अभी हाल ही में, चीन ने जासूसी के संदेह में जापानी नागरिकों को गिरफ़्तार किया तो, जापान सरकार के प्रवक्ता मिस्टर सूगा ने टोक्यो में कहा कि जापान दुनिया में कहीं भी जासूसी नहीं कराता है. हालाँकि, चीन में अगर इन लोगों पर आरोप साबित होते हैं तो उन्हें मौत की सज़ा दी जा सकती है. जापानी मीडिया के अनुसार, जिस महिला को जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है वह शंघाई में जापानी भाषा के एक स्कूल में काम करती थी. इस खबर के साथ ही भारत में भी हनीट्रैप में फंसकर वायुसेना के कार्यरत जवान द्वारा ही जासूसी की खबर ने सनसनी फैला दी. खैर, जासूसी एक वैश्विक सच्चाई है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. हॉलीवुड और बॉलीवुड में न जाने कितनी फिल्में 'जासूसी' की थीम पर बनी होंगी, जिसमें बड़े ही रोमांचक ढंग से तमाम अंतर्राष्ट्रीय मामलों में इनकी सकारात्मक-नकारात्मक भूमिकाएं भी गढ़ी जाती हैं. निश्चित रूप से, स्पाई सब्जेक्ट पर बनी फिल्में दर्शकों को खूब रोमांचित करती हैं, किन्तु अगर हमें यह पता चल जाए कि हमारे ही देश में सेना समेत तमाम संस्थानों का पड़ोसी मुल्क हर स्तर पर जासूसी कर रहा है तो सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं. दिसंबर बीतते-बीतते कई ऐसी घटनाएं और रिपोर्ट्स सामने आयी हैं, जिसने गृह-मंत्रालय समेत आम नागरिकों के मन में भी भय का संचार कर दिया है.
भारत में इस तरह का सर्वाधिक चर्चित मामला, जिसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को खुफिया जानकारी देने के मामले में वायुसेना का जो जवान गिरफ्तार किया गया है, उसके हवाले से चौंकाने वाली बातें सामने आयी हैं. पूछताछ में रंजीत ने कहा है कि उसे खुफिया जानकारी देने के एवज में 30 हजार रुपए मिले थे, जिसके बदले में उसने फंसकर कई सीक्रेट्स दे दिए थे. गौरतलब है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से गुप्त दस्तावेजों को कथित तौर पर साझा करने के आरोप में वायुसेना कर्मचारी रंजीत केके फेसबुक के जरिए कथित तौर पर एक ब्रिटिश महिला मैक्नॉट दामिनी के संपर्क में आया था. तीन साल पहले रंजीत को मैक्नॉट दामिनी की तरफ से फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली, जिसमें दामिनी ने रंजीत से बताया था कि वो यूके की एक मैगजीन में काम करती है. उसके बाद दोनों के बीच देर रात तक चैट होती थी, फिर चैट के बाद मामला वॉट्सऐप और स्काइप तक जा पहुंचा. यह पूरे ट्रैप बिछाकर इस जासूस लड़की ने रंजीत से एयरफोर्स से जुड़ी काफी सूचनाएं हासिल कर ली थीं. इतना ही नहीं इसके बदले रंजीत के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर किए गए थे. इस सम्बन्ध में, जांच अधिकारी ने बताया कि रंजीत ने आईएसआई समर्थित जासूसी गिरोह के संचालकों से ई मेल के माध्यम से गुप्त सूचना साझा की. मात्र चंद रूपयों और सेक्स-जाल में फंसकर किस प्रकार एक वेल-ट्रेंड सैनिक सेना के राज उगल देता है, इसे देखकर न केवल हैरानी होती है, बल्कि आने वाली चुनौतियों को लेकर सेना की सजगता और उसकी ट्रेनिंग पर भी सवालिया निशान लगाता है.
इस बात का यह मतलब कतई नहीं है कि हमारी सेना की ट्रेनिंग और उसके ढाँचे में कहीं कोई खोट है, बल्कि इसका सीधा मतलब 21वीं के लिहाज से सैन्य ढाँचे के पुनर्गठन से है, जिसमें ट्रेनिंग और बदले हालातों में चुनौतियों से निपटने का मनोवैज्ञानिक और भौतिक ढांचा खड़ा किया जा सके. आखिर, 80 के दशक में फेसबुक पर कोई लड़की किसी सैनिक को तो लुभा नहीं सकती थी, किन्तु आज ग्लोबलाइजेशन और इंटरनेट के प्रसार ने सैन्य-प्रतिष्ठानों की गोपनीयता को भी व्यापक रूप से मुश्किल में डालने का आधार तैयार कर दिया है. न केवल, दुसरे देशों की आईएसआई जैसी जासूसी एजेंसियां, बल्कि हैकर और गूगल जैसे कार्पोरेट प्रतिष्ठानों से भी समस्याएं कहीं कम नजर नहीं आती हैं. हाल ही में जब गूगल के सुन्दर पिचाई अपने भारत दौरे पर थे, तब भाजपा के बड़े नेता और थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य ने इसे लेकर सवाल उठाते हुआ पिचाई से पूछा था कि गूगल अर्थ मैपिंग प्रोजेक्ट के विरूद्ध दो वर्ष पूर्व 'सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया' ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी जिसमे गूगल इंक के अधिकारियों द्वारा कोई सहयोग नहीं किया गया और बगैर केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की मंजूरी के इस प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाने से भारत के विरुद्ध आतंकवादियों को लाभ हो सकता है जिससे मुंबई जैसे हमलों को दुहराया भी जा सकता है. गोविंदाचार्य ने सर्च इंजिन के मुखिया से साफ़ तौर पर जानना चाहा था कि 'इस प्रोजेक्ट को बगैर सुरक्षा एंजेसियों की मंजूरी के कैसे चलाया जा रहा हैं? इन तमाम मुद्दों पर सवाल गंभीर हैं, किन्तु चुनौतियों से निपटने की हमारी तैयारियां सिफर ही नज़र आती हैं. कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं, कहीं सुधार की आहट नहीं.
सवाल यह है कि केवल बड़े-बड़े हथियार खरीदकर हम शक्तिशाली तो हो नहीं जायेंगे, अगर आईएसआई और दूसरी जासूसी एजेंसियां हमारे जवानों और प्रतिष्ठानों की जानकारी हासिल करके उसकी प्रतिरोधी रणनीतियाँ बना लें तो. ऐसी हालत में नुक्सान काफी बड़ा हो सकता है. जरूरत है, इसे समझने और तकनीक के युग में इससे मुकाबला करने की. 2015 के सितम्बर में, जब चीनी राष्ट्रपति ने चीन की सेना में तीन लाख सैनिकों की कटौती करने का ऐलान किया, तो यह एक बड़ी वैश्विक खबर बनी. हालाँकि, चीन द्वारा इसे 'विश्व के शांतिपूर्ण विकास के लिए' उठाया गया कदम बताया गया था, किन्तु विशेषज्ञों ने सेना में कटौती को चीन के सैन्य तकनीक पर अधिक निर्भर होने की ओर बढ़ने का सीधे तौर पर संकेत बताया. बीबीसी पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीएलए नेशनल डिफ़ेंस यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर लियांग फ़ेंग ने 3 अगस्त को चाइना न्यूज़ सर्विस एजेंसी से कहा था, "आधुनिक युद्धों में सेना जिस तकनीक का इस्तेमाल करती है उसकी गुणवत्ता और स्तर बहुत मायने रखता है." इसी यूनिवर्सिटी के एक और प्रोफ़ेसर गोंग फेंगबिन ने कहा कि सेना को फिर से संगठित करने के लिए सैनिक संख्या में कटौती ज़रूरी थी. "सैनिक संख्या में तीन लाख की कटौती का मतलब सिर्फ़ सैनिकों को नौकरी से निकालना ही नहीं है, बल्कि इसके मायने ये भी हैं कि सेना की यूनिटों का पुनर्गठन कैसे किया जाएगा और सेना को कैसे संगठित किया जाएगा." साफ़ तौर पर, कटौती से होने वाली बचत का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उच्च तकनीक आधारित सैन्य क्षमताएं विकसित करने के लिए किया जा सकता है. साफ़ तौर पर, हमारे पड़ोस में हो रहे इन बदलावों की धार पर बारीक नजर रखने की आवश्यकता है तो इसका मंतव्य समझने की भी उतनी ही महत्ता है. तकनीक और मानव-संशाधन का बेहतर उपयोग, बदलते दौर में नयी तरह की चुनौतियां लेकर आये हैं. 'जासूसी' शब्द की परिभाषा अब कैमरा या कान लगाकर बातें सुनने तक नहीं रह गए हैं, बल्कि डेटा एनालिसिस, ट्रेंड एनालिसिस से काफी कुछ सामने खुद-ब-खुद निकालकर सामने आ जाती हैं. मसलन, फेसबुक पर अगर कोई सैनिक सक्रिय रूप से इन्वॉल्व है तो उसकी रुचि, दिनचर्या, आदतें, कमजोरियां और फ्रेंड-सर्कल पर आसानी से आतंकियों की नज़र पड़ जाती है. इन तमाम बातों पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता है, अन्यथा 'भय' लगातार बढ़ेगा और आतंकियों की ताकत लोगों में डर ही तो होता है.
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