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आक्रोश - Short Story in Hindi, Anger, Social


तू इस डब्बे में चढ़ कैसे गया, दिखा नहीं यह लेडीज कोच है.
मैडम, पिछले स्टेशन पर लोकल जल्दी चल पड़ी, मेरी मम्मी मेरे साथ हैं.
तू इसकी माँ है, तुझे दिखा नहीं इस डब्बे में आदमी नहीं हैं? उसने बदतमीजी के लहजे में कहा!
18 साल का राहुल अपनी माँ के साथ दिल्ली से फरीदाबाद लोकल में जा रहा था. त्यौहार के मौसम में काफी भीड़ थी. लेडीज-डब्बे में चढ़ने की थोड़ी बहुत गुंजाइश थी, सामान्य डब्बों में तो भेड़ और बकरियों के झुण्ड भी मात खा रहे थे. अपनी माँ को लेडीज डब्बे में चढ़ाते-चढ़ाते ट्रेन खुल गयी. लोकल ट्रेन तुरंत रफ़्तार पकड़ने लगी, तो वह उसी डब्बे में चढ़ गया.
लेडीज-डब्बे में कई औरतों का पारा चढ़ते देख वह सर झुकाये खड़ा था कि उनमें से एक महिला लड़ने पर उतारू हो गयी.
मैडम, जरा ठीक से बात कीजिये, अगले स्टेशन पर मैं उतर जाऊंगा! अपनी माँ का अपमान होते देख राहुल भी कड़ा हो गया.
अच्छा, तो तू छेड़खानी पर उतर आया. एक तो लेडीज-डब्बे में चढ़ा है, उस पर औरतों को छेड़ रहा है, अभी पुलिस बुलाती हूँ.
राहुल सन्न रह गया!
कुछ शर्म करो, इस लड़के से दोगुनी उम्र की होकर भी खुलेआम झूठ बोलती हो.
मामला बिगड़ते देख, उसकी मम्मी ने मोर्चा संभाला!
गरमागरम बहस गली-गलौज में बदल गयी और शायद हाथापाई की ओर बढ़ती तब तक अगला स्टेशन आ गया.
शोर होते देख पुलिस हवलदार डिब्बे में घुसा और तीनों को स्टेशन स्थित चौकी ले गया.
वह औरत वहां जाकर ज़ार- ज़ार रोने लगी और राहुल पर छेड़खानी का आरोप लगाकर रिपोर्ट लिखने की ज़िद्द करने लगी.
राहुल की माँ पुलिसवाले से असलियत बताती रही, किन्तु पुलिसवाले खामोश बैठे थे.
मैं अभी पत्रकारों को बुलाऊंगी और बताउंगी कि पुलिस छेड़छाड़ की रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही है. वह औरत अपने सारे दांव-पेंच इस्तेमाल करती जा रही थी.
तभी पुलिसवाला राहुल और उसकी मम्मी को एक तरफ ले गया और बोला- बहनजी! इस लोकल ट्रेन में इस तरह की स्थिति रोज आती है. ऐसी महिलाएं घर और ऑफिस से खार खाए लड़ने को तैयार रहती हैं. मैं जानता हूँ कि वह सरासर झूठ बोल रही है.
फिर वह राहुल की तरफ देख कर बोला- बेटे, उससे माफ़ी मांग ले, नहीं तो हमें मजबूरन रिपोर्ट बनानी पड़ेगी.
पर किस बात की माफ़ी? राहुल के माथे पर आश्चर्य-मिश्रित क्रोध था.
बेटा स्थिति को समझ, शक्ल से पढ़ने लिखने वाला लगता है.
सॉरी! राहुल ने मन मसोसकर कहा.
सॉरी से काम नहीं चलेगा, इसके खिलाफ रिपोर्ट लिखो और इसे अंदर करो.
अब राहुल की माँ गुस्से में बोली, जी हाँ! राहुल को अंदर करो, और उसके साथ-साथ इसको भी अंदर करो, इसने मेरी चेन चुराई है.
चौकी इंचार्ज ने भी राहुल की माँ का साथ देते हुए कहा कि अब तो तीनों अंदर होंगे, तीनों पर केस बनेगा!
मुझ पर क्यों? तुरंत ही उस औरत का स्वर बदल गया?
नहीं मुझे केस नहीं बनाना, इसे माफ़ किया.
राहुल अपनी माँ को मन ही मन धन्यवाद देते हुए वह सोच रहा था कि यदि आज वह साथ नहीं होती तो रात शायद पुलिस चौकी में ही गुजारनी पड़ती. राहुल के जीवन में महिला का इस प्रकार के बेवजह 'आक्रोश' से पहली बार पाला पड़ा था और बहुत सोचने पर भी महिलाओं के इस बदलते व्यवहार को वह समझ नहीं पाया.

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'.




Short Story in Hindi, Anger, Social (Image Courtesy: IndianExpress.com)

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