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यूपी पंचायत चुनाव, सहिष्णुता और... Mithilesh article on panchayat election in up and its result, tolerance and intolerance

जब हम देश में विभिन्न स्तर पर चुनावों का संपादन देखते हैं तो सकारात्मक भाव से लगता है कि राजतन्त्र से लोकतंत्र का सफर लगातार मजबूत हो रहा है. हालाँकि, विभिन्न स्तर पर हमारे देश में चुनावों की अधिकता ने विकास की रफ़्तार को भी धीमा किया है तो तकनीक की दक्षता की अभी काफी कुछ गुंजाइश नज़र आती है, जिससे पारदर्शिता को और भी बल मिल सकता है. अभी हाल ही में हरियाणा के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि अब पढ़े-लिखे लोग ही चुनाव लड़ सकेंगे. चूँकि, इस बाबत कई बार प्रश्नचिन्ह उठाये जाते रहे हैं.  हरियाणा की राज्य सरकार के नए नियमों के मुताबिक, जनरल के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है. साथ ही साथ बिजली बिल के बकाया ना होने, बैंक का लोन न चुकाने वाले और गंभीर अपराधों में चार्जशीट होने वाले लोग भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. खैर, इस प्रक्रिया में अभी काफी पेंच आएंगे, लेकिन भविष्य के लिए इस फैसले को एक नजीर के तौर पर अवश्य ही पेश किया जा सकता है. पढ़े-लिखे होने से कुछ हो न हो, किन्तु इतनी राहत अवश्य मिल सकती है कि जीता हुआ प्रत्याशी कम से कम कागजात खुद पढ़ सकेगा तो उसकी समझ भी कई तरह की राजनीतिक गैर-राजनीतिक बातों का आंकलन भी खुद ही कर सकेगी. पढाई-लिखाई के बाद चुनाव सम्बन्धी एक वैश्विक खबर ने ध्यान खींचा, जब  सऊदी अरब में हुए चुनावों में मक्का नगर परिषद की सीट पर महिला प्रत्याशी ने जीत दर्ज की. बतातें चलें कि यह पहला मौका है जब सऊदी अरब में महिलाओं को वोट डालने और चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है. सलमा बिन हिजाब अल-ओतिबी इन चुनावों में जीत दर्ज करने वाली पहली महिला बन गई हैं. इस इस्लामिक देशमें कुल 978 महिलाएं उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होना था, जबकि 5,938 पुरुष उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर थी. खैर, चुनाव हुए और लोकतंत्र की ओर इस देश ने कुछ हाथ बढ़ाया, यही एक सकारात्मक खबर है. 

जहाँ तक उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव का सवाल है तो एक परिपक्व चुनावी दंगल था, जिसमें छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो यहाँ अपेक्षाकृत शांति रही. इस चुनाव में कुल 74 जिलों के 819 ब्लॉक में 58909 ग्राम पंचायतों के चुनाव संपन्न हुए. इसमें तकरीबन 200 के आस-पास ग्राम प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए तो बाकियों को फाइट करनी पड़ी. इलेक्शन कमीशन ने पंचायत चुनाव से लेकर परिणामों की घोषणा तक कमर कस कर कार्य किया. मतगणना के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये तो राज्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट http//sec.up.nic.in पर ऑनलाइन परिणाम की बेहतरीन व्यवस्था की गयी थी. इसमें जिन प्रत्याशियों ने नामांकन के समय मोबाइल नंबर दर्ज कराया था, उन्हें एसएमएस से परिणाम की जानकारी दी गयी. वोटों की गिनती में पारदर्शिता के लिए मतगणना स्थलों पर विशेष रूप से वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती की गयी थी, जिसमें 8,104 रिटर्निग अधिकारी थे, जिनको सहयोग के लिए प्रत्येक न्याय पंचायत क्षेत्र में एक सहायक रिटर्निग अधिकारी की तैनाती भी थी. मतगणना स्थलों के आसपास की सुरक्षा का जिम्मा पीएसी के साथ अ‌र्द्धसैनिकबल के हवाले थी, जिससे किसी भी प्रकार की दबंगई को मौका नहीं मिला. खैर, इस बार अपने गाँव के पंचायत चुनाव में मुझे एक अलग दृश्य और परिणाम नज़र आया. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के अपने गाँव के समीकरण को सहिष्णुता-असहिष्णुता से जोड़कर देखा तो परिणाम अपेक्षाकृत चौंकाने वाला रहा. हमारे गाँव का जातिगत वोट गणित और चुनाव परिणाम पर एक बार नज़र डाल लेने से आगे की बात समझना खुद-ब-खुद बहुत आसान नज़र आएगा. मेरे गाँव में, जनरल वोट लगभग 250, पिछड़ा वर्ग का लगभग 700, एससी लगभग 150 और अल्पसंख्यक समुदाय का लगभग 200 वोट पोल हुआ. इसमें परिणाम की दिलचस्पी देखिये,  जो हमारे रिसेंट पूर्व प्रधान, पिछड़ा वर्ग के थे, उन्हें मिले 6 वोट, एक और पूर्व प्रधान (पीछे के पीछे 10 साल रहे लगातार), ठाकुर साब थे उनको मिले 20 वोट, एक गाँव का युवा, जनरल 35 साल उम्र का था, उसको मिले 233 वोट तो गाँव के धुरंधरों, गणितज्ञों और धनिकों के सपोर्ट से खड़े एक और ठाकुर साहब को भी 233 वोट से संतोष करना पड़ा. जीता हुआ अल्पसंख्यक कैंडिडेट अकेले 489 वोट की संख्या पर था, जो वगैर दबंगई के था, क्योंकि गाँव के एक कॉलेज में चपरासी की नौकरी करता हुआ उसने चुनावी परचा भरा था.  

अब मैंने सोचा कि क्यों न इसको सहिष्णुता-असहिष्णुता से जोड़कर देखूं और शेयर करूँ! आखिर, एक गाँव से बेहतर भारत का सहिष्णु चरित्र भला किसका हो सकता है? पिछले 10 - 15 वर्षों के मेरे आंकलन, भाजपा को मिली लोकसभा में जीत और तमाम चुनावों में हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा मेरे गाँव से गया था. यहाँ बता दूँ कि बलिया के इस गाँव को मॉडल ग्राम का पिछले किसी साल में पुरस्कार भी मिल चुका है और गाँव हर तरह की राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय घटनाक्रमों से अवगत भी रहता है. इस गाँव में एक बड़ा स्नातकोत्तर महाविद्यालय है तो दुसरे स्कूल भी मौजूद हैं. कहने का मतलब है कि पाठकगण यह न समझें कि इस गाँव का यह फैसला भावुकता या किसी और पैमाने पर था, बल्कि सच तो यह है कि मेरे देश का चरित्र ही इस गाँव का चरित्र है और वह है सहिष्णुता. अब कोई गलत बातों का विरोध करे, संस्कृति की बात करे या फिर कोई एक व्यक्ति या घटना गलत हो जाए और पूरे देश को असहिष्णु कह दिया जाय तो यह अपने आप में बीमार मानसिकता का परिचायक है. भारत का असल चरित्र यही है और उसे मजबूत किये जाने की आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश के इस पंचायत चुनाव से यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि लोकतंत्र का सच्चा हिमायती, शिक्षा का हिमायती, औरतों के मताधिकार का हिमायती और सबसे बढ़कर सहिष्णुता का हिमायती है हमारा भारत, हमारा प्रदेश और हमारा गाँव. इसमें नुक्ताचीनी करने की बजाय, हमें इस कारवां को मजबूती से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.

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