मोदी विरोध: पहले की तरह ही तमाम विरोधियों की तरह आमिर खान के विरोध में यह एक बड़ा एंगल है. नरेंद्र मोदी जिस ताकत के साथ सत्ता में जमे हुए हैं और बिहार जैसे राज्यों में हार के बावजूद अपने अजेंडे पर आगे बढ़ रहे हैं, उसने सत्ता के दुसरे खिलाड़ियों के कान खड़े कर दिए हैं. देश में विदेशी इन्वेस्टमेंट की आमद बढ़ना, शशि थरूर जैसों की अर्थव्यवस्था को लेकर तारीफ़ एक मजबूत संकेत है कि इस मोर्चे पर आने वाले समय में सुधार आगे ही बढ़ेगा. जाहिर है, केंद्रीय मोर्चे के राजनेता 2019 और उसके आगे की रणनीतियां बनाने में इस राजनीतिक और आर्थिक स्थायित्व को सूंघ रहे हैं और उनकी राजनीति यही कहती है कि इसमें पलीता लगाया जाना चाहिए. साफ़ है कि तमाम लोग इस एंगल में अपनी जगह पर जमे हुए हैं! जहाँ तक आमिर खान की स्पेशल बात है, तो उनका मोदी विरोध काफी पुराना है, लगभग दशक भर! इसकी शुरुआत 2006 में तब हुई, जब आमिर खान 15 अप्रैल 2006 के दिन दिल्ली के जंतर मंतर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर के साथ जा बैठे. यह आंदोलन बांध की उंचाई बढ़ाने और विस्थापित किसानों के पुनर्वास से जुड़ा था. हालात ये बने कि बीजेपी के यूथ विंग के प्रदर्शन के कारण गुजरात के कई हिस्सों में ‘रंग दे बसंती’ का प्रदर्शन प्रभावित हुआ. इस विवाद के अगले महीने ही आमिर खान और गुजरात सरकार में फिर ठन गयी. वडोदरा प्रशासन शहर की एक सड़क के बीचोबीच मौजूद एक मजार को अतिक्रमण मानते हुए उसे हटाने की कोशिश कर रहा था, जिस दौरान सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें कुछ लोगों की जान गई. इसी को आधार बनाकर दिए एक साक्षात्कार में आमिर ने मोदी सरकार और राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना करते हुए ये कहा कि वडोदरा की घटना न सिर्फ दुखद है, बल्कि कुछ साल पहले हुई हिंसा (2002 का दंगा) भी दुखद है और राज्य का प्रशासन इन घटनाओं को रोकने में नक्कारा साबित हुआ है. इसी समय फिल्म ‘फना’ रिलीज हुई, लेकिन गुजरात में इस फिल्म का प्रदर्शन नहीं हो पाया था, क्योंकि गुजरात मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने आमिर खान के नर्मदा बांध और गुजरात विरोधी बयानों को आधार बना कर विरोध कर उठे थे. इसी कड़ी में, आमिर की मशहूर फिल्म ‘लगान’ में चिंकारा का इस्तेमाल होने संबंधी मामला उछला था. वगैर इजाजत जिस चिंकारे का इस्तेमाल इस फिल्म की शूटिंग के लिए हुआ था, बाद में उसकी मौत हो गई थी और इस मामले में जुलाई 2006 में वन विभाग ने अपनी जांच तेज की, यहां तक कि आमिर खान को पूछताछ के लिए समन भी भेजा गया, लेकिन आमिर पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हुए थे! हालाँकि, 23 जून 2014 को आमिर खान प्रधानमंत्री बन चुके मोदी से मिलने के लिए उनके ऑफिस गये और बाद में खुद ही मुलाकात की तस्वीर ट्वीट की, मोदी के प्रति आभार जताया, लेकिन हालिया दौर में फिर से आमिर खान का मोदी विरोध फिर सामने आ गया है. वैसे, इन सभी समीकरणों के बावजूद मोदी की हिन्दुत्ववादी छवि उनके विरोधियों के मन में हमेशा से खटकती रही है और अन्य सभी तत्वों पर भारी भी पड़ती है.
सॉफ्ट टारगेट 'क..क.. किरन': आमिर खान के बयान और उसके अपडेट को ध्यान से देखें तो आपको दाल में काफी कुछ काला नज़र आएगा. एक तो किरन राव हिन्दू हैं और बोल्ड भी... तो सवाल उठता है कि क्या वह खुद अपनी बात नहीं कह सकती थीं? साफ़ दिखता है कि एक हिन्दू को सामने रखकर आमिर ने यह जतलाने की कोशिश की है कि, यह बात वह नहीं बल्कि एक हिन्दू कह रही है! उनके इस दांव से मुसलमान भी खुश कि 'उनके हमदर्द आमिर' ने मोदी का विरोध किया और हिन्दुओं के लिए उनके पास छुपी हुई सफाई भी कि, यह वह नहीं कह रहे, बल्कि किरन राव, 'एक हिन्दू' ने ऐसा कहा है! ज़ाहिर है, इस पूरे मामले में जिस आसानी और धूर्तता से किरण राव का इस्तेमाल आमिर खान ने किया है, उससे वह निश्चित रूप से सदमें में होंगी! बहुत संभव है कि आमिर ने खुद ही उन्हें यह कहने के लिए उकसाया भी हो या फिर क्षणिक रूप से उनके मुंह से व्यक्तिगत स्तर पर यह बात निकली भी हो... किन्तु यह बात दावे से कही जा सकती है कि उन्हें इस दिन की उम्मीद कतई नहीं रही होगी! इसके बाद के और दिलचस्प अपडेट देखिये... दैनिक जागरण वेबसाइट की एक खबर में कहा गया है कि इस पूरे वाकये से डरकर आमिर ने किरण को दो-तीन दिनों के लिए मुंबई से दूर रहने को कहा है. साथ ही साथ, दोनों ने तय किया है कि वो इस मुद्दे पर अब कुछ नहीं कहेंगे.' ऐसी बातों से दो सवाल उठते हैं कि आमिर खान खुद को डरा हुआ दिखाकर किसको धोखा दे रहे हैं? और दूसरी बात यह कि जब आमिर अपने बयान पर अड़े हैं तो खुद किरन सामने आकर उनका सपोर्ट क्यों नहीं कर रही हैं? इस सन्दर्भ में आरएसएस के बड़े नेताओं में शुमार इन्द्रेश कुमार ने हल्का इशारा किया है कि किरन राव का बयान 'मियां-बीवी' का आपसी झगड़ा हो सकता है. बड़ा सवाल है कि क्या आमिर खान ने अपनी हिन्दू पत्नी का अपनी पॉलिटिक्स के लिए गलत इस्तेमाल कर लिया है?
बॉलीवूडिया जंग: हाल के दिनों में जिस प्रकार सेंसर-बोर्ड, एफटीआईआई जैसे संस्थानों में भगवा समर्थक बढ़ते जा रहे हैं, उसने भी फ़िल्मी दुनिया के अब तक कर्णधार और सुपरस्टार रहे बादशाहों को मजबूर किया है कि खुलकर मैदान-ए-जंग में आएं. इस कड़ी में आमिर और शाहरुख़ बड़े नाम हैं, जिनको मुंबई मायानगरी से अपना वर्चस्व हिलता दिखाई दे रहा है. हालाँकि, शाहरुख़ इस मामले में चतुर निकले हैं और उन्होंने असहिष्णुता पर दिए अपने बयान की भरपाई यह कहकर करने की कोशिश की है कि बॉलीवुड की फिल्में 'मेक इन इंडिया' के करीब हैं. अब जाहिर है कि 'मेक इन इंडिया' नारा किसके करीब है. आमिर खान इस मामले में ऐतिहासिक भूल कर चुके हैं, क्योंकि उन्होंने किरन राव को घसीटकर मामले को प्रभावशाली तो बना लिया, किन्तु इससे उनके यु-टर्न लेने की सम्भावना भी क्षीण हो गयी है. वैसे भी उनकी छवि रिजिड है.
अंततः भारत के खिलाफ: इन सभी समीकरणों से इतर सोचें तो, संसद के शीतकालीन सत्र में भी इस बारे में काफी कुछ देखने को मिलेगा और आमिर के इस बयान के जरिये तमाम विपक्षी दल राजनीतिक सौदेबाजी को अंजाम देने के लिए कमर कस चुके हैं. हालाँकि, वेंकैया नायडू ने पहले ही ताल ठोक दिया है कि सरकार इस मामले पर चर्चा से दूर नहीं भागेगी. जीएसटी जैसे विधेयक रुके हुए हैं, जिनका पारित होना सरकार के आर्थिक एजेंडे के लिए बेहद आवश्यक माना जा रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि सैनिकों की चालों के बाद राजनीति के बादशाह संसद में किन दांवों का इस्तेमाल करते हैं. क्या सहिष्णुता का मुद्दा बनाकर शीतकालीन सत्र को बर्बाद कर दिया जायेगा और मोदी सरकार 'अध्यादेश' के माध्यम से काम चलाएगी और पूर्ण बहुमत के बावजूद उसके सुधारवादी प्रयास लोकतान्त्रिक 'असहिष्णुता' का शिकार हो जायेंगे? भूमि अधिग्रहण, जीएसटी के अतिरिक्त भी तमाम बिल पेंडिंग पड़े हैं. कुछ अति उत्साही लोग कांग्रेस के नेताओं के लगातार पाकिस्तान दौरों पर प्रश्नचिन्ह उठाते हुए इस तरफ इशारा किया है कि मोदी सरकार को फेल करने के लिए बड़े स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय साजिश की जा रही है. जाहिर है, आमिर खान का बयान इस मामले में मोदी के खिलाफ एक बड़ा हथियार है.
इस सिलसिले में यह बात साफ़ मान लेनी चाहिए कि आमिर खान का एक-एक स्टेप सोचा-समझा गया होता है, किन्तु लगता है इस बार उन्होंने बयानबाजी करने से पहले आडवाणी जैसे लौह-पुरुष के उस बयान का अध्ययन नहीं किया, जो आडवाणी ने ज़िन्ना को 'सेक्युलर' बता कर किया था. एक बयान ही तो होता है, जो आपको मटियामेट कर देता है. ऐसे हज़ारों उदाहरण आपको मिल जायेंगे, जिसमें मूर्खतापूर्ण बयानबाजी से अपनी छवि तार-तार करके तुर्रम खां जैसे लोग घर बैठ गए हैं. ऐसी जगह पर ए.आर.रहमान का ज़िक्र करना जरूरी है, जिनके बयान को यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि उन्होंने आमिर खान का सपोर्ट किया है, जबकि रहमान और आमिर के बयान में ज़मीन-आसमान का फर्क है. रहमान ने मुस्लिम संगठन (जिसने उनके खिलाफ फतवा जारी किया था) और विहिप (जिसने उनको घर-वापसी के लिए कहा था) समान रूप से निशाने पर लिया है और यह फैक्ट पर आधारित है, किन्तु आमिर का निशाना वगैर फैक्ट के... एक ही टारगेट पर है, जिससे उनका मंतव्य समझना बेहद आसान हो गया है! आमिर खान अब लाख कह लें, कह भी रहे हैं कि उन्हें 'भारत में पैदा होने पर गर्व है!' किन्तु,
अब वो बात कहाँ, जो कल 'तेरी' आँखों में थी !
अब वो साख कहाँ, जो कल 'मेरी' नज़र में थी !!
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