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जुबां को 'छोटी' ही रखें 'विराट'



अगर तुम 'ऐसे' हो तो देश छोड़ दो अगर तुम वैसे हो तो देश छोड़ दो!
अगर तुम 'यह' खाते हो तो देश छोड़ दो अगर तुम 'वह' खाते हो तो देश छोड़ दो!
अगर तुम 'अलग' तरह की सोच रखते हो तो देश छोड़ दो और अगर 'किसी खास तरह की सोच से इत्तेफाक नहीं रखते' तो देश छोडकर चले जाओ!

सच कहा जाए तो देश छोड़ने की बात आज-कल इतनी कैजुअल ढंग से कही जा रही है जितना कैजुअल हम आप टॉयलेट जाते हैं. और यह बातें न केवल 'छुटभैये' बल्कि बड़ी-बड़ी सेलेब्रिटीज तक कर रही हैं, बिना इस बात के इल्म के कि यह कहने का उन्हें कोई 'हक़' नहीं है.

हाल-फिलहाल मामला विराट कोहली का है. यूं तो क्रिकेट के फैंस विराट कोहली के खेल के दीवाने हैं लेकिन जब एक फैन ने विराट कोहली को ओवररेटेड बैट्समैन कहकर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों की तारीफ की तो विराट कोहली उस पर न केवल भड़क गए बल्कि उसे देश छोड़ने की नसीहत तक दे डाली!

सोशल मीडिया पर यह बयान काफी कंट्रोवर्सी क्रिएट कर गया और खुद विराट कोहली के बारे में तमाम आलोचनाएं सामने आ गयीं. यहां तक कि बीसीसीआई के एक सीनियर अधिकारी ने विराट कोहली के बयान को बेहद गैर जिम्मेदाराना बताते हुए उन्हें सावधान रहने की सलाह भी दे डाली. ज़ाहिर है कि विराट जैसों की कमाई इन्हीं फैंस की बदौलत ही तो होती है. वैसे भी खुद विराट ऐसे कई स्टेटमेंट दे चुके हैं, जिसमें वह दूसरे देशों के खिलाड़ियों को पसंद करने की बात कहते रहे हैं!
दूसरों को देश छोड़ने की सलाह देने वाले विराट कोहली काश यह समझ पाते कि देश के सामने उनकी औकात 'तिनके' जैसी भी नहीं है और उन्हें कोई हक़ नहीं बनता यह सोचने का कि 'कौन' देश में रहेगा या किसे देश से चले जाना चाहिए...

आखिर यह कहाँ से जायज़ कहा जाएगा कि अगर विराट कोहली को कोई पसंद नहीं करता है तो उसे देश छोड़कर चले जाना चाहिए?

बहुत बार ऐसा मुमकिन हुआ है कि सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ियों के दूसरे देशों में रहे हैं या फिर खुद विराट कोहली के ही फैंस दूसरे देशों में मौजूद रहे हैं... तब तो इस आधार पर उन सभी को अपना देश छोड़कर वापस आ जाना चाहिए! आखिर ऐसी क्या मजबूरी होती है कि लोग 'बात-बात' में देश का नाम इस्तेमाल करते हैं या फिर कई बार तो उसे बदनाम भी करते हैं.

क्या खुद विराट कोहली को पता है कि उनसे पहले महेंद्र सिंह धोनी जब कप्तान थे, तब वह किस प्रकार का पब्लिक से बिहेव करते थे? साल 2013 में जब टीम इंडिया का प्रदर्शन खराब था और इसके कोच डंकन फ्लेचर पर पत्रकारों ने सवाल पूछा तो धोनी का जवाब लाजवाब था.
सवाल था कि क्या इंडिया को फ़ॉरेनर कोच की आवश्यकता है तो कैप्टन कूल ने जवाब दिया था कि 'देशी और विदेशी तो बस मुर्गे होते हैं'! समझा जा सकता है कि इस कूल तरीके का धोनी की परफॉर्मेंस और टीम की स्टेबिलिटी पर कितना फर्क पड़ा और संभवतः अपने इन्हीं गुणों के कारण महेंद्र सिंह धोनी सर्वकालिक महान इंडियन कैप्टन के रूप में इतिहास में दर्ज हो चुके हैं.

क्या वाकई विराट कोहली उनसे कुछ सीख ले सकते हैं या लेते हैं? यह ठीक है कि वह रिकॉर्ड दर रिकार्ड बनाए जा रहे हैं किंतु क्या यह कम शर्मनाक है कि आए दिन उनके बयानों से विवाद तो उत्पन्न होते ही रहते हैं, साथ ही साथ क्रिकेट की गरिमा भी गिरती है. वो क्या कहते हैं इसे... 'जेंटल मैन गेम'!
सच कहा जाए तो बदलते परिदृश्य में देश का नाम अपनी सुविधानुसार तमाम क्षेत्रों के लोग इस्तेमाल करने लगे हैं. पहले इसमें राजनेता जैसी प्रजाति ही शामिल थी, किन्तु अब आप चाहे एंटरटेनमेंट से जुड़ी हस्तियों के बयानों को देखें, या फिर नौकरशाह हों या फिर खिलाड़ी ही क्यों न हों... तमाम लोग आवेश में या फिर अपने स्वार्थ के कारण 'भारत वर्ष' को बदनाम करने में जुट गया है. विचारणीय है कि भारत को माता कहा जाता है और माता के रूप में उसकी तमाम नागरिक पूजा भी करते रहे हैं, उसको सम्मान भी देते रहे हैं, किंतु बदलते परिदृश्य में पागलपन का आलम कुछ ज्यादा ही बढ़ता चला जा रहा है और 'सम्मान' की बजाय भारत-माता का 'विराट बयानों' से अपमान किया जा रहा है.

वैसे भी विराट कोहली की परफॉर्मेंस एक बात है, किंतु विवाद तो हमेशा ही उनसे चोली दामन की तरह चिपके रहते हैं

हम सबको याद है कि अनिल कुंबले जैसे महान खिलाड़ी के साथ कोच के मुद्दे पर विराट कोहली का क्या स्टैंड रहा था और एक तरह से उनकी जिद के कारण ही अनिल कुंबले को इस्तीफा देना पड़ा. इसके अतिरिक्त आईपीएल में वह गौतम गंभीर जैसों के साथ सीधे तौर पर भिड़ चुके हैं तो कुछ खबरों के अनुसार वह पत्रकारों को मिडिल फिंगर दिखाने के मामले में भी विवादित रह चुके हैं. पिछले दिनों सफाई के मुद्दे पर 'दिखावा' करते हुए उनके द्वारा एक व्यक्ति की वीडियो-रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर उसकी पहचान उजागर करने पर भी काफी भद्द पिट चुकी है.
जाहिर तौर पर इस बात की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रचार पाने की यह 'कुत्सित' मंशा भी हो सकती है, क्योंकि जिस अवसर पर विराट कोहली ने देश छोड़ने का फरमान जारी किया, वह उनके किसी 'ऐप' की लांचिंग का समय था, जिसमें वह फैंस से इंटरैक्ट कर रहे थे.

हालाँकि, बाद में विराट ने गोलमोल सफाई देने की कोशिश अवश्य की है, ताकि सोशल मीडिया पर उनकी ट्रोलिंग रुक जाए... पर उनके 'घटिया बयान' का असर कितना 'खतरनाक' है, यह शायद वह कभी न समझ सकेंगे. और हाँ! उनके कहने, न कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हर किसी को अपनी पसंद का अधिकार है... बल्कि यह 'संविधान-प्रदत्त' अधिकार है और भारत के चिरकालिक चिंतन में यही भाव विराजमान रहा है.

अफ़सोस इस बात का है कि तमाम युवा चमक-दमक से प्रभावित होकर 'विराट कोहली' जैसों को अपना आदर्श मानने की भूल कर बैठते हैं, पर उन्हें यह समझना होगा कि 'विराट ग्लैमर' के पीछे बेहद 'संकुचित हृदय' है, जो सिर्फ स्वार्थ की भाषा जानता है. ऐसे में किसी हाल में उनके 'व्यवहार' से एक व्यक्ति को भी प्रेरित होने से बचना चाहिए और संभवतः इसी में 'भारत माता' की महिमा बची रहेगी.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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Pic Courtesy: Hindustan Times
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