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सभ्यता का ज्ञान - Human Civilization, Poem in Hindi


कुत्ते लड़ रहे थे
रात को
शहर के कुत्ते
दूर से दौड़ कर आये
वे गलियों के कुत्ते
और हो गए गुत्थमगुत्था
गुट बनाकर



कुछ दुबले थे
कुछ मोटे
कुछ वरिष्ठ थे
तो कुछ छोटे
कुछ भौंक कर
कुछ मिमियाकर
नोच रहे थे एक दुसरे को
खिसिया कर, गुर्रा कर


मुझे लगा इनमें से कोई
लगाएगा कॉल
बुलाएगा पीसीआर
तब सुलझेगा बवाल
पर ऐसा कुछ न हुआ
उनका झमेला आप सलट गया
रात के अँधेरे में शोर सिमट गया



अपनी गलियों में
लौटने लगे सब
मैंने सोचा तब
ये कुत्ते सभ्य नहीं बने अभी
जैसे हैं इंसान
आखिर कुत्ते की टेढ़ी दूम हैं
उन्हें क्यों होगा भला
सभ्यता का ज्ञान ।।

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.



Human Civilization, Poem in Hindi.

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