तब्बू की मशहूर चांदनी बार के बाद बन्नी और बबलू नाम से हिंदी फिल्म देखी, जो दिल को छू गयी. 2010 में रिलीज हुई इस फिल्म को युनुस साजवाल ने निर्देशित किया है तो उमेश चौहान ने इसका निर्माण किया है. धांसू अभिनेता के रूप में पहचान बना चुके के.के.मेनन और राजपाल यादव ने इस फिल्म में फाइव स्टार होटल और मुंबई के डांस बार की परत दर परत कहानी बताई है और कलई भी खोली है. ऐसा भी नहीं है कि इन कहानियों को हम नहीं जानते, लेकिन जिस व्यंग्यात्मक ढंग से और तेज रफ़्तार में भावनाओं को लपेटा गया है, उससे आप यह सोचने को मजबूर हो जायेंगे कि क्या सच में यही वह भारत है जिसे आने वाली दुनिया की आर्थिक महाशक्ति कहा जा रहा है. इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का जो हालिया निर्णय आया, उसने कई तरह की व्याख्याओं को जन्म दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में महाराष्ट्र में डांस बार पर लगी पाबंदी हटा दी है, तो इससे जुड़े प्रदेश में लगे कानून को होल्ड कर दिया है. गौरतलब है कि 2014 जून में कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने महाराष्ट्र पुलिस एक्ट लागू करके यह बैन लगाया था. इंडियन होटल और रेस्टोरेंट एसोसिएशन द्वारा इस फैसले को चुनौती पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत की पीठ ने इस मामले में न्यायिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि और इसके बाद महाराष्ट्र पुलिस कानून में किये गये संशोधन का जिक्र करते हुये कहा, ‘हम महाराष्ट्र पुलिस (द्वितीय संशोधन) कानून की धारा 33 (ए) (1) के प्रावधानों पर रोक लगाना उचित समझते हैं’ और इसके साथ ही न्यायालय ने अपने अंतिम आदेश में एक शर्त भी लगा दी, जिससे राज्य में लाइसेंसिंग प्राधिकारियों को बार तथा दूसरे स्थलों पर अश्लील डांस प्रदर्शनों को नियंत्रित करने का अधिकार मिल गया. अब इस फैसले के एक हिस्से, जिसमें अधिकारियों को अश्लीलता नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया है, उसे देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि इंस्पेक्टर राज का डंडा यहाँ ज़ोर से बोलेगा! वैसे, फैसले के मूल को देखा जाय तो कोर्ट ने इन डांस बार को महिलाओं के लिए रोज़ी रोटी का साधन माना है. हालाँकि, यह डांस बार काफी समय से राज्य में बहस का मुद्दा रहे हैं और जहां सरकार तक ने इन जगहों को वेश्यावृत्ति का ठिकाना करार दिया है, वहीं कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि बार में डांस करने से उनकी गरिमा पर किसी तरह की चोट न पहुंचे. महाराष्ट्र में ऐसे करीब 700 ठिकाने हैं जहां 75 हज़ार से ज्यादा महिलाएं बॉलीवुड गानों पर नाचकर और टिप लेकर गुज़र बसर करती हैं. डांसर यूनियन ने पिछले प्रतिबंध का यह कहते हुए विरोध किया था कि नाचने पर प्रतिबंध लगाने की वजह से कई महिलाएं वेश्यावृत्ति को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएंगी और उनकी यह बात काफी हद तक सच भी निकली है. सच ही तो है, जब पेट में निवाला नहीं हो तो बाकी सारी बातें बेमानी हो जाती हैं.
बहुत संभव है कि डांस बार के कुछ हिस्सों में वेश्यावृत्ति भी फल फूल रही हो, लेकिन क्या कोई एक व्यक्ति भी यह दावा कर सकता है कि तमाम फाइव, सेवेन या थ्री स्टार होटलों में यह धंधा नहीं चलता है. किसी भी अख़बार के क्लासीफाइड पेज को उलट लीजिये, एयरहोस्टेस, रसियन, इटालियन, कॉलेज गर्ल के नाम पर आपको तमाम विज्ञापन मिलेंगे और इनके ग्राहक नेता, अभिनेता, अधिकारी, पदाधिकारी, सरकारी मुलाजिम, प्राइवेट कंपनियों के एक्जीक्यूटिव्स से लेकर वही तथाकथित लोग मिलेंगे, जो सूरज की रौशनी में इसके खिलाफ सबसे ज्यादा भाषण देते हैं. सवाल अगर उठता है तो सिर्फ मुंबई की बार बालाओं पर ही क्यों उठे, क्यों नहीं ये राजस्थान की डांसर्स या गुजरात की डांसर्स के साथ गाँव तक में नौटंकी के नाम पर अपना गुजर बसर करने वालों पर उठता है? आखिर, इनमें अलग क्या है... हाँ! इन सबमें कॉमन बात यह ज़रूर है कि ये सभी लोग पेट की मार से परेशान हैं! सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तत्काल बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का बयान आ गया कि प्रदेश सरकार डांस बार पर प्रतिबन्ध के पक्ष में है, लेकिन मुख्यमंत्री यह बताते नज़र नहीं आये कि इसके कारण लाखों बेरोजगार और बेसहारा महिलाएं क्या करेंगी? क्या इसका सीधा मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दे रहे हैं या फिर खुले रूप से उन्हें जिस्मानी धंधे में जाने को कह रहे हैं! इससे जुडी लडकियां चीख चीख कर कह रही हैं उनके बच्चे जब भूख से बिलखेंगे तो उन्हें किसी के साथ सोना ही पड़ेगा! है कोई हमदर्द उन्हें काम देने वाला? उनका हाथ पकड़ने वाला... अगर नहीं, तो कोर्ट ने उनके हक में जो फैसला दिया है, उसपर ऊँगली उठाने का किसी को क्या हक़ है? एक आंकड़े के अनुसार अप्रैल 2005 में लगाए गए पहले बैन के बाद करीब 1.5 लाख लोग बेरोजगार हो गए थे, जिसमें 70 हजार बार गर्ल्स भी थीं. सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त इस फैसले को लेकर डबल स्टैंडर्ड की आलोचना करते हुए कहा था कि सिर्फ छोटे होटलों के लिए ही रोक लगाई गई है, जबकि फाइव स्टार और थ्री स्टार होटलों पर पाबंदी नहीं लगाई गई. ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति में कानून के निष्पक्ष होने पर सवाल उठेगा ही! अभी हाल ही में बहुचर्चित 'काऊ-बीफ-विवाद' में भी जब एक प्रदेश के बड़े मंत्री ने फाइव स्टार होटलों के मेन्यू में बीफ के शामिल होने की बात कही तो बड़बोले लोगों को सांप सूंघ गया! आखिर, ऐसे में लोकतंत्र का पूरा मतलब कहाँ निकलता है? रेव पार्टी, स्वैपिंग, ड्रग फीवर, एस्कॉर्ट सर्विस जैसे शब्द किसी घुँघरू बार से तो निकले नहीं हैं... फिर क्यों नहीं इन शब्दों की उत्पत्ति पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है?
सभ्य समाज में निश्चित रूप से मर्यादा रहनी चाहिए, लेकिन हम यह कब समझेंगे कि डांस बार की संस्कृति कोई शौक में नहीं चल रही है, बल्कि मुंबई जैसी महानगरी उन तमाम लड़कियों की ओर अपनी ओर खींचती है, जो जीवन में कुछ करना चाहती हैं, अपने परिवार की मदद करना चाहती हैं... लेकिन, जब वह तमाम बगावत करके मायानगरी में आती हैं तो उन्हें पता चलता है कि हकीकत कुछ और ही है! ऐसे में, कई बार यह डांस बार उनका गुजर बसर करते हैं. सरकारें क्यों नहीं समझती हैं कि बदलती दुनिया में शिक्षा और रोजगार का साधन ही इन समस्याओं से निजात दिला सकता है, अन्यथा उसके नागरिक कभी खुशहाल नहीं होंगे! अच्छे दिन और महाशक्ति के साथ साथ मजबूत अर्थव्यवथा का नारा भी ऐसे में खोखला ही साबित होगा! खोखला ही साबित होगा! खोखला ही साबित होगा!!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
Dance bar and supreme court decision, hindi article, depth analysis, five star culture, rave party, escort service, swapping words, महाराष्ट्र सरकार, डांस बार, सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार से प्रतिबंध हटाया, Maharashtra assembly, Dance bar in Maharashtra, supreme court, fadnavees, rojgar, employment, education, shiksha, film review, k k menon, rajpal yadav, benny and babloo, prostitution, veshyavritti
0 टिप्पणियाँ