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रेल सुधार - Short Story on Indian Railways




छठ-पूजा में गाँव गए सर्वेश और उसके साथियों का रिटर्निंग-टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो उनके घरवाले परेशान हो गए. 'मरता क्या न करता' की तर्ज पर उनको वापस लौटना ही था, क्योंकि छठ-पूजा के तुरंत बाद उनके सेमेस्टर एग्जाम जो थे. मजबूरन उन्हें वेटिंग-टिकट के सहारे ही स्लीपर में चढ़ना पड़ा. सभी दोस्त इंजीनियरिंग के छात्र थे और टीनएज में व्यवस्था के लिए तमाम सुझाव होते ही हैं. संयोगवश, साइड-बर्थ का एक यात्री नहीं आया था तो ट्रेन खुलने के साथ ही रेलवे में सुधार को लेकर उनकी डिबेट भी आगे बढ़ती गयी.
यार, ये अंग्रेजों के ज़माने की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे है रेलवे वाले, इसीलिए तमाम यात्री असुविधा के शिकार हैं!
सर्वेश ने अपनी बात रखी तो अमित ने भी तर्क रखा कि 'यात्रियों की बढ़ती संख्या से तो टेक्नोलॉजी ही निबट सकती है, मसलन डिब्बों को लोहे की बजाय फाइबर जैसे हल्के और मजबूत मैटीरियल से बनाकर डबल-डेकर टाइप कर दिया जाय. तब वर्तमान इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही डिब्बों की संख्या भी बढ़ सकती है!
सिर्फ रेलवे ही यात्रियों का बोझ नहीं उठा सकती है, बल्कि हवाई यातायात को सस्ता करना और सड़क-यातायात को अपग्रेड करना भी एक बढ़िया विकल्प हो सकता है और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस सम्बन्ध में कदम उठाने की सिफारिश भी की है! राजीव ने अपना पक्ष रखा.

भई! रेलवे जब तक नयी पटरियां नहीं बिछाएगा, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसी व्यवस्था जब तक परवान नहीं चढ़ेंगी तब तक समस्या का हल मुश्किल है. इसीलिए भूमि-अधिग्रहण किया जा रहा है, किन्तु राजनीति कुछ करने दे तब तो... ! ऊपर से तमाम रेल-मंत्री इसे चुनाव जीतने का हथियार बनाकर रखते हैं. युवा जब तक आंदोलन नहीं करेंगे, तब तक कुछ ठोस होना मुश्किल दिखता है. कमलेश ने मजबूती से अपनी बात रखी. इसके साथ बुलेट-ट्रेन प्रोजेक्ट भी एक महत्वपूर्ण कदम है दोस्तों! इसके अलावा कम दूरी की ट्रेनों में स्लीपर-कोचेज की बजाय, चेयर-कोच बढ़िया विकल्प हैं!
उनकी चर्चा आगे भी चलती, तब तक टिकट-निरीक्षक महोदय उनकी सीट के पास आ गए थे...
टिकट दिखाइए आप लोग !
सर, हम चार का वेटिंग है... अगर आप कहीं सीट दिला देते तो ... !! एक सीट तो यही खाली है... बाहर चार्ट में जो नाम है, वह चढ़े नहीं है ... प्लीज देख लीजिये!
अरे, ऐसे थोड़ी न होता है, देखते हैं आप लोगों की कुछ व्यवस्था हो सके तो ... टीटी महोदय ने तेवर बदला और आगे बढ़ गए.
घूम-फिरकर आएगा अभी, इस खाली सीट का जो ज्यादा देगा उसे अलॉट कर देगा... राजीव फुसफुसाया!
इसके बाद चारों दोस्त तब तक खुसर फुसर करते रहे, जब तक टीटी महोदय पुनः वापस नहीं आ गए.
उनके आते ही सर्वेश लपका तो उन्होंने धीरे से अपनी डिमांड रख ही दी ...
सीट खाली नहीं है ट्रेन में, इसके पंद्रह सौ मिल रहे हैं ...
पंद्रह सौ ...!!

लेकिन, हम लोगों के पास तो पहले ही टिकट है ...
तो खाली कर दो इस सीट को और खड़े हो जाओ या नीचे कहीं बैठ जाओ, कई लोग लाइन में हैं ... रूखे स्वर में टीटी महोदय ने अपना फरमान सुना दिया!
कमलेश ऐसे हालातों को समझने में माहिर था... स्थिति को भांपते हुए उसने एक हज़ार में टीटी को मना लिया.
थोड़ी देर बाद राजीव ने चुटकी लेते हुए कहा कि 'हम लोग व्यर्थ ही रेलवे को सुधारने पर चर्चा कर रहे थे... देखो, तो कितनी आसानी से हमें सीट मिल गयी' ...
हाँ! भई यह तो है... इससे बढ़िया कोई दूसरा सुधार नहीं! कमलेश ने हामी भरी ...
और रात होने के बावजूद चारों ज़ोर से हंस पड़े...

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'





Short Story on Indian Railways

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