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पहले के समय में पार्टी के बाहर के चुनाव रणनीतिकारों की संभवतः उतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रहती थी, जैसी अब हो गई है. प्रत्येक पार्टी इस तरह के रणनीतिकारों को अब बड़े पैमाने पर अहमियत देने लगी है. यह अहमियत कुछ डिजिटल एजेंसी के रूप में तो कुछ स्वतंत्र रणनीतिकार के रूप में दी जा रही है. इन रणनीतिकारों में प्रशांत किशोर नाम 2014 से ही भारत के राजनीतिक आकाश में चमक रहा है. प्रशांत किशोर ने जिस प्रकार एक के बाद दूसरे चुनाव में खुद को साबित किया है, उससे उनकी अहमियत लगातार बढ़ी है.
दिल्ली के चुनाव में भी जिस प्रकार आम आदमी पार्टी के साथ वह जुड़े और डिजिटल कैंपेनिंग के साथ-साथ पार्टी के मुख्य रणनीतिकारों में शामिल हुए, उसने उन्हें भारतीय चुनावी योद्धा के रूप में ज्यादा मजबूत किया है.
हालाँकि, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के जीतने की उम्मीद पहले से ही जताई जा रही थी, किन्तु बावजूद इसके उनका योगदान खुद आम आदमी पार्टी मान रही है. अगर ऐसा नहीं होता तो ठीक गिनती के पहले ईवीएम को लेकर जो सवालात उठे, उससे निपटने के लिए खुद अरविन्द केजरीवाल द्वारा पार्टी के बड़े नेताओं के साथ उनसे सलाह-मशविरा लेने की खबरें खूब फैलीं.
प्रश्न उठता है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां, पार्टी के बाहर के रणनीतिकारों को क्यों अहमियत देती है?
क्या उनके पास राजनीतिक टैलेंट-पुल की कमी है?
क्या डिजिटल-एज में राजनीतिक समझ के अलावा भी दूसरी चीजों की ज़रुरत पड़ती है?
इसका जवाब इतना जटिल भी नहीं है, बल्कि बेहद क्लियर है. बाहर का रणनीतिकार एक तो गुटबाजी से मुक्त होता है और दूसरे अपने कॉन्ट्रैक्ट के कारण वह बेहद प्रोफेशनल रवैया अख्तियार करता है. ऐसे में उसके बायस होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इसके अलावा उसके पास एक दक्ष टीम होती है जो आज के डिजिटल एज के हिसाब से बेहद आवश्यक हो गई है. आज के समय में ट्रेडिशनल रैलियों की बजाए लोग-बाग़ सोशल प्लेटफॉर्म्स पर ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं. कई रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि लोग 5 से अधिक घंटों तक विभिन्न सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अपना टाइम स्पेंड करते हैं.
ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें उस जगह पर इंगेज करें जहां वह जाते हैं.
डिजिटल स्पेशलिस्ट अपनी एक्सपर्टीज से टारगेट ऑडियंस तक अपने क्लाइंट को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं!
इसको कुछ यू समझना चाहिए...
जरा कल्पना कीजिए कि समाज का एक वर्ग काफी पढ़ा-लिखा और अमीर है, जबकि दूसरा वर्ग अपेक्षाकृत गरीब है. अब यह भी कल्पना कीजिए कि एक ही तरीके से एक ही कैंपेन या विज्ञापन से आप दोनों वर्ग को टारगेट कर सकते हैं क्या?
जाहिर तौर पर आप नहीं कर सकते हैं!
ऐसे में ऑडियंस को जो बातें दिखलानी हो, उन्हें प्रशांत किशोर जैसे एक्सपर्ट आसानी से संभव कर दिखाते हैं. उदाहरण के तौर पर उच्च वर्ग को , जो संपन्न है, फ्री बिजली और फ्री पानी जैसे कैंपेन्स नहीं लुभा सकते!
ऐसे में उनके लिए शिक्षा जैसी चीजों को प्रमोट करते हुए विज्ञापन दिखने चाहिए। इसी प्रकार जो गरीब वर्ग है, उसे शिक्षा के साथ-साथ अगर बिजली पानी फ्री जैसे कैंपेन दिखलाये जाएँ, तो वह ज्यादा प्रभावी होते हैं.
इतना ही नहीं, अलग-अलग एज ग्रुप जैसे स्टूडेंट्स के लिए, जैसे- नौकरी पेशा लोगों के लिए, व्यापारियों के लिए, इसी प्रकार से जेंडर वाइज, महिलाओं के लिए अलग कैंपेन, पुरुषों के लिए अलग कैंपेन चलाने में ये एक्सपर्ट सक्षम होते हैं. मसलन महिलाओं को सुरक्षा से संबंधित उपाय ज्यादा जरूरी लगते हैं, वहीं पुरुषों को कमाई और व्यापार में सहूलियत से संबंधित चीजें ज्यादा प्रभावशाली लगती है.
जाहिर तौर पर एक ट्रेडिशनल नेता ऐसा करने में खुद को दक्ष नहीं पाता है. चूंकि, उसकी दक्षता दूसरे कार्यों में ज्यादा होती है.
प्रशांत किशोर जैसों के उभरने के पीछे कई पार्टियों के केंद्रीकृत होने को भी एक बड़ी वजह माना जा सकता है. जैसे भाजपा लोकसभा चुनावों में सिर्फ उमीदवारों के भरोसे नहीं बैठी रहती है, बल्कि पार्टी-सुप्रीमो के तौर पर उसके पास प्रशांत किशोर जैसों को हायर करने से अलग अभियान चलाने की स्वतंत्रता मिलती है. यही हाल जदयू, जगन मोहन की पार्टी और आम आदमी पार्टी की भी है. जाहिर तौर पर एक नेता पूरी पार्टी के अभियान को प्रशांत किशोर जैसे एक्सपर्ट की सहायता से नियंत्रित कर सकता है.
आप क्या सोचते हैं पार्टी से बाहर के चुनाव रणनीतिकारों के बारे में, कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य बताएं.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
Web Title: Election Strategist Prashant Kishor Again Proved
पहले के समय में पार्टी के बाहर के चुनाव रणनीतिकारों की संभवतः उतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रहती थी, जैसी अब हो गई है. प्रत्येक पार्टी इस तरह के रणनीतिकारों को अब बड़े पैमाने पर अहमियत देने लगी है. यह अहमियत कुछ डिजिटल एजेंसी के रूप में तो कुछ स्वतंत्र रणनीतिकार के रूप में दी जा रही है. इन रणनीतिकारों में प्रशांत किशोर नाम 2014 से ही भारत के राजनीतिक आकाश में चमक रहा है. प्रशांत किशोर ने जिस प्रकार एक के बाद दूसरे चुनाव में खुद को साबित किया है, उससे उनकी अहमियत लगातार बढ़ी है.
Election Strategist Prashant Kishor Proved Again |
दिल्ली के चुनाव में भी जिस प्रकार आम आदमी पार्टी के साथ वह जुड़े और डिजिटल कैंपेनिंग के साथ-साथ पार्टी के मुख्य रणनीतिकारों में शामिल हुए, उसने उन्हें भारतीय चुनावी योद्धा के रूप में ज्यादा मजबूत किया है.
हालाँकि, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के जीतने की उम्मीद पहले से ही जताई जा रही थी, किन्तु बावजूद इसके उनका योगदान खुद आम आदमी पार्टी मान रही है. अगर ऐसा नहीं होता तो ठीक गिनती के पहले ईवीएम को लेकर जो सवालात उठे, उससे निपटने के लिए खुद अरविन्द केजरीवाल द्वारा पार्टी के बड़े नेताओं के साथ उनसे सलाह-मशविरा लेने की खबरें खूब फैलीं.
प्रश्न उठता है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां, पार्टी के बाहर के रणनीतिकारों को क्यों अहमियत देती है?
क्या उनके पास राजनीतिक टैलेंट-पुल की कमी है?
क्या डिजिटल-एज में राजनीतिक समझ के अलावा भी दूसरी चीजों की ज़रुरत पड़ती है?
इसका जवाब इतना जटिल भी नहीं है, बल्कि बेहद क्लियर है. बाहर का रणनीतिकार एक तो गुटबाजी से मुक्त होता है और दूसरे अपने कॉन्ट्रैक्ट के कारण वह बेहद प्रोफेशनल रवैया अख्तियार करता है. ऐसे में उसके बायस होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इसके अलावा उसके पास एक दक्ष टीम होती है जो आज के डिजिटल एज के हिसाब से बेहद आवश्यक हो गई है. आज के समय में ट्रेडिशनल रैलियों की बजाए लोग-बाग़ सोशल प्लेटफॉर्म्स पर ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं. कई रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि लोग 5 से अधिक घंटों तक विभिन्न सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अपना टाइम स्पेंड करते हैं.
ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें उस जगह पर इंगेज करें जहां वह जाते हैं.
Election Strategist Prashant Kishor with Nitish Kumar |
डिजिटल स्पेशलिस्ट अपनी एक्सपर्टीज से टारगेट ऑडियंस तक अपने क्लाइंट को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं!
इसको कुछ यू समझना चाहिए...
जरा कल्पना कीजिए कि समाज का एक वर्ग काफी पढ़ा-लिखा और अमीर है, जबकि दूसरा वर्ग अपेक्षाकृत गरीब है. अब यह भी कल्पना कीजिए कि एक ही तरीके से एक ही कैंपेन या विज्ञापन से आप दोनों वर्ग को टारगेट कर सकते हैं क्या?
जाहिर तौर पर आप नहीं कर सकते हैं!
ऐसे में ऑडियंस को जो बातें दिखलानी हो, उन्हें प्रशांत किशोर जैसे एक्सपर्ट आसानी से संभव कर दिखाते हैं. उदाहरण के तौर पर उच्च वर्ग को , जो संपन्न है, फ्री बिजली और फ्री पानी जैसे कैंपेन्स नहीं लुभा सकते!
ऐसे में उनके लिए शिक्षा जैसी चीजों को प्रमोट करते हुए विज्ञापन दिखने चाहिए। इसी प्रकार जो गरीब वर्ग है, उसे शिक्षा के साथ-साथ अगर बिजली पानी फ्री जैसे कैंपेन दिखलाये जाएँ, तो वह ज्यादा प्रभावी होते हैं.
इतना ही नहीं, अलग-अलग एज ग्रुप जैसे स्टूडेंट्स के लिए, जैसे- नौकरी पेशा लोगों के लिए, व्यापारियों के लिए, इसी प्रकार से जेंडर वाइज, महिलाओं के लिए अलग कैंपेन, पुरुषों के लिए अलग कैंपेन चलाने में ये एक्सपर्ट सक्षम होते हैं. मसलन महिलाओं को सुरक्षा से संबंधित उपाय ज्यादा जरूरी लगते हैं, वहीं पुरुषों को कमाई और व्यापार में सहूलियत से संबंधित चीजें ज्यादा प्रभावशाली लगती है.
जाहिर तौर पर एक ट्रेडिशनल नेता ऐसा करने में खुद को दक्ष नहीं पाता है. चूंकि, उसकी दक्षता दूसरे कार्यों में ज्यादा होती है.
Election Strategist Prashant Kishor with Narendra Modi |
प्रशांत किशोर जैसों के उभरने के पीछे कई पार्टियों के केंद्रीकृत होने को भी एक बड़ी वजह माना जा सकता है. जैसे भाजपा लोकसभा चुनावों में सिर्फ उमीदवारों के भरोसे नहीं बैठी रहती है, बल्कि पार्टी-सुप्रीमो के तौर पर उसके पास प्रशांत किशोर जैसों को हायर करने से अलग अभियान चलाने की स्वतंत्रता मिलती है. यही हाल जदयू, जगन मोहन की पार्टी और आम आदमी पार्टी की भी है. जाहिर तौर पर एक नेता पूरी पार्टी के अभियान को प्रशांत किशोर जैसे एक्सपर्ट की सहायता से नियंत्रित कर सकता है.
आप क्या सोचते हैं पार्टी से बाहर के चुनाव रणनीतिकारों के बारे में, कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य बताएं.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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