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आखिर, देश ने देखा है कि वंशवाद की राह में वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से लेकर नरसिम्हा राव और खुद सरदार पटेल जैसों को कांग्रेस ने किस हद तक किनारे लगाया है. खैर, चिकने घड़े पर कोई असर पड़ना होता तो आज़ादी के बाद आज तक पड़ जाता. सवाल तो यह भी है कि आज विपक्ष के न होने से तमाम लोग सरकार का विरोध करने के लिए कमर कस रहे हैं, लेकिन उनमें से कोई यह कहने का साहस नहीं कर रहा है कि आज यह स्थिति कांग्रेस के ही कुकर्मों का परिणाम है. एक पल के लिए अगर मान भी लिया जाय कि सरकार निरंकुश होकर किसी विशेष अजेंडे पर कार्य कर रही है तो उसे रोकने के लिए विपक्ष क्यों नहीं है? आखिर, सरकार का कोई ऑफिशियल विपक्ष क्यों नहीं है और आगे भी इस कोरे विरोध से राजनीतिक विकल्प किस प्रकार आ जायेगा? ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि कांग्रेस के पापों पर चुप्पी साधने के लिए इनके मुंह में 'घी-शक्कर' की काफी बड़ी मात्रा रही होगी? फाइव स्टार होटलों में सम्मेलन करने वाले लोग, मलाई खाने के आदी हो चुके हैं और बजाय कि सरकार के विरोध के लिए वह कोई राजनीतिक विकल्प तैयार करने की कोशिश करते, सड़कों पर उतरते, जनता को जागरूक करते... आसान रास्ता उन्होंने यही अख्तियार किया कि समाज में अराजकता फैला दो! देश को बदनाम कर दो, संस्थाओं को अपमानित कर दो! अरे साहस है तो सड़कों पर उतरो... अभियान चलाओ, तमाम चुनावों में भाग लो, कलम चलाओ! खैर, ये बुद्धिजीवी खुद ही इतने पके होते हैं कि इन्हें समझाने की न तो कोई गुंजाइश है और न ये समझने वाले हैं! इन्हें तो किसी संस्थान में पद दे दो, पेंशन दे दो, सुविधाएं दे दो... बस! खैर, इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करनी चाहिए कि उन्होंने विरोध के बीच अपने कदमों की चाल को धीमा नहीं पड़ने दिया है. राष्ट्रीय एकता की खातिर सरदार वल्लभ भाई पटेल के कार्यों का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि अगर देश को आगे बढ़ना है और विकास की नयी उंचाइयां हासिल करना है तो हमारी सोच होनी चाहिए कि हमारी भाषा कोई भी हो, हमारी विचारधारा कोई भी हो और कश्मीर से कन्याकुमारी तथा अटक से कटक तक हमारी प्रेरणा कोई भी हो अगर हमारा लक्ष्य भारत माता को दुनिया में नयी उंचाइयों तक ले जाना है तो इसके लिए पहली शर्त एकता, शांति और सद्भाव है.
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देश के जिस महान नायक को भुलाने में कांग्रेसी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, उसे याद करने और उसकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अगर पीएम प्रयास करते हैं तो उनकी कोटिशः तारीफ़ करने के बजाय अगर कोई आलोचना करता है तो उसे कुंठित ही कहा जाना चाहिए, क्योंकि सरदार पटेल के रास्ते ही देश चलने वाला है और वंशवाद की सोच रखने वालों को अब इसकी आदत डाल लेनी चाहिए. सरदार पटेल की जयंती पर उनके अन्य योगदानों को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कई लोग महिलाओं को आरक्षण देने का श्रेय ले सकते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि 1930 के दशक में जब सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के महापौर थे तब उन्होंने महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के प्रयास के तहत उनके लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया था.
इसके अतिरिक्त, 1920 के दशक में अहमदाबाद के महापौर रहते हुए पटेल ने स्वच्छता के लिए अभियान चलाया था जो 222 दिन तक चला और इसकी तारीफ महात्मा गांधी ने की ,जो खुद बेहद सफाई पसंद थे. इस बात में कोई शक नहीं कि सरदार पटेल आधुनिक भारत के निर्माता थे, जिन्होंने देश की एकता सुनिश्चित की जिससे देश को समृद्ध होने में मदद मिली. अब समय आ गया है कि समर्थक और विरोधी दोनों सरदार पटेल की नीतियों को समझें. तमाम मतभिन्नताओं के बावजूद उन्होंने परिस्थिति को समझते हुए जिस प्रकार पंडित नेहरू से तालमेल बनाये रखा, उसे केंद्र सरकार को भी समझना होगा. ऐसा नहीं है कि सभी बुद्धिजीवियों के विरोध को कांग्रेसी और कम्युनिस्ट मानसिकता कह कर खारिज कर दिया, बल्कि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हर हाल में देश की सहिष्णुता को बनाये रखना चाहते हैं. जरूरत है, परिस्थिति के अनुसार उनसे भी तालमेल करने की. उम्मीद की जानी चाहिए कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही सरदार की 'भारत की एकता' नीति को समझेंगे और तमाम विरोधों के बावजूद साथ मिलकर देश को शीर्ष स्तर पर ले जाने के लिए सब कुछ झोंक देंगे.
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