हमारे देश में तमाम रिश्तों के महत्त्व व मर्यादा को बनाए रखने और उन्हें निभाने के लिए कई त्यौहार मनाए जाते हैं. इन्हीं त्यौहारों में से एक है रक्षाबंधन का त्यौहार जिसे भाई-बहन का प्रमुख त्यौहार भी कहा जाता है. यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य इतना मजबूत है कि ये रिश्ता किसी एक दिन की मोहताज नहीं है, लेकिन इस खास दिन पर हर्ष और उल्लास देखने लायक होता है. इस सम्बन्ध में अगर हम आगे बात करते हैं तो, यह त्यौहार सावन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. पवित्र दिन रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प (Raksha Bandhan 2016) लेती हैं. हालाँकि, बदले दिनों में इन त्यौहारों के मायने भी काफी बदल चुके हैं और इसीलिए समाजशास्त्री विभिन्न स्तरों पर फिक्रमंद होते हैं, ताकि अपना अभिप्राय न खो दे यह प्राचीन त्यौहार! दुर्भाग्य से कई ऐसी ख़बरें आती हैं, हमारे ही समाज से जो न केवल चिंतित करती हैं, बल्कि कई बार पीड़ा से भर देती हैं. अभी हाल ही में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में एक चर्चित और विवादित मॉडल 'कंदील बलोच' की उसके भाई ने ही 'ऑनर किलिंग' कर दी. बिडम्बना यह है कि पाकिस्तान में कहाँ तक इस दुर्घटना की लानत-मलानत की जाती, बल्कि कई लोग इसके लिए कंदील बलोच के अश्लील और एक्सपोज़ करने वाले कृत्यों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. हालाँकि, अश्लीलता का समर्थन नहीं किया जा सकता, किन्तु क्या अश्लीलता को बढ़ावा सिर्फ कंदील बलोच जैसी लडकियां ही दे रही हैं?
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क्या समाज के पुरुषों का यह दोहरा चरित्र नहीं है कि वह भी खुद 'अश्लीलता' को महिमा-मण्डित करते हैं, अश्लील फिल्में देखते हैं, इंटरनेट पर सर्च करते हैं, दूसरी लड़कियों को वैसी ही नज़रों से घूरते हैं, छेड़ते हैं और जब बात अपने घर की आती है, तो किसी कंदील को गला दबाकर मार डालते हैं. भारत में भी कई जगहों पर लड़कियों को प्रेम करने के जुर्म में उनके ही भाई, परिवार वाले मार डालते हैं पर क्या वह बताएँगे कि बॉलीवुड में 'सनी लियोनी' की फिल्में देखने कौन जाता है? अश्लील फिल्में आखिर इतना बड़ा कारोबार मर्दों के दम पर ही तो करती हैं और ऐसे में हमारा दोहरा मापदंड सबके सामने आप ही उजागर हो जाता है. यह बात हमें दिमाग में बिठा लेनी होगी कि समाज में गिरावट आयी है और ऐसी स्थितियों से हम हिंसक होकर नहीं निपट सकते हैं, ऊपर से 'रक्षाबंधन' जैसी जो परम्पराएं (
Raksha Bandhan 2016) हमें मिली हैं, उन्हें और कलंकित ही करेंगे. किसी विषम परिस्थिति में हमें अपनी बहनों से संवाद करना चाहिए और समझाने के साथ-साथ उनकी मनःस्थिति को भी समझना चाहिए. इसके अतिरिक्त, जो दूसरी समस्या और चलन देखने को मिल रहा है, जो बहनों के लालची होने से जुड़ा हुआ है. हर रक्षाबंधन पर मैंने कइयों को इस 'पुरस्कार' के लालच में बहते देखा है तो जो भाई सक्षम नहीं होते हैं, उनको पीड़ा में तड़पते भी देखा है. आज यदि कहा जाए कि रक्षाबंधन का मतलब पुरस्कार हो चुके हैं तो यह गलत न होगा और इसीलिए इस पवित्र त्यौहार के सही अर्थों को समझने की आवश्यकता है, जिससे हमारे रिश्ते और संस्कार पल्लवित हों, न कि कुसंस्कार हमारे ऊपर हावी हो जाएँ!
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अगर हम ऐतिहासिक सन्दर्भों की ओर जाते हैं तो रक्षाबंधन के किस्से हमारे इतिहास और हिंदू पुराण कथाओं में सुनने को खूब मिलते हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. इस कथा ने अनुसार, बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान कर दी. वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया. प्रचलित है कि राजा बलि ने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया. उनके इस वचन से लक्ष्मी जी चिंतित हो गई और नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया. इसके बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं. कहा जाता है कि उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी. ऐसे ही इतिहास में भी राखी के महत्व (Raksha Bandhan 2016) से सम्बंधित अनेक उल्लेख मिलते हैं. एक युद्ध के समय मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर मदद मांगी थी और हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी. इसी क्रम में कहते हैं कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू-शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था.
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पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान भी दिया था. इतिहास तो ऐसी कथाओं और उद्धरणों से भरा पड़ा है, किन्तु यह देखकर पीड़ा होती है कि बजाय कि इसके संदेशों को हम ग्रहण करते, अब सिर्फ औपचारिकता निभाने में लग जाते हैं. रक्षाबंधन के इस अनूठे उत्सव का ही तो यह कमाल है जो यह भाई-बहन के अटूट रिश्ते (Raksha Bandhan 2016) को मर्यादित करता है. किन्तु अन्य कई बुराइयों के साथ बेटी को गर्भ के अंदर ही मार दिया जाना आखिर रक्षाबंधन की गरिमा को कलंकित नहीं करता है तो और क्या करता है. गर्भ में अगर बेटी जिन्दा बच भी गयी तो समाज के दरिंदो के द्वारा उसकी प्रताड़ना का डर हमेशा बना रहता है और उससे भी बचे तो दहेज़ के लोभियों से बच के कहाँ जाएगी. जाहिर है, ऐसे लोग आसमान से तो नहीं आते, बल्कि हमारे ही समाज के लोग हैं और हम ही वो लोग हैं जो इनके ऊपर हो रहे अत्याचारों को चुपचाप देखते रहते हैं, कोई विरोध नहीं करते कि कहीं हमें नुकसान न हो जाये. ऐसी स्थिति में बहनों के लिए त्यौहार मानाने का दिखावा, औपचारिकता ही प्रतीत होता है, जब हम उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकते. अब चाहे वो अपनी बहन हो या किसी और की बहन हो, रक्षाबंधन तो सभी बहनों की रक्षा का दायित्व बोध कराता है.
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ऐसे में, हमें समझना होगा कि हमारे त्यौहार सामाजिक-व्यवस्था को सुचारू बनाने एवं भावनात्मक दृष्टि से जुड़े रहने का सन्देश देते हैं. इसलिए, हमें हर हाल में इनकी मर्यादा और इससे जुड़े अभिप्राय को जीवित रखना होगा ताकि वर्तमान पीढ़ी सहित आने वाली पीढ़ियों को भी 'इंसानी समाज' में रहने का सुअवसर मिल सके, न कि दरिंदगी भरे समाज में! आइये, इस रक्षाबंधन (Rakhi Festival, Brother Sister quotes) पर हम तमाम बुराइयों को तिलांजलि देकर इसे इसके सही अर्थों में मनाने का न केवल प्रयत्न करें, बल्कि मनाएं भी!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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1 टिप्पणियाँ
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