस्तिष्क उसी अनुपात में विशाल करना होगा. निश्चित रूप से आप संकुचित दृष्टि से, एकपक्षीय नजरिये से इसे समझने में सफल नहीं होंगे.
PM Modi's Great Victory, because of their great Vision |
भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत राजनीतिक आधार देने वाले और उसे पार्टी लाइन से हटकर बाहरी दुनिया में स्वीकार्य बनाने वाले अटल बिहारी बाजपेई इस संदर्भ में कहते हैं कि-
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
निश्चित रूप से यह जीत छोटे मुद्दों के आधार पर, संकुचित निर्णयों के आधार पर मिली जीत नहीं है बल्कि यह उससे कहीं ज्यादा संदेश देती है. यह संदेश क्या है इस पर आगे जाने से पहले अपना एक व्यक्तिगत अनुभव आप सबके साथ शेयर करना चाहूंगा.
अपनी कॉलेज की पढ़ाई के बाद बिजनेस करने का विचार मेरे मन में आया और तत्पश्चात मैंने एक कंपनी बना ली. तमाम स्टार्टअप्स की तरह मैं भी बड़े बड़े सपने देखने लगा और कंपनी शुरू हो गई. तब मेरे पास कुछ ख़ास विजन नहीं था. कंपनी का मतलब तब सिर्फ इतना ही पता था कि उसमें ढेर सारे एम्प्लोयी होते हैं, बॉस की चेयर होती है और आपकी बात सभी सुनते हैं.
2019 Election Result, BJP+, Congress+ and Others |
आप हंस सकते हैं, किन्तु वास्तव में मुझे तब पता नहीं था कि कंपनी का मतलब बैलेंस-शीट और प्रॉफिट होता है. अगर पता था भी तो मस्तिष्क की ऊपरी परत तक ही था, गहरे तक मैं अहसास नहीं कर पाया था और यही कारण था कि कंपनी चलाने के बावजूद उसमें एक 'उद्देश्यहीनता' की स्थिति थी.
कंपनी कुछ समय तक चली भी किंतु उसके बाद लगातार घाटे में चलती चली गई ऐसा तमाम स्टार्टअप्स के साथ होता है.
उस वक्त मुझे समझ नहीं आया था लेकिन बाद के दिनों में मैंने एनालाइज किया कि तब मैं कंपनी चलाने के प्रोसेस में इतना ज्यादा उलझ गया था कि मुझे कंपनी चलाने के असली उद्देश्य से भटक जाना पड़ा.
इस बात को सीधे तौर पर हम अगर 2019 के जनरल इलेक्शन-रिजल्ट से को-रिलेट करें तो विपक्षी हार का अक्श उपरोक्त उदाहरण में नजर आएगा.
क्या वास्तव में यही वस्तुस्थिति राजनीति में नहीं है?
राजनीति आखिर राजनेता क्यों करते हैं या फिर उन्हें क्यों करना चाहिए?
सीधा सा आपको उत्तर मिलेगा कि इसमें जनता की भलाई के लिए, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए, लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने के लिए राजनीति की जाती है, लोगों के बीच छोटी-बड़ी समस्याओं के हल के लिए उम्मीद जगाने हेतु ही की जाती है न?
किंतु क्या यह वाकई हुआ है अथवा होने की उम्मीद नज़र आयी है?
Rahul Gandhi Accepts Defeat as Congress President and as a Candidate from Amethi too. |
सच कहें तो पिछले 70 सालों के दौरान अधिकांश राजनेता किसी असफल स्टार्टअप्स की तरह ही 'राजनीति के प्रोसेस' में उलझ कर रह गए हैं, उसके असल उद्देश्य, उसके आउटपुट से तो जैसे उन्हें कोई मतलब ही नहीं रहा है.
खासकर कांग्रेस की बात करें तो उसके लिए राजनीति का मतलब बेहद 'संकुचित' रहा है!
निश्चित रूप से गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूम रही कांग्रेसी राजनीति लोगों की 'राजनीतिक उम्मीदों' को ख़त्म करने के लिए जानी जाएगी. आज अगर देश के पास पिछले पांच सालों सहित, अगले पांच सालों तक आधिकारिक 'नेता-प्रतिपक्ष' तक नहीं है तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी की 'उम्मीदों को समाप्त' करने की राजनीति ही जिम्मेदार मानी जाएगी.
सीताराम केसरी, जो कांग्रेस के चर्चित अध्यक्ष रहे हैं, उन्हें परिणाम न देने पर धक्के मारकर कांग्रेस मुख्यालय से बाहर निकालने वाली कांग्रेस क्या 'राहुल गाँधी' को 'इस्तीफा' देने तक के लिए मना पायेगी?
क्या देश की जनता के पास वाकई कांग्रेस को लेकर कोई 'उम्मीद' बची है, यह वह प्रश्न है, जिसमें 2019 के विशाल जनादेश का उत्तर छिपा हुआ है.
ज़रुरत है तो बस इसे समझने की!
रही बात नरेंद्र मोदी की तो, मोदी निश्चित रूप से 5 साल में कोई बहुत बड़े बदलाव ला पाए हैं या नहीं ला पाए हैं, यह चर्चा का विषय हो सकता है, किंतु उन्होंने 'उम्मीद की किरण' दिखलाई है, इस बात से शायद ही कोई इनकार कर सकता है.
यह उम्मीद की किरण केवल एक दिशा में नहीं है, बल्कि यह उम्मीद बहुआयामी है. यह उम्मीद की किरण जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर सबका साथ सबका विकास और सब का विश्वास हासिल करने से संबंधित है. आखिर, 2019 में चुनावी विजय मिलने के बाद जो पहला ट्वीट पीएम ने किया वह यही तो है!
सबका साथ + सबका विकास + सबका विश्वास = विजयी भारत— Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) May 23, 2019
Together we grow.
Together we prosper.
Together we will build a strong and inclusive India.
India wins yet again! #VijayiBharat
यह उम्मीद औरतों के अधिकार मिलने की भी है. जिस प्रकार से उन्होंने तीन तलाक को लेकर बिना किसी राजनीतिक प्रतिक्रिया की परवाह किए खुद की नीतियों को आगे बढ़ाया उसने मुस्लिम समुदाय की महिलाओं सहित तमाम दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित किया.
केवल तीन तलाक का मुद्दा ही क्यों, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से लेकर उज्जवला योजना में फ्री गैस कनेक्शन देकर नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के सन्दर्भ में बदलाव की एक लहर पैदा की. आखिर इसे उम्मीद नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भी एक मजबूत उम्मीद पैदा की. कहने को तमाम लोग यह कह सकते हैं कि पाकिस्तान में बालाकोट पर अटैक करके या उससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक करके नरेंद्र मोदी ने गलत डिसीजन लिया था. उनकी आलोचना यह कहकर भी की जा सकती है कि यह कोई बहुत प्रभावी डिसीजन नहीं था, लेकिन असल बाद उम्मीद की है!
और वह उम्मीद यह है कि आतंकवाद का मुकाबला ढुलमुल तरीके से नहीं किया जायेगा. हर कोई जानता है कि आतंकवाद पर विजय पाना इतना आसान नहीं है, यह बात अमेरिका भी जानता है और उसने पाकिस्तान पर एक तरह से अटैक करके ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतारा भी था, लेकिन क्या इससे आतंकवाद की समस्या निपट गई?
जब सुपर पावर अमेरिका एक झटके में किसी समस्या को निपटा नहीं सकता तो फिर भारत तो कई स्तरों पर काफी पीछे है, लेकिन असल बात समस्या से निपटने की उम्मीद जगाने की है और वह नरेंद्र मोदी ने जगाया, बिना किसी तुष्टीकरण के, बिना बैकफुट पर आए!
नरेंद्र मोदी ने इकोनामी को लेकर भी बेहतर उम्मीद जगाई. नोटबंदी और जीएसटी के उनके फैसलों को लाख क्रिटिसाइज किया जाए, किंतु इस बात में एक उम्मीद तो नजर आती ही है कि वह इकॉनमी को बेहतर करना चाहते हैं. कई योजनाएं फेल भी हुईं, लेकिन उसी जोशो खरोश के साथ कई दूसरी योजनाएं भी सामने आईं. 2019 के चुनाव परिणाम के दिन रूझानों के साथ ही स्टॉक मार्किट जैसे खुशियों के गोते लगा रहा था और यह 'उम्मीद' ही तो है?
Uttar Pradesh plays great role again in 2019 General Election |
खास बात यह है कि नरेंद्र मोदी 'राजनीतिक प्रोसेस' में फंसने की बजाय, उसके मुख्य उद्देश्य को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते रहे, लगातार!
अगर यकीन न आये तो आप गौर कीजिए उनके बयानों और उनके लिए गए एक्शन को.
पिछले दिनों यह आंकड़ा आया कि 2019 का लोकसभा चुनाव भारत में अब तक सबसे खर्चीला चुनाव है. जरा सोचिए! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कितनी बार सीरियस वकालत करी इस बात की, कि देश में तमाम चुनाव एक साथ होने चाहिए. वह कई बार सीरियस मंचों से इस बात का आह्वान करते रहे कि चुनाव सुधार होना चाहिए.
क्या यह राजनीतिक प्रोसेस में बिना फंसे उसके मूल उद्देश्य की तरफ बढ़ने का संकेत नहीं था?
इसी तरह से नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक दिन एक कानून खत्म करने की बात कही और तमाम कानूनों को खत्म भी किया गया. क्या यह राजनीतिक प्रोसेस की उलझन को दूर करने का एक्शन नहीं था?
आतंकवाद पर भी उन्होंने ठोस एक्शन लिया और इसका अहसास मुझे तब हुआ जब विदेश से आये मेरे एक मित्र ने 'इंडियन वीजा' मिलने के प्रोसेस को मेरे साथ साझा किया. उसने मुझे बताया कि अब अगर कोई इंडियन वीजा मांगता है तो उसमें एक कॉलम उसे भरना पड़ता है, जिसमें लिखा होता है कि 'क्या उसने कभी पाकिस्तान की यात्रा की है?'
जो इसकी बारीकियों को नहीं जानता है, उन्हें यह बात शायद उतनी गंभीर न लगे, किन्तु आपको बता दें कि पहले अमेरिकन या यूरोपियन वीजा में ही यह प्रोसेस था.
इसके अतिरिक्त चीन तक को अज़हर मसूद पर अपना रूख बदलना पड़ा और इन संकेतों को अगर आप हल्के में ले रहे है तो यह आपकी प्रॉब्लम है.
निश्चित रूप से जटिल राजनीतिक, कूटनीतिक उलझनों के बीच से जगह निकालते हुए इस नरेंद्र मोदी नाम के व्यक्ति ने 'उम्मीदें' जगाई है और एक हद तक ही सही, आउटपुट भी दिया है. संभवतः यही वह बड़ी वजह है, जिसे प्रत्येक राजनेता को समझना चाहिए.
निश्चित तौर पर यह बड़ी उम्मीदों का चुनाव था और जब कभी आप अपने एंड यूजर को, अपने ऑडियंस को यह संदेश देने में सफल रहेंगे कि आप बदलाव के वाहक हैं, आप उम्मीद जगा सकते हैं, आप उम्मीदों का भार सहन कर सकते हैं तो आपका एंड यूजर, आपकी जनता आपको निश्चित रूप से एंटरटेन करेगी.
2019, General Election Results means a lot! |
बाकी तमाम छोटे-बड़े मुद्दे भी सहयोग करते ही हैं, किंतु बड़ी बात होती है विश्वास की और अगर विश्वास होता है तो आपके सामने तमाम बड़ी चुनौतियां छोटी पड़ जाती हैं. पर हाँ, यह उम्मीद 'खोखली' नहीं होती है और 'उम्मीदों पर खरा' उतरने की जवाबदेही भी खुद ही उठानी पड़ती है.
पर अभी बात परिणामों की है, तो 2019 का लोकसभा चुनाव और उसका परिणाम यही बात मजबूती के साथ कहता है कि 2014 में जो 'उम्मीद' जगी थी वह 2019 में बरकरार भी है.
जनता ने छोटे नहीं, बल्कि 'विशाल हृदय के साथ विशाल जनादेश' दिया है और इसीलिए महान भारतीय लोकतंत्र में इस महान सन्देश को हर छोटे-बड़े द्वारा आत्मसात करना चाहिए.
बगैर... किन्तु, परन्तु के!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
Web Title: The facts behind big Victory of Narendra Modi in 2019, Hindi Article
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Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, समाज से प्राप्त अनुभव, प्रिंट मीडिया, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि रह गयी हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
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