नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

'मूल्यों' की ऊंचाई से बेपरवाही



मैं उन करोड़ों भारतीय लोगों में खुद को शामिल पाता हूँ, जो लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को आधुनिक भारत के निर्माताओं  में सबसे ऊपरी पंक्ति में देखते हैं.

विकास, जो नज़ीर बन जाए... वह विकास जो मजबूत इंजीनियरिंग ढाँचे पर  पीढ़ियों तक को प्रेरित करे उसका मैं पुरजोर समर्थक हूँ और हर एक को होना चाहिए.

तीसरी बात भगवान राम से सम्बंधित है, जो कई युगों से करोड़ों, अरबों (या शायद उससे भी अधिक) लोगों के आराध्य रहे हैं, उनमें भी मेरा विश्वास अगाध है.

आप कहेंगे कि इन तीन बातों का यहाँ आखिर मतलब क्या है?

तो आइये चलते हैं पिछले कुछ दिनों से जबरदस्त ढंग से चर्चा में रही 'तीन' ख़बरों की ओर...

पहली खबर से शायद ही कोई व्यस्क भारतीय अनजान होगा और वह गुजरात में बन चुकी दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति की खबर है. सरदार वल्लभभाई पटेल की यह मूर्ति 182 मीटर ऊंची है, जो इससे पहले की सबसे ऊँची मूर्ति 'चीन की बुद्ध की मूर्ति' से भी ऊँची है. बताते चलें कि चीन की बुद्ध की मूर्ति 128 मीटर ऊँची है. तकरीबन 3 हज़ार करोड़ रुपए की लागत से बनी सरदार पटेल की मूर्ति का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्तूबर को कर चुके हैं, जिसकी चर्चा समूचे विश्व में हुई है.
इस मूर्ति को 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का नाम दिया गया है, जो समस्त भारतवंशियों के लिए गौरव का विषय है.

इसी क्रम में मैं दूसरी खबर की ओर चलता हूँ और यह ख़बर दिल्ली से जुड़ी हुई है. सरदार पटेल की मूर्ति की ही तरह इस ख़बर का भी भर-भर पेज का विज्ञापन तमाम अख़बारों में छपा.

जी हाँ! उत्तर-पूर्वी दिल्ली और उत्तरी दिल्ली को जोड़ने वाला सिग्नेचर ब्रिज जबरदस्त ढंग से चर्चा में रहा है, वह भी उद्घाटन होने से पहले से ही! तकरीबन, 1500 करोड़ से अधिक की लागत से यमुना नदी पर बनकर तैयार हुए सिग्नेचर ब्रिज का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उद्घाटन कर दिया है. पर ख़ास बात यह है कि इस ब्रिज के प्रचार-प्रसार में "एशिया का सबसे ऊँचा ब्रिज" कहकर प्रचारित किया गया है.

अब तीसरी ख़बर भगवान राम से सम्बन्धित है, बल्कि यूं कहें कि उनकी मूर्ति से... नहीं... नहीं... यह कोई साधारण मूर्ति से सम्बंधित बात नहीं है, बल्कि विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति की योजना है... संभवतः गुजरात की सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति से भी ऊँची!
ख़बरों के अनुसार, अयोध्या में सरयू नदी के तट पर भगवान राम की 151 मीटर लंबी प्रतिमा बनाने का प्रस्ताव रखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ देव दीपावली के अवसर पर इसकी घोषणा कर सकते हैं. दिलचस्प बात यह है कि आज़म खान जैसे नेता भगवान राम की इस मूर्ति की उंचाई को 182 मीटर से भी अधिक रखने की बात कह रहे हैं.

एक दृष्टि से देखने पर निश्चित तौर पर यह प्रतीत होता है कि कितनी बेहतरीन और सौहार्द्रपूर्ण कोशिशें हो रही हैं... साथ ही विकास भी तेज़ रफ़्तार से आगे की ओर अग्रसर है.

बहरहाल, इस लेख की तीसरी कड़ी में इससे जुड़ी विडंबनाओं की ओर भी दृष्टिपात कर लेते हैं, क्योंकि तब इन समस्त उद्धरणों के निहितार्थ समझने में आसानी रहेगी.

गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति के इनॉगरेशन को कांग्रेस बनाम भाजपा की लड़ाई के रूप में बेहद संकुचित ढंग से प्रचारित किया गया. यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को बयान देना पड़ा कि विपक्षी नेताओं की मानसिकता महापुरुषों का सम्मान करने की नहीं है, अन्यथा वह सरदार पटेल की मूर्ति की आलोचना न करती.

यह तो पक्ष-विपक्ष की लड़ाई हो गयी, किन्तु इससे भी दिलचस्प चर्चा रही खुद भाजपा के बड़े नेताओं की सरदार पटेल की मूर्ति के उद्घाटन से दूरी बनाने की. यहाँ तक कि भाजपा के "लौह-पुरुष" कहे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी तक को इस समारोह से दूर रखा गया या फिर उनके कद के हिसाब से उनको आना उचित नहीं लगा होगा. खैर, इतिहास इन छोटी बातों को याद करे... न करे, किन्तु वर्तमान को इन बातों से अवश्य ही फर्क पड़ता है. आखिर एक "लौह-पुरुष" की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के समय क्या जीवित "लौह-पुरुष" के सम्मान से इस अवसर की अहमियत नहीं बढ़ जाती?

अब दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज उद्घाटन की ख़बरों की पड़ताल भी कर लीजिये. इंजीनियरिंग के इस नायाब नमूने के उद्घाटन के समय हुए बवाल, मारपीट और धक्कामुक्की को लेकर एफआईआर हो चुकी है, जिसमें कोई छोटे मोटे छुटभैया नहीं, बल्कि खुद दिल्ली के सीएम, दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी के विधायक आरोपी के तौर पर नामित हैं. होड़ थी ब्रिज की ऊंचाई की क्रेडिट लेने की!

क्या वाकई 'एशिया के सबसे ऊँचे ब्रिज' से इन विवादों की ऊंचाई कम है?

वहीं चुनावी मौसम में हमेशा की तरह श्रीराम की चर्चा बड़ी ज़ोर शोर से होने लगी है और इस दरमियाँ कभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने की बात हो रही है तो कभी अध्यादेश लाकर राम-मंदिर के निर्माण की बात!

ऐसे में सोचना लाजमी हो जाता है कि क्या वाकई भगवान राम की मूर्ति की ऊंचाई के लिए तमाम संवैधानिक मूल्यों की बलि लिया जाना उचित है? या फिर ऐसे माहौल के निर्माण में सहायक तत्वों को उत्साहित करना उचित या फिर नैतिक ही है?

मूर्तियों की ऊंचाई अपनी जगह है, किन्तु 'मूल्यों' की ऊंचाई की फ़िक्र से बेपरवाही की दिशा हमें कहाँ ले जाएगी, इस बात से मुंह मोड़ना निश्चित रूप से ठीक नहीं है. आप क्या कहते हैं, कमेंट-बॉक्स में अवश्य बताएं, या फिर मुझे व्हाट्सप्प करके अपने विचार बताएं.

आप सभी को दिवाली की सपरिवार शुभकामनाएं.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

Pic Courtesy: statueofunity.in






मिथिलेश  के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें... Use any Keyword for More than 1000 Hindi Articles !!

Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त करने का प्रयत्न किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, अनुभव, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार इस वेबसाइट के संचालक मिथिलेश के पास सुरक्षित हैं. इस लेख के किसी भी हिस्से को लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को उद्धृत किए जाने पर लेख का लिंक और वेबसाइट का पूरा सन्दर्भ (www.mithilesh2020.com) अवश्य दिया जाए, अन्यथा कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.

Web Title and Keywords: Height of Values, Hindi Article for Magazine, News Papers

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ