भारत में जन्मी महान विभूतियों में ऐसी अनेक महिलाएं भी हुई हैं, जिन्होंने समय-समय पर यह साबित किया कि नारी शक्ति किसी से कम नहीं है. बस अवसर मिले तो फिर वह क्या कुछ नहीं कर सकती हैं. ऐसी ही एक पुण्यात्मा का हम जिक्र करेंगे, जिन्हें हम भारत कोकिला 'सरोजिनी नायडू' के नाम से जानते हैं. सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष तो थीं हीं, साथ में उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बन कर उन्होंने इस क्षेत्र में भी अपना परचम लहराया.
मूलरूप से कवियित्री सरोजिनी नायडू को राजनीति में लाने का श्रेय इनके मित्र गोपाल कृष्ण गोखले को जाता है. उन्हीं के प्रेरणा से राजनीति में महात्मा गाँधी को अनुसरण करते हुए अपने कार्यों को पूरी ईमानदारी के साथ अंजाम दिया.
चाहे 1914 में दक्षिण अफ्रीका में भेदभाव वाली सरकार के विरुद्ध आवाज उठाना हो या 1919 में जलियांवाला हत्याकांड के बाद रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए महिलाओं को संगठित करना, सभी में भारत कोकिला आगे रहीं. 1930 का प्रसिद्ध नमक सत्याग्रह में धरासणा में लवण-पटल की पिकेटिंग करने से लेकर, किसी जनसभा को संबोधित करना हो या कहीं भाषण देना हो, सरोजिनी नायडू में आवाम को आकर्षित करने की गजब की क्षमता थी. यदि कोई एक बार भी उनका भाषण सुन लेता था, उनका प्रशंसक बन जाता था. उनकी मधुर आवाज जब जोश और उत्साह के साथ गूंजती थी, तो लोगों को आकर्षित करने के साथ-साथ उनमें सकारात्मक ऊर्जा भी भर देती थी.
Sarojini Naidu, Symbol of Women Empowerment, Hindi Article |
सक्रीय राजनीति में रहते हुए भी सरोजिनी नायडू हमेशा भारतीय नारियों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करती रही हैं. महिलाओं के प्रति होने वाले पक्षपात और उनके अधिकारों की लड़ाई के लिए वो 'अखिल भारतीय महिला परिषद' से भी जुड़ी रहीं, जहाँ उन्हें लेडी धनवती रामा राव, विजयलक्ष्मी पंडित, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, लक्ष्मी मेनन, हंसाबेन मेहता जैसी बड़ी सामाजिक कार्यकर्ताओं का साथ मिला.
सरोजिनी नायडू हमेशा कहती थीं कि 'जो हाथ पलना झुला सकता है, वो हाथ देश भी चला सकता है.' बस इन हाथों को सशक्त बनाने के लिए मूलभूत सुविधाओं की जरुरत है, जिनसे इन महिलाओं को वंचित रखा जा रहा है.
समझा जा सकता है कि आज 21वीं सदी में महिला सशक्तिकरण की बातें कही जा रही हैं, किन्तु आज़ादी के बाद ही इस क्रन्तिकारी महिला को भविष्य के इन मुद्दों की गहरी समझ थी जिसे अपने प्रयासों से उन्होंने सार्थक भी किया. उनके नारी शिक्षा की प्रबल पक्षधर होने का सुबूत इतिहास में दर्ज है, क्योंकि वो जहाँ भी सभा को संबोधित करतीं उन सभाओं में नारी शिक्षा की चर्चा करते हुए कहती थीं कि "जब एक औरत शिक्षित होगी, तभी वो समाज और परिवार को शिक्षित कर पायेगी". महिलाओं के अधिकारों के लिए ही सरोजिनी नायडू 'भारतीय नारी मुक्ति' आंदोलन से भी जुड़ीं और उनके योगदान की याद में भारतीय महिला परिषद के नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय दफ़्तर को 'सरोजिनी हाउस' के नाम से आज भी जाना जाता है.
अगर हम उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात करें तो 3 फरवरी 1879 को हैदराबाद के गांव ब्रह्मंगांव, बिक्रमपुर में जन्मी सरोजिनी नायडू के पिता 'निज़ाम कॉलेज' के संस्थापक श्री अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और माता वरदा सुन्दरी थीं. मात्र 12 वर्ष की आयु में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास कर मद्रास विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया. 13 वर्ष की उम्र में 1300 पदों की कविता 'झील की रानी' अंग्रेजी भाषा में लिखा था. सरोजिनी नायडू को हिंदी अंग्रेजी समेत पांच भाषाओं का ज्ञान था.
लंदन में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के दौरान 'एडमंड गॉस' और 'आर्थर सिमन्स' जो कि इनके अंग्रेज मित्र थे, उन्होंने इनके साहित्यिक ज्ञान को गम्भीरता से लेने की सलाह दी जिसके परिणाम स्वरुप सरोजिनी नायडू निरंतर 20 वर्षों तक लिखती रही थीं.
1903 में ही उनकी लिखी हुई कविता संग्रह 'पोयम्स' नाम से अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई थी. 1905 में 'द गोल्डन थ्रेशहोल्ड' प्रकाशित हुई, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया और जिसने उनको भारतीय और अंग्रेज़ी साहित्य जगत में एक विशेष स्थान दिलाया. इसकी समीक्षा लंदन के अखबार 'लंदन-टाइम्स' और 'द मेन्चैस्टर गार्ड्यन' में भी हुई. समझा जा सकता है कि सरोजिनी नायडू एक साहित्यकार के तौर पर भी मजबूत स्तम्भ बनी रहीं. उनकी कविता संग्रह 'बर्ड ऑफ़ टाइम' और 'ब्रोकन विंग' ने भी उन्हें कविता और साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि दिलाई.
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सरोजिनी नायडू कितनी दृढ़ निश्चय और प्रगतिवादी विचारधारा की थीं, इसी बात से समझा जा सकता है कि ऐसे समय में जब औरतों को नाममात्र के ही अधिकार प्राप्त थे, उस समय में भी उन्होंने अंतरजातीय प्रेम-विवाह करने का फैसला लिया. उस फैसले पर वह अडिग भी रहीं. उन्होंने डॉ. गोविन्दराजुलु नायडू से विवाह कर यह साबित किया कि अपने जीवन का फैसला करने का अधिकार हर महिला को होना चाहिए, लेकिन इसके लिए जरुरी है कि हर व्यक्ति अपनी योग्यता साबित करे.
आज के माहौल में भी तमाम लड़के -लड़कियां प्रेम विवाह करते हैं, लेकिन कुछ ही समय में जिम्मेदारियों से उकता जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए सरोजिनी नायडू का जीवन प्रेरणा है, जिन्होंने तमाम सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेदारियां निभाते हुए अपने वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाया.
अपना सारा जीवन देश और देशवासियों की सेवा में लगा देने वालीं सरोजिनी नायडू ने 2 मार्च सन् 1949 को अंतिम सांसे ली और अपने पीछे एक सूनापन छोड़ गयीं. महिला अधिकारों की उनसे बड़ी पैरोकार उनके समय में कोई अन्य न था, तो आज भी महिला सशक्तिकरण की मात्र बातें करने वाले उनके सामने कहीं नहीं टिकते हैं. भारत कोकिला के रूप में मशहूर रहीं सरोजिनी नायडू की जगह आज भी रिक्त है, इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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