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ओ रे किसान! Indian Farmers, Hindi Poem

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ओ रे किसान!
अधिकार की बातें तेरी बेकार है
इतना तो तू समझदार है
जो जान सके
यह मान सके
पहचान सके
कि किसकी यहाँ सरकार है

ओ रे किसान!
तेरी तरह तेरे खेत भी बेकार हैं
कौड़ी के भाव तेरी पैदावार है
फिर क्यों रोता
भटकता
आँख की रौशनी खोता
जब न तेरा कोई पैरोकार है

ओ रे किसान!
तू खेल कुछ क्रिकेट जैसा जो जानदार है
या फिर सिनेमा में जा वह भी वजनदार है
लोग देखेंगे
तालियां पीटेंगे
भारत माता की जय बोलेंगे
यही वर्तमान हिन्दुस्तान का सार है

ओ रे किसान!
ओ रे किसान!

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ' 

Indian Farmers, Hindi Poem
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी कविता.किसानो की समस्याओ का दर्पण.साधुवाद इस कविता के लिए

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  2. "किसान"
    गर किसान अन्न न उगायें
    महलों में बैठे सोना खायेंगे?
    हो रही विपक्ष में बतकही
    दूध औ अन्य पर जी एस टी
    की बडी बडी बतकहियां
    क्या देश के लोग भूखे बतायेंगे!
    माना वोट वास्ते कर रहे राजनीति
    और तो और राष्ट्र में विद्रोह मचवायेगै।
    "मंगल"को मानो न मानो मगर सभी
    गंगा जमुनी तहजीब को ही अपनाओ।(s.m.singh mob-09452309611

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